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Gyanvapi Masjid Controversy : 3 दशक बाद सुर्खियों में क्यों है उपासना स्थल एक्ट 1991, विवाद की मूल वजह क्या है?
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Gyanvapi Masjid Controversy : पिछले कुछ समय से बनारस स्थित ज्ञानवापी मस्जिद ( Gyanvapi Masjid case) की देशभर में चर्चा का विषय है। 16 मई को मस्जिद परिसर के सर्वे का काम समाप्त हो गया। हिंदू पक्ष के एक वकील ने शिवलिंग मिलने का दावा किया। इसके बाद अदालत आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने को सील कर दिया गया। मस्जिद के जिस हिस्से से शिवलिंग मिला है उसे वाराणसी जिला अदालत ने सील करने का निर्देश दिया है। बनारस कोर्ट के इस आदेश के बाद से यह विवाद औ ज्यादा गहरा गया है। आइए, हम आपको बताते हैं, क्या है उपासना स्थल विशेष उपबंध अधिनियम 1991 ( worship Act special provision 1991 ) और उसको लेकर विवाद क्यों हैं?
दरअसल, बनारस से सहित देशभर के लोगों में चर्चा इस बात को लेकर है कि इस मामले में आगे क्या होगा, एक तरफ मुस्लिम पक्ष उपासना स्थल विधेयक 1991 ( worship Act 1991 dispute ) पर अमल की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ हिंदू पक्ष इस विधेयक को मौलिक अधिकारों को उल्लंघन मानते हैं। मुस्लिम पक्षों द्वारा 1991 के ऐक्ट का खूब हवाला दिया जा रहा है। इस ऐक्ट का नाम है मूल उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम 1991 (Places of Worship (Special Provisions) Act 1991)। इसे संसद ने पूर्व पीएम नरसिम्हा राव के समय में पारित किया था। इसी अधिनियम को लेकर विवाद है। कहा जा रहा है कि यह संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का हनन है।
इन सबके बीच काशी विश्वनाथ और मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिरों से संबंधित मामलों को कानूनी लड़ाई में लाए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 ( ( worship Act special provision 1991 ) के क्रियान्वयन की मांग की है।
उपासना स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991?
उपासना स्थल विशेष उपबंध अधिनियम 1991 को संसद द्वारा उपासना स्थलों के जबरन परिवर्तन पर रोक लगाने के उद्देश्य से पारित किया गया था। अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने और उसके साथ ही कई मस्जिदों जहां कथित रूप से पहले मंदिर हुआ करते थे को परिवर्तित करने की मांग को लेकर बढ़ रहे सांप्रदायिक उन्माद को शांत करने के लिए तत्कालीन नरसिंह राव की सरकार ने "प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप एक्ट" या "उपासना स्थल अधिनियम" पारित किया था।
उपासना स्थल एक्ट के प्रावधान
उपासना स्थल विशेष उपबंधन अधिनियम 1991 में केवल 7 धाराएं हैं। मूल रूप से इसमें 8 धाराएं थी। धारा 8 को 2001 में एक संशोधन द्वारा रद्द कर दिया गया था।इस अधिनियम की प्रस्तावना के मुताबिक यह एक ऐसा अधिनियम है जो धार्मिक स्थलों के परिवर्तन को निषिद्ध करते हुए धार्मिक स्थलों को 15 अगस्त 1947 की यथास्थिति के अनुरूप उनको उसी रूप में संरक्षित करता है। यह अधिनियम देश के सभी धार्मिक स्थल उसी रूप में संरक्षित करने का प्रावधान करता है जैसा कि वे 15 अगस्त 1947 को थे। इस कानून के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म के उपासना स्थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे जेल भी हो सकती है। यानी 15 अगस्त 1947 को जैसी स्थिति थी, उसे वैसा ही माना जाएगा। इसका मतलब हुआ कि मंदिर मंदिर रहेगा और मस्जिद मस्जिद रहेगी।
अहम सवाल धार्मिक स्थल किसे कहते हैं?
अधिनियम की धारा 2ग के मुताबिक धार्मिक स्थल का अर्थ है एक मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघर, मठ, अथवा अन्य कोई भी जन धार्मिक स्थल जो किसी भी धर्म या संप्रदाय का है या जो किसी भी नाम से जाना जाता हो।
धार्मिक स्थलों के परिवर्तन पर प्रतिबंध
उपासना स्थल विशेष उपबंधन अधिनियम 1991 की धारा 3 ही धार्मिक स्थलों के परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाती है। इस धारा में "परिवर्तन" का अर्थ बहुत व्यापक माना गया है। किसी धार्मिक स्थल का परिवर्तन दो तरह से किया जा सकता है। पहला यदि किसी धार्मिक स्थल का परिवर्तन किसी अन्य धर्म के स्थल के रूप में हो। यदि किसी धार्मिक स्थल का परिवर्तन उसी धर्म के अन्य पंथ के द्वारा ही हो तब भी यह अधिनियम लागू होगा। यह अधिनियम दोनों को पूरी तरह से प्रतिबंधित करता है।
ये हैं धार्मिक स्थलों से जुड़े वाद
अधिनियम की धारा 4 के अनुसार देश के सभी धार्मिक स्थल उसी रूप में रहेंगे जैसा कि वे 15 अगस्त 1947 को थे। अधिनियम की धारा 4 में यह उल्लेख है कि किसी भी धार्मिक स्थल से सम्बंधित यदि कोई भी वाद, अपील या अन्य विधिक कार्यवाही किसी भी न्यायालय, न्यायाधिकरण या प्राधिकरण के समक्ष लंबित है तो इस अधिनियम के पारित होने के साथ ही ऐसे सभी वाद, अपील और अन्य विधिक कार्यवाही को निरस्त मान लिया जाएगा। धारा 4 के उपबंध धार्मिक स्थलों के परिवर्तन को चुनौती से सम्बंधित वादों पर विराम लगाते हैं, लेकिन यदि 15 अगस्त 1947 के बाद किसी धार्मिक स्थल का परिवर्तन किया जाता है जैसा कि अधिनियम में वर्जित है तो ऐसे परिवर्तन को चुनौती दी जा सकती है।
धारा 4 (1) घोषणा करती है कि 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र वैसे ही बना रहेगा जैसा वह अस्तित्व में था। -धारा 4 (1) घोषणा करती है कि 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र "वैसे ही बना रहेगा जैसा वह अस्तित्व में था"।
धारा 4 (2) कहती है कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को परिवर्तित करने के संबंध में किसी भी अदालत के समक्ष लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी - और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी।
यदि पूजा स्थल की प्रकृति में बदलाव 15 अगस्त, 1947 (अधिनियम के लागू होने के बाद) की कट-ऑफ तारीख के बाद हुआ हो, तो उस स्थिति में कानूनी कार्रवाई शुरू की जा सकती है।
धारा 5 में प्रावधान है कि अधिनियम रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।
अधिनियम की धारा 6 में धारा अधिनियम के 3 के उल्लंघन को दंडनीय बनाया गया है, जिसके तहत यदि कोई व्यक्ति किसी भी धार्मिक स्थल का परिवर्तन करता है तो उसे तीन वर्ष तक का कारावास भुगतना पड सकता है। इसके अतिरिक्त उस पर आर्थिक दंड भी लगाया जाएगा। इस धारा के तहत आपराधिक प्रयास और दुष्प्रेरण को भी दंडनीय बनाया गया है।
इन अपवादों का नहीं हो रहा जिक्र
उपासना स्थल अधिनियम 1991 की धारा 5 के मुताबिक यह अधिनियम अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर लागू नहीं होगा और ना ही उससे संबंधित किसी भी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करेगा। इसी कारण है कि रामजन्मभूमि विवाद से सम्बंधित वाद, उसकी उच्चतम न्यायलय में अपील एवं और पुनर्विचार याचिकाएं, सभी वैध मानी गयी है।1991 के ऐक्ट में एक बड़ा एग्जेम्पशन है। अपवाद यह है कि अगर उस स्थान पर आर्केलॉजिकली कोई ऐसा तथ्य मिलता है जो यह साबित करे कि वह 100 साल या उससे पुराना है तो वह प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट की परिधि से बाहर हो जाएगा। अगर मस्जिद में मिला शिवलिंग या अन्य मूर्तियां 100 साल से ज्यादा के होंगे तो इन पर ऐक्ट लागू नहीं होगा।
ये है अपवाद वाला नियम?
उपासना स्थल विशेष उपबंध अधिनियम 1991 के सेक्शन 4 के सब-सेक्शन (3) में अपवादों का जिक्र मिलता है। सब-सेक्शन (3) में यह बताया गया है कि सब-सेक्शन (1) और सब-सेक्शन (2) की कोई बात किन मामलों में लागू नहीं होगी। इसका पहला प्वाइंट कहता है कि ऐसा तब होगा अगर उक्त उपधाराओं में बताया गया कोई उपासना स्थल, जो एंशियंट मॉन्यूमेंट्स एंड आर्केलॉजिकल साइट्स एंड रिमेन्स ऐक्ट 1958 (24 of 1958) Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958 (24 of 1958) का हिस्सा
हिंदू पक्ष की और क्या हैं दलीलें?
ज्ञानवापी मामले में कानून लागू होगा या नहीं इस पर तमाम पक्षों की अपनी-अपनी राय है। हिंदू पक्ष का कहना है कि 1991 में ही यह मामला कोर्ट में पहुंच चुका था। ऐसे में इस पर यह फैसला लागू नहीं होता है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि जब कानून बन चुका है तो उसके दायरे में सभी स्थल आएंगे।
एक्ट 1991 से बाहर आने के लिए सरकार को करना होगा ये काम
Gyanvapi Masjid Controversy : ज्ञानवापी मामला और भी स्थितियों में 1991 ऐक्ट के दायरे से बाहर आ सकता है। इसके लिए केंद्र सरकार को कानून में संशोधन का रास्ता अपनाना होगा। दूसरा विकल्प यह कि वह कानून को रद्द करने का प्रस्ताव लाए लेकिन ऐसा करना इतना आसान नहीं होगा।
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