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सिखों की पगड़ी और कृपाण से हिजाब की तुलना बेतुकी, सिख प्रतीकों को संविधान से मिली है अनुमति : सुप्रीम कोर्ट

Janjwar Desk
8 Sep 2022 5:02 PM GMT
सिखों की पगड़ी और कृपाण से हिजाब की तुलना बेतुकी, सिख प्रतीकों को संविधान से मिली है अनुमति : सुप्रीम कोर्ट
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सिखों की पगड़ी और कृपाण से हिजाब की तुलना बेतुकी, सिख प्रतीकों को संविधान से मिली है अनुमति : सुप्रीम कोर्ट

Hizab controversy : 'हिजाब की तुलना सिखों की पगड़ी और कृपाण से इसलिए नहीं की जा सकती क्योंकि पगड़ी व कृपाण को संवैधानिक मान्यता प्राप्त है।' यह टिप्पणी देश के सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने उस समय की जब पीठ शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी...

Hizab controversy : सिख समुदाय की पगड़ी और कृपाण से हिजाब की तुलना करने पर देश की उच्चतम न्यायालय ने इसे बेतुका कदम बताते हुए कहा है कि हिजाब की तुलना सिखों की पगड़ी और कृपाण से इसलिए नहीं की जा सकती क्योंकि पगड़ी व कृपाण को संवैधानिक मान्यता प्राप्त है। यह टिप्पणी देश के सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने उस समय की जब पीठ शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

एक याचिकाकर्ता की ओर से न्यायालय में पेश हुए वकील निजामुद्दीन पाशा ने बृहस्पतिवार 8 सितंबर को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान तर्क दिया था कि सिख छात्र भी पगड़ी पहनते हैं। इसलिए हिजाब की भी अनुमति होनी चाहिए। अधिवक्ता के इस तर्क पर न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि सिखों के साथ उनकी यह तुलना उचित नहीं हो सकती है क्योंकि कृपाण और पगड़ी संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त है।

शैक्षिक संस्थानों में हिजाब को लेकर चल रहे मामलों की सुनवाई बृहस्पतिवार को भी सुप्रीम कोर्ट में जारी थी। इसी के दौरान अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सिखों के कृपाण और पगड़ी की हिजाब से कोई तुलना नहीं है क्योंकि सिखों के लिए पगड़ी और कृपाण पहनने की अनुमति है।

अधिवक्ता पाशा ने दलील देते हुए हिजाब को मुस्लिम लड़कियों की धार्मिक प्रथा का हिस्सा बताते हुए न्यायालय से पूछा था कि क्या लड़कियों को हिजाब पहनकर स्कूल आने से रोका जा सकता है। अपनी बात को पुख्ता आधार देने के लिए उन्होंने तर्क देते हुए कहा था कि सिख छात्र भी पगड़ी पहनते हैं। पाशा ने जोर देकर कहा कि सांस्कृतिक प्रथाओं की रक्षा की जानी चाहिए। इस पर न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि सिखों के साथ तुलना उचित नहीं हो सकती है क्योंकि कृपाण ले जाने को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसलिए प्रथाओं की तुलना न करें।

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि पगड़ी पर वैधानिक आवश्यकताएं बताई गई हैं और ये सभी प्रथाएं देश की संस्कृति में अच्छी तरह से स्थापित हैं। पाशा ने कोर्ट के सामने जब फ्रांस जैसे विदेशी देशों का उदाहरण देने की कोशिश की तो उनकी बात पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हम फ्रांस या ऑस्ट्रिया जैसा नहीं बनना चाहते। कोर्ट ने कहा कि हम भारतीय हैं और भारत में रहना चाहते हैं।

पाशा ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा करता है। पाशा ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट के निष्कर्ष हैं कि हिजाब एक सांस्कृतिक प्रथा की धारणा पर आधारित है। उन्होंने अपने तर्कों का समर्थन करने के लिए विभिन्न धार्मिक पुस्तकों का हवाला दिया। उन्होंने हाईकोर्ट की हिजाब एक सिफारिश न कि आवश्यकता वाली सिफारिश को भी गलत व्याख्यित करना बताया। वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि हर धार्मिक प्रथा जरूरी नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं है कि राज्य इसे प्रतिबंधित करता रहता है।

सुनवाई के दौरान एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश कामत ने अदालत को अवगत कराया कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है या नहीं, इस पर कर्नाटक, केरल और मद्रास उच्च न्यायालय के फैसलों ने अलग-अलग विचार रखे हैं। कामत ने कहा कि मद्रास और केरल की अदालतों ने हिजाब को एक आवश्यक धार्मिक प्रथा के रूप में माना है, लेकिन कर्नाटक हाई कोर्ट अलग है। उनके मुताबिक कर्नाटक सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में यूनिफॉर्म पर आदेश बिना दिमाग लगाए दिया है। इस मामले में फिलहाल अभी सुनवाई जारी है

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