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बंगाल में कमजोर पड़ती भाजपा के लिए माफिया मुख्तार के नाम पर गोदी मीडिया का संजीवनी यज्ञ शुरू
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
'सोनार बांगला' बनाने के नारे और दो सौ सीट जीतने के दावे के साथ बंगाल के चुनावी समर में उतरने वाली भाजपा के सारे विध्वंसक टोटके ममता बनर्जी के जादू के सामने बेअसर साबित होते जा रहे हैं। चुनाव आयोग का टेंटुआ दबाकर मोदी सरकार ने बंगाल में आठ चरणों के चुनाव की घोषणा यह सोचकर करवाई थी कि वह आराम से नफरत के जहर को फैलाकर जनादेश पर कब्जा कर लेगी। लेकिन चुनाव के तीन चरण ही गुजरे हैं और भाजपा के हाथ-पांव फूलते हुए नजर आ रहे हैं। उसका फर्जी राष्ट्रवाद और हिन्दू-मुस्लिम नफरत के आजमाए फार्मूले को ममता बनर्जी बंगाली जातीयता और पहचान के मुद्दे के सहारे बेजान बनाने में सफल होती हुई दिखाई दे रही हैं।
अपने स्वामी को संकट से घिरता हुआ महसूस कर संघ-भाजपा के टुकड़ों पर पलने वाली गोदी मीडिया ने अब उत्तर प्रदेश के माफिया मुख्तार अंसारी के मसले को लेकर संजीवनी यज्ञ शुरू कर दिया है। गोदी मीडिया को उम्मीद है कि अतीत में जिस तरह कई बार वह अपने स्वामी का संकट मोचन करती रही है, शायद इस बार भी माहौल को बदलने में उसे सफलता मिल जाए। लेकिन इस बार वैसा कोई छल कामयाब होता दिखाई नहीं दे रहा है।
भाजपा की चुनावी रैलियों में लोगों ने आना बंद कर दिया है। तारापीठ (जहां प्रसिद्ध तारापीठ मंदिर स्थित है) में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की हालिया चुनावी रैली में दर्शकों की कम उपस्थिति देखकर नड्डा इतने नाराज हो गए कि उन्होंने हेलीकाप्टर को उतारन से इनकार कर दिया और इसके बजाय सीधे स्थानीय पार्टी कार्यालय जाकर इस अपमानजनक अनुभव के लिए स्पष्टीकरण मांगने लगे।
तृणमूल कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को भाजपा में शामिल करने के मसले पर भी भाजपा को अपने ही लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है, जो पार्टी के साथ उस समय भी साथ थे जब भाजपा कोई राजनीतिक शक्ति नहीं बन पाई थी। टीएमसी से निकले लोग प्रधानमंत्री मोदी के "प्रेरणादायक नेतृत्व" के तहत देश की सेवा करने के लिए भाजपा में नहीं आए हैं बल्कि इस आशंका के चलते आए हैं कि कहीं ममता सत्ता कायम नहीं रख पाएंगी तो उनका क्या होगा।
भाजपा के लिए ऐसे लोगों को "समायोजित" करने का अर्थ है कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए टिकट प्रदान करना होगा। इसका मतलब पार्टी के पुराने और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को वंचित होना पड़ेगा। "वंचित" नेता इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं। "पुराने" और "नए" बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच अक्सर लड़ाई होती रहती है और कुर्सियां और टेबल एक दूसरे पर फेंके जाते रहे हैं।
भाजपा के नवनियुक्त अखिल भारतीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय ने हाल ही में "दूसरों के लिए जगह बनाने" की जो बात कही उसको लेकर अटकलें तेज हैं। क्या वह पार्टी छोड़ रहे हैं? क्या वह ममता बनर्जी के खेमे में जाने की कोशिश करेंगे? तत्काल इसकी संभावना नहीं है। मुकुल रॉय कथित तौर पर दुखी हैं क्योंकि सुभेंदु अधिकारी के टीएमसी छोड़ने और भाजपा में शामिल होने के बाद मुकुल को पता चल रहा है कि वह पार्टी में अपना महत्व खो रहे हैं।
निस्संदेह सुभेंदु बंगाल चुनाव में पार्टी का चेहरा बन गए हैं। यह विचार जोर पकड़ रहा है कि पार्टी के जीतने की संभावना नहीं होने पर वह पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा होंगे।
हाल ही में भाजपा के दो विधायक, जो टीएमसी से अलग हो गए थे, विधानसभा भवन में मुख्यमंत्री से मिले और खाद्य और आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिया मलिक और शहरी विकास और नगरपालिका मामलों के मंत्री हकीम की उपस्थिति में 20 मिनट तक बैठक की, ज ममता के करीबी माने जाते हैं। वे अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के लिए क्षेत्र विकास निधि के पैसे जारी करने का अनुरोध करने गए थे। दोनों ने इनकार किया कि वे टीएमसी में वापस आ रहे हैं, लेकिन सीएम के साथ बैठक की खबर ने भगवा पार्टी की रीढ़ को हिला दिया है।
अफवाह यह है कि अधिक निश्चित होने के बाद जिस तरह से हवा बह रही है, कुछ दलबदलू अपनी पुरानी पार्टी में वापस आ सकते हैं।
भाजपा नेता लोगों से वादा कर रहे हैं कि अगर वे जीते तो वे पश्चिम बंगाल को 'सोनार बांग्ला' या स्वर्ण बंगाल में बदल देंगे। लेकिन भाजपा नेताओं द्वारा किए जा रहे लंबे वादे खोखले साबित होते रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले मोदी ने काले धन को विदेशी बैंकों में वापस लाने और सभी के बैंक खाते में 15 लाख रुपये डालने के वादे किए थे और उन वादों को लोग नहीं भूले हैं।
निष्पक्ष पर्यवेक्षकों का कहना है कि टीएमसी दोबारा सत्ता में आएगी, लेकिन कम बहुमत के साथ। हालांकि, टीएमसी द्वारा जीती गई सीटों की संख्या में जीत के मार्जिन के आधार पर, हमेशा यह खतरा रहेगा कि नए चुने गए टीएमसी विधायकों में से कुछ की वफादारी को खरीदने की कोशिश की जाएगी। पैसा पहले से ही पानी की तरह बह रहा है लेकिन यह उस वांछित प्रभाव का उत्पादन नहीं कर रहा है जिसकी भाजपा को उम्मीद थी।
ममता बनर्जी अपने करिश्माई व्यक्तित्व के साथ आज भी जनसाधारण की उम्मीद हैं, विशेषकर ग्रामीण बंगाल की जनता के लिए जो उनकी सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के सबसे बड़े लाभार्थी हैं।
गोदी मीडिया की तरफ से नियमित रूप से कुछ नकली मुद्दे उछाले जाते हैं और ऐसे हर मुद्दे के जरिये मोदी सरकार के टुच्चेपन और अक्षमता को छिपाने की कोशिश की जाती है। मोदी सरकार अगर संविधान और लोकतंत्र को कुचलती है तो उसे भी गोदी मीडिया ऐतिहासिक उपलब्धि के तौर पर परोसती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो संघ के नफरती सिलेबस को जमीन पर उतारने की सौगंध खा रखी है जो कानून-व्यवस्था को ठेंगे पर रखते हुए अनगिनत लोगों को फर्जी मुठभेड़ों में मरवाकर अपनी पीठ ठोंकते रहे हैं और गोदी मीडिया उनको असली हिन्दू शेर के रूप में दुनिया के सामने पेश करती रही है।
इस जुनून में आकर चुनावी फायदे के लिए वे मुख्तार को भी मरवा दें तो कोई अचरज की बात नहीं होगी। तब हिन्दू शेर की जयजयकार से मतदाताओं को अभिभूत करने का सिलसिला शुरू होगा। भले ही देश के संविधान पर स्याही पुत जाये, संघी गिरोह और गोदी मीडिया को कोई परवाह नहीं है।