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UP : भाजपा के मुकाबले में मुख्य चेहरा बने रहने की जुगत में अखिलेश, बिहार परिणामों का भी पड़ेगा असर
जनज्वार। बिहार विधानसभा चुनाव का मतदान समाप्त हो गया है और अब सिर्फ मंगलवार, 10 नवंबर को आने वाले उसके चुनाव परिणाम का इंतजार है। इस बीच दो बड़े राज्यों पश्चिम बंगाल व उत्तरप्रदेश में चुनाव की सरगर्मी लगातार तेज होती जा रही है। पश्चिम बंगाल में पांच महीने बाद 2021 की शुुरुआती गर्मियों में चुनाव होंगे तो उत्तरप्रदेश में 14 महीने बाद 2022 के फरवरी-मार्च में चुनाव होंगे। उत्तरप्रदेश में भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ इस वक्त सत्ता में है और उसके मुकाबले में राज्य की दो बड़ी पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी है। लेकिन, दो धु्रुवों पर बंट कर अब राजनीति होती है, उसमें उस पार्टी या गठबंधन को फायदा होगा जो सत्ताधारी भाजपा से वास्तविक रूप से मजबूती से लड़ती दिखेगी।
ऐसे में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद के कुनबे का विस्तार करते हुए भाजपा से मुख्य मुकाबले में दिखने की पूरी जुगत में हैं। सोमवार को अखिलेश यादव अपने कुनबे का विस्तार करते हुए कई कांग्रेस व बसपा नेताओं को अपने दल में शामिल करेंगे। आज पूर्व सांसद कैलाशनाथ सिंह यादव और उनके बेटे सुनील यादव सहित दूसरे दलों के कई नेता सपा में शामिल होने वाले हैं।
मालूम हो कि हाल में संपन्न हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान अखिलेश ने बसपा के आधा दर्जन विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया और उस मायावती के तीखे हमले के बाद भी रणनीतिक चुप्पी साध ली। मायावती ने गुस्से में यहां तक कह दिया कि वे सपा को हराने के लिए किसी को भी यहां तक कि भाजपा को भी समर्थन देंगी। इसके बाद सपा ने राज्य में मायावती की बसपा को भाजपा की बी टीम बताने का अभियान छेड़ दिया। सपा को इससे फायदा होना लगभग तय है क्योंकि भाजपा के खिलाफ नाराज लोगों का धु्रवीकरण उसकी ओर अधिक होगा।
यहां यह ध्यान देने की बात है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा को राजनीतिक लाभ इसलिए अधिक हुआ क्योंकि वह ममता बनर्जी की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस से वाम मोर्चे की तुलना में अधिक मजबूती व तीखे अंदाज में लड़ती दिखती रही। वहीं, बिहार में नीतीश के नेतृत्व वाले जदयू के खिलाफ मजबूती से लड़ने का लाभ तेजस्वी यादव के राजद को होने की संभावना है। ठीक इसी तरह अखिलेश भाजपा के खिलाफ मजबूती से लड़ते दिखना चाहेंगे।
अगर बिहार में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बन जाती है तो इससे भाजपा विरोध का माहौल बनेगा, जिसका लाभ पड़ोसी उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। ऐसे में यह भी संभावना है कि भाजपा विरोधी की पहली पसंद के रूप में अखिलेश की समाजवादी पार्टी उत्तरप्रदेश में और मजबूत होगी।
यह भी संभावना मजबूत है कि इस बार अखिलेश यादव 2017 की तुलना में गठबंधन को लेकर अधिक सतर्कता भरा व्यवहार करेंगे, क्योंकि इससे उन्हें विधानसभा व लोकसभा चुनाव में कोई लाभ नहीं हुआ।