मासिक धर्म के लिए मिले हर महीने 3 दिन की छुट्टी, क्योंकि यूपी के स्कूलों के टॉयलेट हैं बदहाल
(महिला शिक्षकों का कहना है कि प्राथमिक विद्यालयों में 60-70 प्रतिशत से अधिक शिक्षक महिलाएं हैं।)
जनज्वार। उत्तर प्रदेश की महिला शिक्षकों ने मांग की है कि मासिक धर्म के दौरान हर महीने उन्हें तीन छुट्टी दी जाएं। महिला शिक्षक एसोसिएशन का कहना है कि मासिक धर्म के दौरान उन्हें परेशानी होती है क्योंकि सरकारी स्कूलों के टॉयलेट बदहाल स्थिति में हैं। महिला शिक्षकों ने इसे अब अभियान बनाने का मन बना लिया है। उन्होंने राज्य सरकार के कई मंत्रियों, सार्वजनिक क्षेत्र के लोगों से भी संपर्क किया है।
महिला शिक्षक एसोसिएशन की मौजूदगी उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में 50 जिलों में है। एसोसिएशन की अध्यक्ष सुलोचना मौर्य कहती हैं, "ज्यादातर सरकारी स्कूलों में महिला शिक्षकों को 200-400 बच्चों के साथ ही टॉयलेट साझा करना पड़ता है। यहां साफ-सफाई की कमी भी होती है। ऐसे में ज्यादातर महिला शिक्षकों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।''
सुलोचना आगे कहती हैं, "कई बार महिला शिक्षक पानी नहीं पीतीं ताकि उन्हें बार-बार शौचालय न जाना पड़े। इस वजह से उन्हें यूरेनरी इंफेक्शन का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में महिलाओं की परेशानी तब और ज्यादा बढ़ जाती है जब उन्हें मासिक धर्म होता है। कई महिला शिक्षकों को 30-40 किमी दूर जाकर पढ़ाना पड़ता है। यह एसोसिएशन महिला शिक्षकों की चिंता के लिए बनाया गया है क्योंकि अधिकांश शिक्षक एसोसिएशन पुरुष ही चलाते हैं, जिनमें महिलाओं की समस्याओं पर चर्चा नहीं होती है।"
शिक्षिका प्रियंका प्रियाश्री अपने फेसबुक पोस्ट में लिखती हैं, "महिला शिक्षिकाओं के संगठन की पीरियड लीव की मांग के पीछे दिया गया तर्क जो शौचालय को लेकर है, वह 'कायाकल्प' (योगी सरकार द्वार चलाई गई योजना) का संकल्प ही तोड़ रहा। बात निकली हैं तो दूर तलक जाएगी...मामला अगर सिर्फ उत्तर प्रदेश तक होता तो अलग बात थी लेकिन पीरियड लीव की मांग के पीछे जो बुनियादी समस्याएं हैं, सरकार उनके बारे में मानती ही नहीं है कि वो समस्याएं हैं।
प्रियंका आगे लिखती हैं, "पीरियड लीव अब केवल छुट्टी का मामला नहीं है बल्कि ये प्रदेश के प्रबुद्ध वर्ग की हेल्थ और हाइजीन का भी मामला बन रहा है। बात हमारी सहमति या असहमति की नहीं, बात महिला शिक्षिकाओं के स्वास्थ्य को लेकर बुनियादी सुविधाओं की भी है। सरकार लीव अगर नहीं भी दे तो भी संगठन की सफलता इस बात में है कि महिला शिक्षिकाओं के स्वास्थ्य को लेकर एक बहस छिड़ गई है। आने वाले समय में स्कूल की बुनियादी जरूरत को पूरी करें। ऑल द बेस्ट।"
महिला शिक्षकों का कहना है कि प्राथमिक विद्यालयों में 60-70 प्रतिशत से अधिक शिक्षक महिलाएं हैं। जबकि हमें शिक्षक संघों में सांकेतिक पद दिए जाते हैं, इन पर आमतौर पर पुरुषों का वर्चस्व होता है और वो मासिक धर्म जैसे मुद्दों को नहीं उठाते हैं लेकिन हम महिलाओं के लिए यह चिंता का बड़ा विषय है।
वहीं यूपी के सरकारी स्कूलों की हालत को लेकर कागजों पर सब चंगा सी है। डीआईएसई के 2017-18 के आंकड़ों की मानें तो राज्य में 95.9 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था है जो कि राष्ट्रीय औसत 93.6 प्रतिशत से बहुत अधिक है।