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विधानसभा सचिवालय से हटाए गए कर्मचारियों पर हाईकोर्ट की रोक को माले ने बताया आरोपियों को बचाने का रास्ता

Janjwar Desk
15 Oct 2022 3:30 PM GMT
विधानसभा सचिवालय से हटाए गए कर्मचारियों पर हाईकोर्ट की रोक को माले ने बताया आरोपियों को बचाने का रास्ता
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विधानसभा में बैक डोर से नियुक्ति पाए कर्मचारियों को यह बच निकलने का रास्ता इसलिए मिल पाया, क्योंकि इससे पहले उनको नियुक्त करने वालों यानि विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेम चंद्र अग्रवाल के विरुद्ध कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई गयी...

देहरादून। विधानसभा के बर्खास्त कर्मचारियों की नियुक्ति पर उच्च न्यायालय से लगी रोक को सरकार की स्टंटबाजी का हिस्सा बताते हुए भाकपा माले ने दोनों पूर्व विधानसभा अध्यक्षों की गिरफ्तारी की मांग की है। शनिवार 15 अक्टूबर को विधानसभा से हटाए गए कर्मचारियों पर उच्च न्यायालय की लगाई रोक के बाद भाकपा माले के गढ़वाल प्रभारी इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि इन कर्मचारियों की न तो नियुक्तियों में ही और न ही इन्हें हटाते समय किसी वैधानिक प्रक्रिया का पालन किया गया, जिस वजह से इस अवैधानिकता का लाभ नियुक्ति और बर्खास्तगी, दोनों ही बार बैक डोर इंट्री से आये कर्मचारियों को हुआ।

इंद्रेश ने आरोप लगाया कि विधानसभा के इन बर्खास्त कर्मचारियों को बच निकलने का यह रास्ता इसलिए दिया गया क्योंकि पूर्व विधानसभा अध्यक्षों के करीबी हैं, उनकी कृपा से विधानसभा में नियुक्ति पाए हुए हैं। अदालती रास्ते से राज्य की सत्ता में बारी बारी बैठने वाले भाजपा-कांग्रेस के चहेतों को अवैधानिक तरीके से बच निकलने का रास्ता भाजपा सरकार द्वारा दिया गया है। इसमें न्याय की आस में बैठे प्रदेश के आम युवाओं के साथ एक बार फिर छल किया गया है।

विधानसभा में बैक डोर से नियुक्ति पाए कर्मचारियों को यह बच निकलने का रास्ता इसलिए मिल पाया, क्योंकि इससे पहले उनको नियुक्त करने वालों यानि विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेम चंद्र अग्रवाल के विरुद्ध कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई गयी। कानूनी रूप से गलत नियुक्ति पाने वाले से गलत नियुक्ति करने वाला अधिक जिम्मेदार है, लेकिन उत्तराखंड सरकार और विधानसभा अध्यक्ष द्वारा जान-बूझकर इस कानूनी पहलू की उपेक्षा की गयी।

भाकपा (माले) एक महीना पहले ही विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर यह माँग की गयी थी कि विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेम चंद्र अग्रवाल के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 एवं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत मुकदमा दर्ज करके उनको गिरफ्तार किया जाए।

यह कार्यवाही अमल में लाने के बाद ही बर्खास्त कर्मचारियों की बर्खास्तगी को अदालत में सही ठहराया जा सकेगा, अन्यथा की दशा में तो यह स्पष्ट है कि पुष्कर सिंह धामी सरकार और विधानसभा अध्यक्ष इन कर्मचारियों की बर्खास्तगी के स्टंट पर वाहवाही बटोरकर इन्हें बच निकलने का रास्ता दे रहे हैं।

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