Supreme Court on Nupur Sharma : नुपुर शर्मा के बयान पर SC के कमेंट से मोदी सरकार की नीयत पर भी उठेंगे सवाल
Supreme Court on Nupur Sharma : एक टीवी डिबेट के दौरान पैगंबर मोहम्मद ( Prophet Mohammad ) के खिलाफ भाजपा ( BJP ) की निलंबित नेता नुपुर शर्मा ( Nupur Sharma ) के बयान पर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने जिस तरह से गंभीर नाराजगी जाहिर की है वो न केवल सियासी दलों, धार्मिक संगठनों और उन बयानवीर एक्टिविस्टों के लिए सबक है, जो अपने कुतर्कों को तर्क बताकर आये दिन टीवी डिबेट या पब्लिक प्लेटफॉर्म पर कानून को ठेंगा दिखाते हुए कुछ भी बोलने के आदी हो चुके हैं। खास बात यह है कि नुपुर शर्मा को तो सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी से इस बात का अहसास हो ही गया होगा कि कानूनी और न्यायिक सत्ता को चुनौती देने का मतलब क्या होता है। अहम तो यह है कि अब मोदी सरकार ( Modi Government intention ) और भाजपा की रीति नीति पर भी अब सवाल उठाए जाएंगे। वैसे भी भाजपा पहले से ही अपनी नीयत को लेकर सवालों के घेरे में है।
केंद्र सरकार भाजपा नेतृत्व सवालों के घेरे में इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर दिल्ली पुलिस के रवैये को नियमों के प्रतिकूल माना है। चूंकि, दिल्ली पुलिस सीधे तौर पर गृह मंत्रालय के अधीन है, इसलिए विरोधी दलों के लोग केंद्र सरकार पर सवाल तो उठाएंगे ही कि अगर नुपुर शर्मा अभी तक गिरफ्तारी से बची है तो कहीं न कहीं, दिल्ली पुलिस पर केंद्रीय सत्ता का दबाव होगा।
शीर्ष अदालत का रुख काबिलेतारीफ
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा से निलंबित नेता नूपुर शर्मा ( Nupur sharma ) की उस याचिका पर प्रतिक्रिया दी है जिसमें उन्होंने ये मांग की थी कि उनके खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर को दिल्ली स्थानांतरित कर दी जाए। शुक्रवार को इस पर बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सत्ताधारी पार्टी की प्रवक्ता नुपुर शर्मा का आक्रामक आचरण और रवैया, दिल्ली पुलिस पुलिस की निष्क्रियता, टीवी एंकर की ओर से प्रोवोक करने वाले सवाल, डिबेट में शामिल विरोधी विचारधारा के प्रवक्ताओं पर एक साथ सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सूर्यकांत का नाराज होना और सवाल उठाना हर लिजाह से जायज माना जा सकता है।
जायज इसलिए कि जब बयान पर देशभर में हिंसा फैल जाए, निर्दोष नागरिकों की हत्या होने लग जाए, प्रतिक्रिया स्वरूप प्रभावित समुदयों के हिंसक आचरण पर सरकारी एजेंसियां बुल्डोजर चलाकर भवनों को ध्वस्त करने लग जाएं, तो भला संवैधानिक एजेंसियां यानि अदालतें चुप कैसे बैठ सकती हैं।
इन परिस्थितियों में अदालतों का चुप रहना भी वाजिब नहीं माना जा सकता। क्योंकि ऐसी विकट परिस्थितियों में आम लोगों को सिर्फ अदालतों से ही न्याय की उम्मीदें होती हैं। भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र में लोगों का भरोसा अभी भी देश की अदालतों को किसी भी अन्य संवैधानिक एजेंसियों से ज्यादा हासिल है। इस लिहाज से देखें तो शीर्ष अदालत का आज का रुख काबिलेतारीफ है। जस्टिस सूर्यकांत को इस बात के लिए लंबे अरसे तक याद किया जाएगा कि सत्ता के नशे में चूड़ मतांधों को होश में कैसे लाया जा सकता है।
Prophet Mohammad controversy : आखिर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्या कह दिया
बता दें कि शुक्रवार को भाजपा से निलंबित नेता नूपुर शर्मा ( Nupur sharma ) की उस याचिका पर 1 जुलाई को सुनवाई हुई जिसके तहत उन्होंने ये मांग की थी कि उनके खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर को दिल्ली स्थानांतरित कर दी जाए। इस मसले पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि निलंबित भाजपा नेता नुपुर शर्मा की पैगंबर मुहम्मद ( Prophet Mohammad ) पर टिप्पणियों ने खाड़ी देशों में भारी गुस्सा पैदा किया। देश में विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया। इसके लिए उन्हें पूरे देश से उसी टीवी पर जाकर माफी ( apologize ) मांगनी चाहिए, जिसके एंकर ने उनसे प्रोवोकेटिव सवाल पूछे थे। देश में जो हो रहा है उसके लिए वे अकेले ही जिम्मेवार हैं।
जस्टिस सूर्यकांत (Justice Suryakant ) ने कहा कि हमने इस पर बहस देखी कि उसे कैसे उकसाया गया, लेकिन जिस तरह से उसने यह सब कहा और बाद में कहा कि वह एक वकील हैं, यह शर्मनाक है। उन्हें धमकियों का सामना करना पड़ता है या वह सुरक्षा के लिए खतरा बन गई हैं? आपके बयान के लहजे ने आपके अड़ियल और अहंकारी चरित्र" को दिखाया। जस्टिस सूर्यकांत (Justice Suryakant ) यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा कि क्या हुआ अगर वह किसी पार्टी की प्रवक्ता थीं। उन्हें लगता है कि उनके पास सत्ता का बैकअप है और देश के कानून का सम्मान किए बिना कोई भी बयान दे सकती हैं।
इतना ही नहीं, उन्होंने दिल्ली पुलिस ने पूछा कि अभी तक दर्ज एफआईआर के तहत र्कारवाई क्या हुई, उन्होंने कार्रवाई क्यों नहीं की, अगर टीवी एंकर ने प्रोवोकेटिव सवाल पूछे हैं तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई हो, अगर अन्य प्रवक्ताओं ने उकसाने वाले बयान दिए हैं तो उनके खिलाफ अभी तक केस दर्ज क्यों नहीं हुए।