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कार्डियोलाजी हादसा : 8 घण्टे गैस चैंबर बनी रही बिल्डिंग, होली के दिन होने से टल गई बड़ी विपदा
जनज्वार, कानपुर। रविवार को होलिका दहन के दिन शहर का हृदय रोग संस्थान (एलपीएस) बड़ी आपदा से बच गया। समय रहते यदि राहत कार्य ना किया गया होता तो मरने वालों का आंकड़ा आधा शतक छू सकता था, जो त्योहार के दिन को मातम में तब्दील कर सकता था। अस्पताल में आग लगने के समय लगभग 140 मरीज भर्ती थे। अचानक आग लगने से अफरातफरी मच गई। देखते ही देखते पूरा आईसीयू वार्ड गैस चैंबर में बदल गया। भगदड़ से अब तक चार मरीजों के मरने की जानकारी है।
कार्डियोलाजी में भर्ती 140 मरीजों में से 17 मरीज आईसीयू में भर्ती थे। रविवार 28 मार्च को आईसीयू में भर्ती मीरपुर के 60 वर्षीय टेकचंद्र की मौत हो गई। वार्ड में मौजूद डॉक्टर राहुल रंजन टेकचंद्र का डेथ सर्टिफिकेट बनवाने दूसरे खण्ड पर जा रहे थे कि तभी उन्हें आईसीयू के स्टोर रूम से धुआं उठता हुआ दिखाई दिया। राहुल रंजन ने तत्काल अन्य स्टॉफ को सूचना दी। धुआं आईसीयू में भरना शुरू हो गया और थोड़ी ही देर में मरीजों का सांस लेना मुश्किल होने लगा। भगदड़ मची तो डॉक्टरों और स्टॉफ ने मिलकर रोगियों को बाहर निकालना शुरू किया।
सूचना पर पहुँची पुलिस और दमकल ने धुआं बाहर निकालने के लिए खिड़की और शीशे तोड़े। इसी बीच न्यू बिल्डिंग में एडमिट रोगी 60 वर्षीय इमाम अली की मौत हो गई। इमाम को पेस मेकर लगा था। पीएम रिपोर्ट के मुताबिक इमाम और टेकचंद्र की मौत हार्ट अटैक की वजह से होनी बताई गई है। इसके बाद घाटमपुर नौरंगा निवासी 85 वर्षीय रसूलन सहित बांदा के अतर्रा निवासी 52 वर्षीय महेश प्रसाद की भी मौत हो गई। इन दोनो की नाजुक हालत के बाद हैलट शिफ्ट किया गया था।
कूड़ा निकले आग बुझाने के उपकरण
कार्डियोलाजी के आग कांड में प्रशासन की बड़ी लापरवाही सामने आई है। कार्डियोलाजी व आईसीयू में खराब हो चुके फायर उपकरण लगे मिले। जिसके चलते शुरूआत में आग बुझाने का प्रयास ही नहीं किया जा सका। तो कार्डियोलाजी बिना फायर एनओसी के चल रहा पाया गया। दमकल विभाग का कहना है कि कार्डियोलाजी को कोई भी एनओसी नहीं दी गई है। यह बात हैरान करती है कि यहां रोजाना सैंकड़ों मरीजों का आना-जाना रहने के साथ ही सैंकड़ों की तादाद में रोज मरीज आते भी हैं, तब इतनी बड़ी लापरवाही बरती जा रही थी।
शीशे तोड़ने में छूटे पसीने
आईसीयू वार्ड चारों तरफ से पैक है। इसके मोटे शीशे भी जबरदस्त तौर पर मजबूती से फिट थे। जब आग लगी तो मेन दरवाजे के अलावा किसी को भी कहीं से बाहर निकलने की जगह नहीं मिली। दमकल व पुलिस के जवानो ने इन शीशों को तोड़ा, तब जाकर लोग बाहर निकले। शीशे इतने मजबूत थे कि सरिया व हथौड़े से तोड़े गए। डीजी फायर का कहना है कि आईसीयू जैसी संवेदनशील इमारत में ओपन विंडो होनी जरूरी है।
पुलिस ने दिखाई बड़ी सूझ-बूझ
कार्डियोलाजी में लगी आग की सूचना पर सबसे पहले इंस्पेक्टर स्वरूपनगर अश्वनी कुमार पाण्डेय पहुँचे। आग और धुआं देखकर उन्होने आईसीयू के कांच तोड़ने शुरू किए। इससे अन्दर भरा धुआं बाहर निकलना शुरू हुआ। एडीसीपी वेस्ट डॉ. अनिल कुमार भी मौके पर पहुँचे। अपनी जान दांव पर लगाकर अनिल कुमार खिड़की से अंदर आईसीयू में घुस गए। एक-एक कर मरीजों को बाहर निकालना शुरू किया गया। दमकल टीम और पुलिस के जवानो ने भी भरपूर मोर्चा संभाले रखा। इन सभी की सूझ-बूझ से एक बड़ा हादसा होने से टल गया।