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Janjwar Ground Report: पानी पानी चीख रहे बनारस के कई मोहल्ले, जिम्मेदार क्यों हैं खामोश?
Janjwar Ground Report: पानी पानी चीख रहे बनारस के कई मोहल्ले, जिम्मेदार क्यों हैं खामोश ?
उपेंद्र प्रताप की रिपोर्ट
Janjwar Ground Report: पानी पानी चीख़ रहा था प्यासा दिल, शहर-ए-सितम का कैसा ये दस्तूर हुआ... कलीम अख्तर साहब की ये पंक्तियां बनारस के मालतीबाग़ और तिलभांडेश्वर इलाके की बदनसीबी पर सटीक बैठ रही हैं। जलकल विभाग भेलूपुर से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर स्थित मालतीबाग़ के 15 हजार से अधिक बाशिंदों की हालत पानी बीच प्यासी मीन जैसी हो गई है। काबिल-ए-गौर है कि बनारस को स्पेशल डबल इंजन की सरकार खींच रही है। इसी बनारस से इंडिया का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी के सीएम योगी तिसपर स्थानीय विधायक सौरभ श्रीवास्तव भी बीजेपी से हैं। ऐसे में सरकार और जनप्रतिनिधियों कि माने तो सबका साथ-सबका विकास अंधाधुंध गति से किया जा रहा है। इनके दांवों की कलई मालतीबाग़ में जाकर खुलती है। मोहल्ले में ही लगा पेयजल आपूर्ति के लिए लगा नलकूल सालों से ख़राब है। सैकड़ों बार चिठ्ठी लिखने और अधिकारीयों से शिकायत करने के बाद भी रोजाना पंद्रह हजार से अधिक लोग पानी के लिए अघोषित युद्ध झेल रहे हैं। इंतहा तो तब हो जाती है, जब थोड़ा- बहुत आने वाला सप्लाई का पानी कभी नीला, लाल, काला और पीला आता है। लोगों का आरोप है कि वाटर डिपार्टमेंट वाले सीवर का पानी सप्लाई कर रहे हैं। जो निहायत बदबूदार और संक्रामक बीमारी पैदा कर रहा है। विवशता में लोगबाग पानी में फिटकरी डालकर पीने और इस्तेमाल को विवश है।
बनारस के रेवाड़ी तालाब, तिल भांडेश्वर, राजघाट, खोजवां, राजातालाब, ककरमत्ता, मंडुआडीह, आराजीलाइन और अब मालतीबाग में साफ पानी के मचे हाहाकार को देखते हुए एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने मांग की है कि 'शुद्ध पेयजल की आपूर्ति के लिए बनारस शहर में आपातकाल घोषित किया जाए और पानी की विलासिता पर रोक लगाई जाए। भीषण गर्मी में गंगाजल का स्तर निम्नम स्तर पर पहुंच गया है और राज्य सरकार व जिला प्रशासन को इसे वरीयता देनी चाहिए।' काबिल-ए-गौर है कि मालतीबाग़ और तिलभांडेश्वर इलाके (वार्ड-51) की पब्लिक नींद से जागते ही पानी और सोने से पहले तक सुबह के लिए पानी की व्यवस्था में करवटे बदलते सुबह हो रही है। पानी के लिए बाल्टी, डब्बे और कनस्तर की टकराहट सुबह का संगीत बन चुकी है तो नल, कल पर बाल्टी भरने की जल्दबाजी में तू-तू मैं-मैं सुबह की गुड मार्निंग मैसेज सरीखा हो गई हैं। मजेदार बात यह है पानी भरने के लिए सुबह-शाम की तू-तू मैं-मैं को घंटे भर बाद ही भूलकर लोग आपस में चाय, चौबारे, नुक्कड़ और गलियों में लोग मोहब्बत से बतियाते और ठहाके लगाते मिलते हैं। यह बनारस का अपना मिजाज है, लेकिन जिम्मेदारी अधिकारियों के प्रति कड़ी नाराजगी भी है, जो इनके जिंदगी से खेल रहे हैं।
पेयजल की समस्या से रेवाड़ी तालाब, तिल भांडेश्वर, राजघाट, खोजवां, राजातालाब, ककरमत्ता, मंडुआडीह, आराजीलाइन प्रखंड के कचनार, रानी बाज़ार और परसुपुर में पिछले दो सालों से पेयजल का संकट है। भिखारीपुर ओवरहेड के दूसरे ट्यूबवेल की मोटर दो साल पहले जल गई थी। तभी से यहां पानी का घोर संकट बना हुआ है। ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर सरकारी हैंडपंप सूख चुके हैं। सरकारी नलों के आगे सुबह से ही लाइन लगनी पड़ रही है। बनारस के भूगोलविद् प्रो.सुमन सिंह के मुताबिक सूखती गंगा पर ध्यान नहीं दिया गया तो बनारस के लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरसने पर विवश हो जाएंगे। सरकार के साथ बनारस शहर की जनता को भी जल बचाने के लिए सार्थक पहल करनी चाहिए।"
सिल्क तानाबाना का काम करने वाले तिलभांडेश्वर मोहल्ले के निवासी खुर्शीद अपने काम पर जा रहे थे। खुर्शीद के अनुसार 'पानी की समस्या से सभी हिन्दू-मुस्लिम परिवार में रोजाना किचकिच होती है। हमलोगों के इलाके पेयजल की समस्या सालों से है। यह नलकूप जब से ख़राब हुआ है, तब से बहुत कम पानी आता है। पूरा मोहल्ला पानी के लिए त्राहिमाम कर रहा है। जो साधन संपन्न हैं, पैक्ड वाटर खरीदकर काम चला रहे हैं। हमलोग बमुश्किल से महीने का आठ हजार रुपए ही कमा पाते हैं। इतने से पैसे में घर चलाए कि पानी ख़रीद कर इस्तेमाल करें। मेरा घर यहीं पार्क की बोरिंग सटा हुआ है। इससे बाल्टी आदि से घंटों मशक्कत कर पानी भर ले जाता हूं, लेकिन जिनके घर गलियों में और दूर है बेचारे परेशान हैं। कम्प्लेन करते-करते लोग थक गए हैं। रोज खाने कमाने में भी परिवार के खर्चे पूरे नहीं हो पाते, ऐसे में कौन जाए धरना-प्रदर्शन करने। मेरे दो बच्चे हैं। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई छूट गई है।'
पड़ोसियों का पानी वाला एहसान
बनारस गलियों का शहर है। मालतीबाग़ और तिलभांडेश्वर बहुत घनी आबादी तंग मोहल्ले में बसी है। पानी नहीं आने से लोगबाग़ अपने पड़ोसियों के रहमो-करम पर आश्रित है। सुबह होते ही पूरा मोहल्ला नल की पाइप से बिछ जाता है। इस घर से उस इमारत तक प्लास्टिक की पाइप का जाल बिछ जाता है। जिनके घर समरसेबल या पम्प है। अपने इस्तेमाल के बाद अपने पड़ोसियों को पानी दे देते हैं। ऐसे भी कुछ लोग हैं, जिनकों पानी खैरात में देने से बिजली के बढ़ते बिल की भी पीड़ा सताती है, ऐसे लोग अपनी पीड़ा खुले तौर पर जाहिर करने से बचते हैं। बहरहाल मोहल्ले के लोग जैसे-तैसे कर अपने जीवन की गाड़ी खींच रहे हैं। पानी के अभाव में 15 हजार से अधिक नागरिकों का कब तब अंधेरी सुरंग में चलना होगा। किसी को नहीं पता है, बस चले जा रहे हैं....
आता है रंगीला पानी
रेवाड़ी तालाब के गुमटी दुकानदार शमीम कई बरस से पानी की समस्या झेल रहे हैं, वे कहते हैं कि 'चार साल से गंदा पानी आ रहा है। कितनी मर्तबा लोग आए और सर्वे कर चले गए। आने वाला सीवर का पानी है। बहुत बदबू देता है। कभी लाल, पीला, नीला और कभी काला पानी आता है।' इनकी बात की तस्दीक को मंडुआडीह के सज्जन बोले पड़े- 'एक ही लाइन से इन दोनों इलाकों में पानी सप्लाई होता है। वह कई रंग का आता है। चुनाव में कुछ लोग ऐ थे, लिखकर चले गए। हमलोग आज भी गंदा पानी पीते हैं। यहां से काम कर जब मैं घर जाता हूं, तब घर भी गंदा पानी पीने को मिलता है। मजबूरी है पत्रकार बाबू !
कब शुरू होगा ट्यूबवेल ?
चार पीढ़ी से गंगा की शुद्ध मिट्टी से मूर्तियां बनाने वाले मूर्तिकार विजय कुमार प्रजापति सांचे में मिट्टी भरकर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां बनाने में जुटे हुए थे। पेयजल के बाबत जानकारी मांगने पर विजय कहते हैं 'पहले ठीक था, हाल के पांच-सात सालों से पानी सप्लाई की स्थिति गड़बड़ है। ट्यूबवेल ख़राब हो गया है। इसके चलते पानी आता ही नहीं है। चौबीस घंटे में सिर्फ दो घंटा-एक घंटा पानी आता है। सुबह छह बजे से नौ बजे तक नल में धीमे-धीमे पानी आता है। जिनके घर पानी के साधना नहीं है, वे लाइन में लगकर पानी भरते हैं। शिकायत करने पर सिर्फ आश्वासन मिलता है। पानी की अधिक समस्या गहराने में हमलोग और परिवार की औरतें-लड़कियां नहाने के लिए गंगा में राजाघाट पर चले जाते हैं । रोजगार की हालत खस्ता है। बड़ी मुश्किल से गुजरा होता है।'
कैसे होगा गरीब लोगों का गुजारा
बिंदी देवी बताती हैं कि पानी की वजह से परेशानी बहुत है। आपको कितना बताए ? 'पानी बहुत बदबूदार आता है। बहुत बेकार स्थिति है। पानी के सेवन से बड़े बुजुर्ग और बच्चों का पेट ख़राब होने के मामले देखने को मिल रहे हैं। आज नौ बजे साफ पानी आया तो भरा गया है। वरना दिनभर वहीं गंदे पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है। बिंदी थोड़ा इंतजार करने के लिए कहते हुए सप्लाई के पानी को लेने के लिए घर में चली जाती हैं। पानी को दिखाते हुए कहती हैं कि रोजाना 40-50 रुपए का पानी खरीदकर पीते हैं हमलोग। इस गंदे पानी से न आटा लग पाता है और न ही चावल-दाल पका सकते हैं। गरीब आदमी लोगों का गुजरा कैसे होगा ?
हो रहे चर्म रोग
दीपचंद्र भी कई सालों से पानी की समस्या से परेशान हैं। इसके परिवार में सप्लाई के पानी में फिटकरी डालकर इस्तेमाल करते हैं। वे कहते हैं 'इतनी महंगाई में अब हर हफ्ते 100-200 रुपए की फिटकरी खरीदना पड़ता है। कभी पैसे से पानी खरीदते हैं तो अधिकांश बार पानी में फिटकरी डालकर ही पीते हैं। मोहल्ले में सप्लाई के गंदे पानी के इस्तेमाल से कई समस्याएँ भी होने लगी है। मुझे खुद बांह पर चर्म रोग जैसी स्थिति बन गई है। मैं बहुत परेशान हूं। कहीं सुनवाई नहीं हो रही है।'
हो रहा सौतेला व्यवहार
वार्ड-51 के पार्षद शहनाज बानो के प्रतिनिधि मो. हारून राइन अपने मोहल्ले में पानी की किल्लत से दुःखी है। वे "जनज्वार" को बताते हैं कि 'गंदे जल की आपूर्ति और पेयजल किल्लत की शिकायत डेढ साल पहले जलकल महाप्रबंधक, जेई, एक्सीएन और अन्य अधिकारियों को लिखित शिकायत की है। लेकिन समस्या का कोई निराकरण नहीं हुआ। यह पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है। बीजेपी के पार्षदों के इलाके में विकास हो रहे हैं। हमारे मोहल्ले के साथ सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है? बहुत मुश्किल से लोगों की प्यास बुझ पा रही है। पड़ोस के लोग को-ऑपरेट कर काम चला रहे हैं।'
महज 276 एमएलडी पेयजल सप्लाई क्यों ?
स्मार्ट हो रहे बनारस की प्यास बुझाने के लिए जल कल महकमा रोजाना 276 एमएलडी पेयजल सप्लाई करता है। यह पानी भी गंगा से खींचकर लाया जाया है और भदैनी स्थित रॉ-वॉटर पंपिंग स्टेशन से पानी की सप्लाई की जाती है। पंपिंग स्टेशन पर गंगा का वर्तमान जलस्तर 192 फुट है, जो न्यूनतम चेतावनी बिंदु से बस तीन फुट ही ज्यादा है। आलम यह है कि जिस अस्सी घाट पर सुबह-ए-बनारस और शाम को गंगा आरती देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक जुटते हैं वहां गंगा का प्रवाह घाट से 15 मीटर से ज्यादा दूर हो चुका है। वहीं, दशाश्वमेध और राजेंद्र प्रसाद घाट पर भी गंगा किनारा छोड़ काफी आगे बह रही हैं। गौर फरमाने वाली बात यह है कि जलकल आज भी लगभग दशक भर पुराने प्लान पर ही काम कर रहा है। वर्तमान समय में शहर की आबादी में जबरदस्त इजाफा हुआ है। इस बात को जलकल वाले कैसे झुठला सकते हैं ?
कागजी दावों की जमीनी हकीकत
जलकल महकमा दावा करता है कि वह बनारस के करीब 15 लाख लोगों को गंगजाल पिलाता है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स सिर्फ 12 लाख की आबादी की प्यास बुझाने का आंकड़ा पेश करती है। बाकी लोगों को रोजाना पेयजल के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। बनारस में जलकल के महाप्रन्धक रघुवेन्द्र कुमार दावा करते हैं, "बनारस शहर में पेयजल की किल्लत नहीं है। जलकल विभाग की क्षमता 323 एमडलडी की है। सर्दी के दिनों में सिर्फ 170 एमएलडी और गर्मी में 275 एमएलडी सप्लाई की जाती है। गंगा से जो पानी उठाया जाता है उसमे से करीब 40 फीसदी पानी बर्बाद हो जाता है। बनारसियों की प्यास बुझाने के लिए करीब 180 एमएलडी पानी ग्राउंड वाटर से निकाला जाता है। बाकी पानी गंगा से लिया जाता है। डिमांड के अनुरूप शहर में जलापूर्ति की जा रही है। कुछ इलाकों में पेयजल संकट की शिकायतें मिल रही हैं। क्रिटिकल इलाकों में टैंकरों से जलापूर्ति की जा रही है। बनारस शहर में जल विभाग के 148 ट्यूबबेल चालू हालत में हैं। मिनी पंपों की संख्या 128 है।
क्या बोला बीजेपी विधायक ने ?
वार्ड नंबर 51 में शामिल तिलभांडेश्वर, रेवड़ी तालाब और मालती बाग में पानी की समस्या पर बीजेपी कैंट विधायक सौरभ श्रीवास्तव बताते हैं कि 'यहां के लोगों की समस्या का समाधान कराने का निर्देश जलकल को दिया गया है। पानी का दबाव बढ़ाने के लिए दूसरी जगह पर बोरिंग कराने के लिए बोला गया है। जल्दी पानी से जुड़ी समस्या का समाधान हो जाएगा।'
जलकल के महाप्रबंधक को पब्लिक की तकलीफों का अंदाजा ही नहीं
जलकल के महाप्रबंधक रघुवेंद्र कुमार दावा करते हैं कि मालती बाग के लिए दूसरा ट्यूबवेल चालू कराया गया है। मेरी जानकारी में कोई बड़ी समस्या नहीं है। यदि कोई शिकायत होगी तो तत्काल समाधान कराया जाएगा। जबकि जमीन पर हकीकत इनके दावों से उलट है। लोग बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज हैं। सवाल यह उठता है कि हजारों पब्लिक को सुबह से लेकर शाम तक पानी के लिए घंटों मशक्कत करनी पड़ती है। जलकल के महाप्रबंधक को जनता की परेशानियों और तकलीफों का अंदाजा ही नहीं है। वे चंद लफ्जों में कह देते हैं कि समस्या आएगी तो दिखाया जाएगा। फिलहाल कोई समस्या नहीं है।' यह हालत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस की है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां का सिस्टम समस्याओं और जनता की परेशानियों को लेकर किस कदर सचेत, सजग और ईमानदार है ?