तीन तलाक के बाद निकाह हलाला और बहुविवाह पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अलग संवैधानिक पीठ करेगी सुनवाई
तीन तलाक के बाद निकाह हलाला और बहुविवाह पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, इन मसलों पर अलग संवैधानिक पीठ करेगी सुनवाई
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने गुरुवार को मुस्लिम पर्सनल लॉ ( Muslim personal law ) द्वारा मान्य बहुविवाह ( Polygamy ) और निकाह हलाला ( Nikah Halala ) प्रथा के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के लिए अलग से संवैधानिक पीठ ( separate Constitutional bench ) गठित करने के लिए सहमत हो गया है। अब हलाला और बहुविवाह पर यही पीठ सुनवाई करेगी। हलाला और बहुविवाह को आठ याचिकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच जजों की पीठ भी बनाई गई थी, लेकिन जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस हेमंत गुप्ता के के सेवानिवृत होने के बाद अब शीर्ष अदालत ने पीठ को नये सिरे से पुनर्गठित करने का फैसला लिया है।
पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ में जस्टिस इंदिरा बनर्जी, हेमंत गुप्ता, सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और सुधांशु धूलिया शामिल थे। इनमें इंदिरा बनर्जी और हेमंत गुप्ता रिटायर हो चुके हैं। इस बेंच ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को नोटिस भी जारी किए थे।
गुरुवार को याचिकाकर्ता के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हेमा कोहली और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष उल्लेख किया कि चूंकि जस्टिस इंदिरा बनर्जी और हेमंत गुप्ता सेवानिवृत्त हो गए हैं, इसलिए सुनवाई के लिए एक नई संविधान पीठ का गठन किया जाना चाहिए। अधिवक्ता अश्विनी कुमार की अपील पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने उन्हें अलग से संवैधानिक पीठ के गठन का भरोसा दिया है। सीजेआई ने कहा कि हम एक अलग बेंच बनाएंगे। दरअसल, इस मामले को मार्च 2018 में तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनवाई के लिए 5 न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया था।
बता दें कि कुछ मुस्लिम महिलाओं जैसे नायसा हसन, सबनाम, फरजाना, समीना बेगम और वकील अश्विनी उपाध्याय और मोहसिन कथिरी ने बहुविवाह और निकाह-हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की थी। मुस्लिम महिला प्रतिरोध समिति नाम के एक संगठन ने भी याचिका दायर की है।
हलाला और बहुविवाह पर प्रतिबंध की मांग
याचिकाकर्ताओं ने बहुविवाह और निकाह-हलाला पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा है कि यह मुस्लिम पत्नियों को बेहद असुरक्षित, कमजोर और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने प्रार्थना की कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम की धारा 2 को असंवैधानिक घोषित किया जाए और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव) और 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन किया जाए। यह बहुविवाह और निकाह-हलाला की प्रथा को पहचानने और मान्य करने का प्रयास करता है।
जमीयत ने बैन का किया विरोध
जमीयत-उलमा-ए-हिंद ने प्रथाओं का समर्थन करते हुए मामले में हस्तक्षेप किया है। शरिया या मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार पुरुषों को बहुविवाह का अभ्यास करने की अनुमति है। यानी वे एक ही समय में एक से अधिक यानि चार पत्नियां रख सकते हैं। निकाह हलाला एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक मुस्लिम महिला को अपने तलाकशुदा पति से दोबारा शादी करने की अनुमति देने से पहले किसी अन्य व्यक्ति से शादी करनी होती है और उससे तलाक लेना पड़ता है।