Home Guard Salary : होमगार्ड को 9 हजार रुपए वेतन सिर्फ उनका शोषण, गृहरक्षकों के कम वेतन पर सुप्रीम कोर्ट ने की सख्त टिप्पणी
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Home Guard Salary : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court News) ने ओडिशा में होमगार्ड के कम वेतन पर नाखुशी जताते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि उनके वेतन संशोधन पर विचार किया जाए। जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की पीठ ने सुनवाई के दौरान पाया था कि ओडिशा में होमगार्ड को हर महीने सिर्फ 9000 रुपए यानी रोजना सिर्फ 300 रुपए दिए जाते हैं।
पीठ ने यह भी पाया है कि राज्य में पुलिस के एक सिपाही को हर महीने 21700 रुपए और उपर महंगाई भत्ता दिया जाता है। होमगार्ड के कई जवान 15 वर्षों से नौकरी कर रहे हैं। इस मामले पर सुनवाई करते हुए पीठ ने यह भी कहा है कि इन गृह रक्षकों को सिर्फ 9000 रुपए देना और कुछ नहीं, सिर्फ इनका शोषण है। आखिर एक होमगार्ड सिर्फ 9000 में अपना और अपने परिवार का गुजारा कैसे करेगा जकि काम उससे करीब-करीब पुलिसकर्मी जितना ही लिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी के बाद उड़ीसा सरकार से यह भी कहा है कि होमगार्ड के वेतन पर राज्य सरकार फिर से विचार करे।
पेंशन सतत प्रक्रिया, देरी पर एरियर नहीं रोक सकते
पेंशन के एक मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court News) ने यह भी कहा है कि पेंशन एक सतत प्रक्रिया है, इसमें देरी की स्थिति में एरियर देने से इनकार नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट का बकाया पेंशन नहीं देने का आदेश खारिज कर दिया है। जस्टिस एमआर शाह व जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने 20 मई के एक आदेश में कहा है कि हाईकोर्ट (Supreme Court News) ने हालांकि माना है कि गोवा सरकार ने याचिकाकर्ताओं को 60 साल के बजाय 58 की उम्र में गलत तरीके से सेवानिवृत्त कर दिया है। इसके बावजूद बकाया पेंशन रोकने का फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को गलत ठहराया है।
उच्च अदालत-एनजीटी के फैसले विरोधाभाषी तो हाईकोर्ट का आदेश मान्य
वहीं, एनजीटी से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court News) ने कहा है कि यदि मामले में सांविधानिक अदालत और वैधानिक न्यायाधिकरण ने विरोधाभासी फैसले दिए हों तो सांविधानिक अदालत का फैसला ही मान्य होगा। साथ ही शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के उस फैसले को दरकिनार कर दिया है, जिसमें विशाखापत्तनम के रुशिकोंडा पहाड़ियों पर निर्माण को प्रतिबंधित किया गया था। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस हिमा कोहली की अवकाशकालीन पीठ ने कहा, हाईकोर्ट में मामला होने के बावजूद एनजीटी के लिए यह उचित नहीं था कि आदेश पारित करें।