Tripura Violence : पत्रकार श्याम मीरा सिंह सहित 101 मुस्लिम युवाओं पर लगा UAPA, भारत में नफरत के खिलाफ आवाज उठाना भी हुआ जुर्म
Tripura Violence : त्रिपुरा में चल रही हिंसक घटनाओं को लेकर पत्रकार श्याम मीरा सिंह सहित 101 मुस्लिम युवाओं को सरकार ने स्पेशल दिवाली तोहफा दिया है। श्याम मीरा सिंह के तीन शब्दों के एक ट्वीट पर त्रिपुरा पुलिस ने UAPA के तहत मुक़दमा दर्ज किया है। इस मसले पर पत्रकार ने फेसबुक पोस्ट लिखकर बताया कि, त्रिपुरा पुलिस की FIR कॉपी मुझे मिल गई है, पुलिस ने एक दूसरे नोटिस में मेरे एक ट्वीट का ज़िक्र किया है। ट्वीट था- Tripura Is Burning" त्रिपुरा की भाजपा सरकार ने मेरे तीन शब्दों को ही आधार बनाकर UAPA लगा दिया है।
For writing only these 3 words "Tripura is burning", BJP Government of Tripura has imposed UAPA on me. I want to reiterate once again, I will never hesitate to stand up for justice. PM of my country might be a coward, We journalists are not.
— Shyam Meera Singh (@ShyamMeeraSingh) November 6, 2021
मैं आपकी जेलों से नहीं डरता. pic.twitter.com/pw5OrZlDRp
UAPA अकेले मुझपर नहीं लगा है, मेरे अलावा 101 लोगों पर भी लगा है, वे सब के सब मुस्लिम है। ये दिखाता है भारत सरकार अपने अल्पसंख्यकों के साथ कैसा बर्ताव कर रही है। ये लड़ाई मेरी नहीं, न मेरे अधिकारों को बचाने की है बल्कि ये लड़ाई उन निर्दोष बच्चों को बचाने की है जिन्हें शायद ही कोई लीगल मदद मिलेगी। ये शर्मनाक है कि भारतवासी तालिबान पर तो बोलते हैं लेकिन हिंदू तालिबान पर चुप हैं।
आप मेरे साथ खड़े रहे इसके लिए शुक्रिया, लेकिन आप मेरी चिंता न करें। मेरी आपसे अपील है, इस मुद्दे को मुझसे हटाकर "Muslim atrocities" पर केंद्रित करें। इस देश के करोड़ों मुसलमानों के सामान्य अधिकारों को भी कुचला जा रहा है। अगर हिंदुओं में ज़रा सी भी इंसानियत बची है तो उनका साथ दें।
हम सब आपके और तमाम साथियों के साथ हैं।
— Sandeep Singh (@ActivistSandeep) November 6, 2021
श्याम मीरा सिंह आगे लिखते हैं, 'मेरा इस बात में पक्का यक़ीन है कि अगर पूरा मुल्क ही सोया हुआ हो तब व्यक्तिगत लड़ाइयाँ भी अत्यधिक महत्वपूर्ण बन जाती हैं। कुछ भी बोलने कहने से पहले हज़ार बार विचार किया कि मैं अपनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हूँ कि नहीं। संविधान और इसके मूल्यों के लिए लड़ने वाली लड़ाई किसी ख़ास समाज को बचाने की लड़ाई नहीं है बल्कि अपने खुद के अधिकार, घर, परिवार, खेत खलिहानों, पेड़ों, बगीचों, चौराहों को बचाने की लड़ाई है। इसलिए अगर सामूहिक रूप से लड़ने का वक्त अगर ये देश अभी नहीं समझता है तो व्यक्तिगत लड़ाई ही सही।
नफ़रत के ख़िलाफ़ संवैधानिक तरीक़े से बात रखना भी अगर जुर्म है, जोकि नहीं है.. पर फिर भी अगर इंसानियत, संविधान, लोकतंत्र और मोहब्बत की बात करना जुर्म है तो ये जुर्म बार बार करने को दिल करता है। इसलिए कहा कि UAPA लगने की खबर सुनते ही पहली दफ़ा यही ख़्याल आया कि अगर इंसानियत की बात रखना जुर्म है तो ये जुर्म मैं बार बार करूँगा। इसलिए मुस्कुरा दिया।
एक नजर जानिए क्या है UAPA कानून?
सबसे पहले आपको बता दें कि UAPA का फुल फॉर्म Unlawful Activities (Prevention) Act होता है। इसका मतलब है, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम। इस कानून का मुख्य काम आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है। इस कानून के तहत पुलिस ऐसे आतंकियों, अपराधियों या अन्य लोगों को चिह्नित करती है, जो आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं, इसके लिए लोगों को तैयार करते हैं या फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।
इस मामले में एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को काफी शक्तियां होती है। यहां तक कि एनआईए महानिदेशक चाहें तो किसी मामले की जांच के दौरान वह संबंधित शख्स की संपत्ति की कुर्की-जब्ती भी करवा सकते हैं।
कब और किस मजबूती से लाया गया कानून?
यूएपीए कानून 1967 में लाया गया था। इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत दी गई बुनियादी आजादी पर तर्कसंगत सीमाएं लगाने के लिए लाया गया था। पिछले कुछ सालों में आतंकी गतिविधियों से संबंधी POTA और TADA जैसे कानून खत्म कर दिए गए, लेकिन UAPA कानून अब भी मौजूद है और पहले से ज्यादा मजबूत है।
अगस्त 2019 में ही इसका संशोधन बिल संसद में पास हुआ था, जिसके बाद इस कानून को ताकत मिल गई कि किसी व्यक्ति को भी जांच के आधार पर आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। पहले यह शक्ति केवल किसी संगठन को लेकर थी। यानी इस एक्ट के तहत किसी संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाता था। सदन में विपक्ष को आपत्ति पर गृहमंत्री अमित शाह का कहना था कि आतंकवाद को जड़ से मिटाना सरकार की प्राथमिकता है, इसलिए यह संशोधन जरूरी है।
इस कानून के तहत किसी व्यक्ति पर शक होने मात्र से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं होगा। आतंकवादी का टैग हटवाने के लिए उसे कोर्ट की बजाय सरकार की बनाई गई रिव्यू कमेटी के पास जाना होगा। हालांकि बाद में कोर्ट में अपील की जा सकती है।
कितना बड़ा है UAPA का दायरा?
UAPA कानून के प्रावधानों का दायरा बहुत बड़ा है। इसी वजह से इसका इस्तेमाल अपराधियों के अलावा एक्टिविस्ट्स और आंदोलनकारियों पर भी हो सकता है। UAPA के सेक्शन 2(o) के तहत भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल करने को भी गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल किया गया है। हालांकि एक्टिविस्ट आपत्ति जताते रहे हैं कि महज सवाल करना गैरकानूनी कैसे हो गया? इस कानून के तहत 'भारत के खिलाफ असंतोष' फैलाना भी कानूनन अपराध है। हालांकि असंतोष को पूरी तरह परिभाषित नहीं किया गया है।
इस कानून की कई धाराओं में कठोर प्रावधान
UAPA में धारा 18, 19, 20, 38 और 39 के तहत केस दर्ज होता है। धारा 38 तब लगती है जब आरोपी के आतंकी संगठन से जुड़े होने की बात पता चलती है। धारा 39 आतंकी संगठनों को मदद पहुंचाने पर लगाई जाती है। इस एक्ट के सेक्शन 43D (2) में किसी शख्स की पुलिस कस्टडी की अवधि दोगुना करने का प्रावधान है। इस कानून के तहत पुलिस को 30 दिन की कस्टडी मिल सकती है। वहीं न्यायिक हिरासत 90 दिन की भी हो सकती है। बता दें कि अन्य कानूनों में अधिकतम अवधि 60 दिन ही होती है।