Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

Bavani Imali Fatehpur: अंग्रेजी क्रूरता की गवाह बावनी इमली, 52 क्रांति वीरों के शहादत की दिलाती है याद

Janjwar Desk
24 Jun 2022 10:00 AM GMT
Bavani Imali Fatehpur: अंग्रेजी क्रूरता की गवाह बावनी इमली, 52 क्रांति वीरों के शहादत की दिलाती है याद
x

Bavani Imali Fatehpur: अंग्रेजी क्रूरता की गवाह बावनी इमली, 52 क्रांति वीरों के शहादत की दिलाती है याद

Bavani Imali Fatehpur: भारत की वो एकलौती ऐसी घटना जब अंग्रेज़ों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था, पर इतिहासकारों की पूर्वाग्रही तरीकों की इतनी बड़ी घटना को आज तक गुमनामी के अंधेरों में ढके रखा।

फतेहपुर से लईक अहमद की रिपोर्ट

Bavani Imali Fatehpur: भारत की वो एकलौती ऐसी घटना जब अंग्रेज़ों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था, पर इतिहासकारों की पूर्वाग्रही तरीकों की इतनी बड़ी घटना को आज तक गुमनामी के अंधेरों में ढके रखा।

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित बावनी इमली एक प्रसिद्ध इमली का पेड़ है, जो भारत में शहीद स्मारक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इसी इमली के पेड़ पर 28 अप्रैल 1858 को गौतम क्षत्रिय, जोधा सिंह अटैया और उनके इक्यावन साथी फांसी पर झूले थे। यह स्मारक फतेहपुर जिले के बिन्दकी तहसील स्थित खजुआ कस्बे के निकट मुगल रोड पर है।

यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगों का विश्वास है कि उस नरसंहार के बाद उस पेड़ का विकास बन्द हो गया है।


10 मई, 1857 को जब बैरकपुर छावनी में आजादी का शंखनाद किया गया, तो 10 जून,1857 को फतेहपुर में क्रान्तिवीरों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया जिनका नेतृत्व कर रहे थे जोधासिंह अटैया। फतेहपुर के डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खाँ भी इनके सहयोगी थे। इन वीरों ने सबसे पहले फतेहपुर कचहरी एवं कोषागार को अपने कब्जे में ले लिया। जोधासिंह अटैया के मन में स्वतन्त्रता की आग बहुत समय से लगी थी। उनका सम्बन्ध तात्या टोपे से बना हुआ था। मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए इन दोनों ने मिलकर अंग्रेजों से पांडु नदी के तट पर टक्कर ली। आमने-सामने हुए संग्राम के बाद अंग्रेजी सेना मैदान छोड़कर भाग गयी। जिसके बाद इन वीरों ने कानपुर में अपना झंडा गाड़ दिया।

जोधासिंह के मन की ज्वाला इतने पर भी शान्त नहीं हुई। उन्होंने 27 अक्तूबर, 1857 को महमूदपुर गाँव में एक अंग्रेज दरोगा और सिपाही को उस समय जलाकर मार दिया, जब वे एक घर में ठहरे हुए थे। सात दिसम्बर, 1857 को इन्होंने गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला कर अंग्रेजों के एक पिट्ठू का वध कर दिया। जोधासिंह ने अवध एवं बुन्देलखंड के क्रान्तिकारियों को संगठित कर फतेहपुर पर भी कब्जा कर लिया।

आवागमन की सुविधा को देखते हुए क्रान्तिकारियों ने खजुहा को अपना केन्द्र बनाया। किसी देशद्रोही मुखबिर की सूचना पर प्रयाग से कानपुर जा रहे कर्नल पावेल ने इस स्थान पर एकत्रित क्रान्ति सेना पर हमला कर दिया। कर्नल पावेल उनके इस गढ़ को तोड़ना चाहता था, परन्तु जोधासिंह की योजना अचूक थी। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सहारा लिया, जिससे कर्नल पावेल मारा गया। अब अंग्रेजों ने कर्नल नील के नेतृत्व में सेना की नयी खेप भेज दी। इससे क्रान्तिकारियों को भारी हानि उठानी पड़ी। लेकिन इसके बाद भी जोधासिंह का मनोबल कम नहीं हुआ। उन्होंने नये सिरे से सेना के संगठन, शस्त्र संग्रह और धन एकत्रीकरण की योजना बनायी। इसके लिए उन्होंने छद्म वेष में प्रवास प्रारम्भ कर दिया, पर देश का यह दुर्भाग्य रहा कि वीरों के साथ-साथ यहाँ देशद्रोही भी पनपते रहे हैं। जब जोधासिंह अटैया अरगल नरेश से संघर्ष हेतु विचार-विमर्श कर खजुहा लौट रहे थे, तो किसी मुखबिर की सूचना पर ग्राम घोरहा के पास अंग्रेजों की घुड़सवार सेना ने उन्हें घेर लिया। थोड़ी देर के संघर्ष के बाद ही जोधासिंह अपने 51 क्रान्तिकारी साथियों के साथ बन्दी बना लिये गये।


28 अप्रैल, 1858 को मुगल रोड पर स्थित इमली के पेड़ पर उन्हें अपने 51 साथियों के साथ फाँसी दे दी गयी। लेकिन अंग्रेजो की बर्बरता यहीं नहीं रुकी । अंग्रेजों ने सभी जगह मुनादी करा दिया कि जो कोई भी शव को पेड़ से उतारेगा उसे भी उस पेड़ से लटका दिया जाएगा । जिसके बाद कई दिनों तक शव पेड़ों से लटकते रहे और उन्हें चील गिद्ध खाते रहे। अंततः महाराजा भवानी सिंह ने अपने साथियों के साथ 4 जून को जाकर शवों को पेड़ से नीचे उतारा और उनका अंतिम संस्कार किया गया।

जोधा सिंह अटैया पार्क को नही मिली तरजीह

ठाकुर जोधा सिंह अटैया के छठवी पीढ़ी आज भी पधारा रसूलपुर गांव में रहती है। वंशज चन्द्र पाल सिंह दद्दू बाबा ने हमें बताया कि रसूलपुर में करीब पांच साल पहले चार एकड़ में पार्क बनाया गया। लेकिन अभी तक जोधा सिंह अटैया की प्रतिमा नहीं स्थापित की गई। पार्क की भूमि में बाउंड्री ना होने से लोगों ने काफी हिस्से में कब्जा कर लिया है। जो सोलर लाइट भी लगाई गई वह भी दो सालों से खराब है। इसकी जानकारी प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को भी दी गई परन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने बताया की पार्क बनवाने के लिए मिली धनराशि भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई।

गुप्त सदन भवन और सुरंग का मिट गया निशान

रसूलपुर में गुप्त सदन आनंद भवन भी था। जिसमें दो अण्डर ग्राउंड कमरे और बरामदा भी था। इसमे जाने के लिए सुरंग का रास्ता था, जिसमें क्रांतिकारियों की गोपनीय बैठके होती थीं। अब इसका नामोनिशान मिट गया है। और यहां पर मकान बन गये। चंद्र पाल बाबा ने प्रशासन से इसे सुरक्षित करने की मांग की है। जिस मकान में जोधासिंह अटैया रहा करते थे वो अब खण्डहर में तब्दील हो चुका है।

Janjwar Desk

Janjwar Desk

    Next Story

    विविध