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उत्तर प्रदेश

अस्पताल में कोरोना मरीजों की हालत और बदइंतजामी को सोशल मीडिया पर उजागर करने वाले प्रोफेसर पर दर्ज हुई FIR

Janjwar Desk
24 Jun 2020 11:41 AM GMT
अस्पताल में कोरोना मरीजों की हालत और बदइंतजामी को सोशल मीडिया पर उजागर करने वाले प्रोफेसर पर दर्ज हुई FIR
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जिस कोरोना पीड़ित के हवाले से प्रोफेसर ने सोशल मीडिया पर पोस्ट, उसी ने अस्पताल में बदइंतजामी की बात का किया खंडन, जिसके बाद प्रोफेसर पर हुई एफआईआर दर्ज...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार, प्रयागराज। कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए प्रयागराज के कोटवा लेवल-1 अस्पताल में बदइंतजामी का आरोप लगाने के मामले में ऑक्टा महासचिव और ईसीसी कालेज के असोसिएट प्रोफेसर डॉ. उमेश प्रताप सिंह पर एफआईआर दर्ज़ करा दी गयी है। यूपी में ऐसा केवल उनके साथ नहीं हुआ है, बल्कि ऐसे मामलों की लम्बी फेहरिस्त है।

यूपी में समस्याओं को सुलझाने पर कम, समस्याओं को उजागर करने वालों से निपटने में ज्यादा उर्जा खर्च की जाती है। एक महिला पत्रकार ने लाकडाउन में पीएम के चुनाव क्षेत्र बनारस की गरीब महिलाओं की व्यथा का प्रकाशन कर दिया तो उसके खिलाफ एफआईआर हो गयी। उससे पहले भी दर्जनों मामलों में खबर लिखने वाले ही दंडित-लांछित किए गए, समस्या क्रिएट करने वाले अफसर-नेता अपनी चमड़ी बचा ले गए।

इसी क्रम में फिर एक एफआईआर और हो गयी है, जिसके दायरे में ढेर सारे मीडिया हाउसेज के आने की आशंका है। कानपुर के संवासिनी कांड को प्रसारित-प्रचारित करने वाले मीडिया संस्थानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गई है।

ईसीसी के डॉ. उमेश प्रताप सिंह ने अस्पताल में भर्ती कोरोना संक्रमित इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लाइब्रेरियन के हवाले से अस्पताल में अव्यवस्था की बात सोशल मीडिया पर वायरल की है, जबकि लाइब्रेरियन ने इसका खंडन कर दिया है और जिला प्रशासन को पत्र भेजकर तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने के लिए डॉ. उमेश प्रताप सिंह के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।

साथ ही लाइब्रेरियन ने अपना वीडियो भी प्रशासन को भेजा है, जिसमें यह कहते हुए सुना जा सकता है कि अस्पताल में सबकुछ ठीक चल रहा है और मरीज को किसी तरह की शिकायत नहीं है। मामले में सीएमओ ने एफआई दर्ज करने के निर्देश दिए थे। ईसीसी में शिक्षक एवं ऑक्टा महासाचिव डॉ. उमेश प्रताप सिंह ने फेसबुक पर लिखा है कि इविवि के लाइब्रेरियन के एक शुभचिंतक ने उन्हें बताया है कि कोटवा में भर्ती लाइब्रेरियन वहां की बदइंतजामी से परेशान हैं।

उन्हें अस्पताल में किसी प्रकार की कोई दवा नहीं दी जा रही है और दिन में एक बार नाप कर काढ़ा दिया जाता है। वहां 25 लोग हैं और एक-एक कमरे में सात-आठ लोग हैं, जिनके बीच केवल दो टॉयलेट हैं और वह भी बेहद गंदे। वहां अव्यवस्था, असुविधा एवं अनहाईजेनिक स्थिति है। लोग डरे हुए हैं और एक-एक दिन काटना मुश्किल है। वहां सफाई कर्मचारी ही नर्स और डॉक्टर की भूमिका में रहता है। डॉक्टर और नर्स 15 फीट दूर से निर्देश देते हैं। डॉ. उमेश प्रताप सिंह की ओर से फेसबुक पर यह मामला वायरल किए जाने के बाद हड़कंप मचा गया और इसके कुछ देर बाद ही लाइब्रेरियन ने इसका खंडन कर दिया।

लाइब्रेरियन ने फेसबुक पर लिखा कि ईसीसी के डॉ. उमेश प्रताप सिंह ने मेरे हवाले से बिल्कुल असत्य एवं भ्रामक बात लिखी है। कहीं न कहीं से ऐसा प्रतीत होता है कि यह मुझे व्यक्तिगतरूप से सामाजिक स्तर पर बदनाम करने की साजिश है। इस अवधि की फोन कॉल की हिस्ट्री निकाल कर देख ली जाए। कई महीने से मेरी डॉ. उमेश प्रताप सिंह से बात नहीं हुई है। अस्पताल में साफ-सफाई के साथ खानपान की संतोषजनक व्यवस्था है। सबकुछ समय पर मिल रहा है। डॉक्टर, नर्स और स्वीपर बार-बार आते हैं। संतोषजनक ढंग से सभी रोगियों की देखभाल की जा रही है। लाइब्रेरियन ने प्रशासन को पत्र और अपना वीडियो भेजकर मांग की है कि तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने वाले के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

उधर, डॉ. उमेश प्रताप सिंह का कहना है कि लाइब्रेरियन ने कोटवा जाने के बाद अपने कई करीबियों से वहां की अव्यवस्था के बारे में बात की थी। मैंने सिर्फ कमी को उजागर किया। मामला सामने आने के बाद लाइब्रेरियन अब खुलकर बोलने से डर रहे हैं। उधर, सीएमओ डॉ. जीएस बाजपेयी ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं।

डॉ. उमेश प्रताप सिंह ने सोशल मीडिया पर लिखा था, कोरोनावायरस रिपोर्ट आने के बावजूद मरीज लाइब्रेरियन को किसी भी प्रकार की कोई शारीरिक परेशानी नहीं है, बुखार भी नहीं है। इसलिए उन्हें सेंटर पर किसी प्रकार की कोई दवा नहीं दी जा रही है। दिन में एक बार नाप कर काढ़ा सभी को दिया जाता है। कोटवा के उस क्वॉरेंटाइन सेंटर पर लगभग 25 लोग हैं। एक-एक कमरे में 7 से 8 लोग हैं। 25 लोगों के बीच में दो टॉयलेट हैं, और वह भी बेहद गंदे। कोई सुविधा नहीं।

उन्होंने कहा है कि फेसबुक पर डॉक्टर उमेश प्रताप सिंह द्वारा जो मुझे उद्धृत करते हुए कोटवा लेवल 1 चिकित्सालय की दुर्दशा के बारे में जो लिखा गया है, वह बिल्कुल असत्य, भ्रामक एवं कहीं ना कहीं से ऐसा प्रतीत होता है कि जो मुझे व्यक्तिगत रुप से सामाजिक स्तर पर बदनाम करने की साज़िश है। इस अवधि के पूरे फोन काल की हिस्ट्री निकालकर देखा जाए तो मेरी कई महीने से उमेश प्रताप सिंह से कोई बात नहीं हुई है। मैं यहां यह स्पष्ट कहना चाहता हूं कि कोटवा लेवल 1 चिकित्सालय की सभी व्यवस्था संतोषजनक है, सभी चिकित्सक कर्मचारी एवं अन्य सभी सहयोगी स्टाफ़ पूर्ण रूप से संतोषजनक ढंग से सभी रोगियों की देखभाल कर रहे हैं और उक्त अस्पताल में साफ़ सफ़ाई के साथ खान पान की भी व्यवस्था भी संतोषजनक है।

इसके जवाब में अस्पताल की अव्यवस्था सोशल मीडिया के माध्यम से सामने रखने वाले डॉ. उमेश प्रताप सिंह ने कहा है कि लाइब्रेरियन डॉ बीके सिंह का बयान बेहद आश्चर्यजनक और व्यथित करने वाला है। मेरा उद्देश्य किसी की भी छवि को खराब करना नहीं है। उद्देश्य सिर्फ व्यवस्थागत कमियों की ओर उंगली उठाना था, जिससे की वहां रह रहे लोगों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें, वे सिर्फ कोरोना से ही डरें अव्यवस्था का शिकार ना हों।

मुझे आश्चर्य है कि इसमें डॉ वीके सिंह की छवि खराब होने की बात कहां है! मेरी डॉक्टर वीके सिंह से कोई बातचीत नहीं हुई है। मेरा उनसे कोई व्यक्तिगत संबंध या परिचय भी नहीं है, लेकिन कल उनके कई शुभचिंतकों ने उनसे बात करने के बाद वहां की कमियों को लेकर चिंता व्यक्त की थी और मैं कोरनोना सेंटर की अव्यवस्था की कहानी पहले हुई कुछ समाचारों और वीडियो के द्वारा देख सुन चुका था। बेहद व्यथित था, इसीलिए सुबह उठते ही समाचार पत्र पढ़ने के बाद मैंने तुरंत यह पोस्ट लगाई थी। उस समय तो उद्देश्य सिर्फ मन की भड़ास निकालना था।

ऑक्टा का एक जिम्मेदार पदाधिकारी होने के नाते और एक जागरूक नागरिक होने के नाते मेरा फर्ज है कि क्वारंटाइन सेंटर की व्यवस्थागत कमियों को उजागर किया जाए, भ्रष्टाचार को उजागर किया जाए, जिससे वहां की कमियों को दूर करके वहां की सुविधाओं को बेहतर किया जा सके। मैं अपनी बात पर अब भी कायम हूं। क्योंकि बीके सिंह ने जो बात कही थी उस बात की पुष्टि उस दिन उनको सांत्वना देने वाले उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त करने वाले ज्यादातर लोगों ने कही थी। डॉ वीके सिंह को पता नहीं किसका डर है, भय है, लोभ है, जिससे वे अपनी ही बातों से मुकर रहे हैं! ईश्वर उनकी रक्षा करे।

मैं हतप्रभ हूं कि वे अब वहां की व्यवस्थाओं की तारीफ करते नहीं अघा रहे हैं और मेरे खिलाफ प्रशासनिक कार्यवाही की मांग कर रहे हैं! मुझे बेहद आश्चर्य और दुख है कि समाज के जिम्मेदार लोग भी अपने निहित स्वार्थों या अपने डर के वशीभूत होकर व्यवस्था गत कमियों को उजागर करने से पीछे हट जाते हैं। और यदि यही स्थिति रही तो इस समाज से भ्रष्टाचार दूर होने वाला नहीं है ।

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