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यूपी में काला पानी की सजा खत्म, जानिए आखिरी बार कब, किसे और क्यों दी गई थी यह सजा

Janjwar Desk
18 Aug 2022 12:47 PM GMT
यूपी में काला पानी की सजा खत्म, जानिए आखिरी बार कब, किसे और क्यों दी गई थी यह सजा
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काला पानी की सजा कैदियों को पहले दी जाती थी। काला पानी की सजा का नाम सुनते ही कैदियों की रूह कांप जाती थी। दरअसल, यह एक जेल थी, जिसे सेल्यूलर जेल के नाम से जाना जाता था...

काला पानी की सजा कैदियों को पहले दी जाती थी। काला पानी की सजा का नाम सुनते ही कैदियों की रूह कांप जाती थी। दरअसल, यह एक जेल थी, जिसे सेल्यूलर जेल के नाम से जाना जाता था। आज भी लोग इसे इसी नाम से जानते हैं। यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। इसे अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाया गया था। यह जेल भारत की भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी। काला पानी का भाव सांस्कृतिक शब्द काल से बना माना जाता है जिसका अर्थ होता है समय या मृत्यु।

काला पानी की सजा खत्म

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर नई जेल नियमावली लागू की गई है। अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया कि जेल के नियमों में बदलाव किया गया है और पोर्ट ब्लेयर में 'काला पानी' की सजा 100 साल बाद समाप्त कर दी गई है। नए नियमों में अपराधियों के रहने की स्थिति में सुधार, बल्कि उनकी शिक्षा और पेशेवर कौशल की उन्नति को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा प्रौद्योगिकी के अधिकतम उपयोग पर भी ध्यान दिया गया है।

नई जेल नियमावली

नई जेल नियमावली के अंतर्गत मुख्य सचिव ने कहा कि सुधारों के साथ अब से फास्ट एंड सिक्योर्ड ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डस पर सुप्रीम कोर्ट से अदालत के आदेशों को इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से सुरक्षित रूप से प्रसारित करने के लिए एक सॉफ्टवेयर अब पूरे राज्य में होगा। अवनीश कुमार अवस्थी ने आगे कहा कि इसका उद्देश्य ऐसी स्थिति से बचना है जहां सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें जमानत दिए जाने के बाद भी कैदियों की रिहाई में देरी होती है। केवल जेल अधिकारियों को रिहाई आदेश की प्रमाणित हार्ड कॉपी मिलने में देरी के आधार पर ये निर्णय लिया गया है।

कालापानी की सजा सबसे पहले किसे मिली

काला पानी की सजा पर यानी सेल्युलर जेल में सबसे पहले 200 विद्रोहियों को लाया गया। उन्हें जेलर डेविड बेरी और मेजर जेम्स पेटीसन वॉकर की सुरक्षा में यहां लाया गया था। इसके बाद 733 विद्रोहियों को कराची, जो कि अब पाकिस्तान में है, से यहां लाया गया। न केवल भारत बल्कि बर्मा से भी यहां सेनानियों को सजा सुनाए जाने के बाद कैदी बनाकर यहां लाया गया था।

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