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Narendra Giri Death News: नरेंद्र देव गिरी का विवादों से रहा है पुराना रिश्ता, जानिए किस—किस महंत से था गिरी का गहरा विवाद
Narendra Giri Death News: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ( Akhil Bharatiy Akhadan Parishad Adhyaksh) की सोमवार शाम सदिंग्ध परिस्थिति में मौत हो गयी हैं. जिसके बाद अब उनकी मौत पर कई सवाल भी खड़े हो गए हैं. साथ ही मौके पर मिले सुसाइड नोट में उनके शिष्य का भी जिक्र हुआ है क्योंकि इन गुरु और शिष्य की जोड़ी में पहले भी कई बार विवाद हुए थे. पूरा सच जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर.
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी (Mahant Narendra Giri) की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत (Death) हो गई है. जानकारी के अनुसार ज्ञात हुआ है कि उनका शव प्रयागराज (Prayagaraj) के बाघंबरी मठ आश्रम में फांसी के फंदे से लटका मिला था. मौके से पुलिस (Police) को एक सुसाइड नोट (Suicide note) भी बरामद हुआ है जिसमें नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) ने अपने शिष्य आनंद गिरी (Anand giri) पर परेशान करने का आरोप लगाने का जिक्र किया है. वैसे आपको बता दें इन गुरु और शिष्य की ये जोड़ी पहले भी कई बार विवादों में घिरी रही है.
अब सवाल उठता है कि आखिर नरेंद्र गिरी की मौत का सच क्या है? जिस महंत से छोटे से लेकर बड़़े—बड़े नेता तक आशीर्वाद लेने आते थे. यहां तक की यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य महंत की मौत से एक दिन पहले उनसे मिलने गए थे. तब महंत एक दम खुश नजर आ रहे थे. तो आखिर एक दिन बाद ही ऐसा क्या हुआ जिससे महंत को खुदकुशी जैसा कदम उठाना पड़ा?
तो नजर डालते हैं महंत गिरी के जीवन के बारे में कि उनका जन्म कब, कहां और कैसे हुआ साथ ही उनका किन—किन विवादों से गहरा नाता रहा है.
महंत नरेंद्र गिरी का बचपन
महंत नरेंद्र गिरी बचपन से ही जुझारू प्रवत्ति के व्यक्ति थे. महज 11 वर्ष की उम्र से ही महंत गिरी ने धर्म और अध्यात्म के रास्ते पर चलना शुरू कर दिया था. वह लंबे समय तक राम मंदिर आन्दोलन से भी जुड़े रहे है. महंत गिरी प्रयागराज के बाघंबरी मठ के महंत और संगम किनारे प्रसिद्ध बड़े हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में कार्यरत रहे.
प्रयागराज कुंभ मेले में भी रही मुख्य भूमिका
महंत नरेंद्र गिरी ने प्रयागराज में हुए कुंभ मेले में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. चूंकि महंत गिरी अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष थे तो कुंभ मेलों के दौरान कौन-सा अखाड़ा कब स्नान करेगा यह सब जिम्मेदारी अखाड़ा परिषद ही तय करती थी. कुंभ मेले के दौरान उन्होंने व्यवस्थाओं को लेकर शासन और प्रशासन का मार्गदर्शन भी किया था.
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष भी रहे महंत गिरी
देखा जाये तो महंत नरेंद्र गिरी को अखाड़ों से कुछ ज्यादा ही लगाव था. जिसके चलते महंत नरेंद्र गिरि का निरंजनी अखाड़े से खास जुड़ाव था. वह इस अखाड़े के सचिव भी रह चुके थे. महंत नरेंद्र गिरी को साल 2015 में सर्वसम्मति से अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष भी चुना गया था. इसके बाद साल 2019 में फिर से उन्हें दोबारा अध्यक्ष चुना गया था.
महंत गिरी का विवादों से रहा है गहरा नाता
महंत नरेंद्र गिरी अक्सर अपने तीखे बयानों के कारण सुर्ख़ियों में बने रहते थे. महंत नरेंद्र गिरी का उनके शिष्य से भी विवाद हो गया था जिसके चलते महंत गिरी ने अपने शिष्य को मठ से बाहर निकाल दिया था. हालांकि बाद में अखाड़ा परिषद की मध्यस्थता के बाद महंत के शिष्य को वापस बुला लिया गया था. महंत गिरी का स्वभाव बेबाक टिप्पणी करने वाला था. जिस कारण संतों को संभालने की जिम्मेदारी महंत गिरी को दी गयी थी.
आपको बता दें की महंत गिरी का संतों से विवाद के साथ—साथ नेताओं से भी विवाद का गहरा नाता रहा है. साल 2012 में महंत गिरी का सपा नेता और हंडिया से विधायक रहे महेश नारायण सिंह के साथ भी विवाद हुआ था. साथ ही महंत गिरी का सचिन दत्ता नाम के रियल स्टेट व्यवसायी को महामंडलेश्वर की उपाधि देने पर भी जोरदार विवाद हुआ था. साथ ही महंत गिरी पर पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव महंत आशीष गिरी की संदिग्ध परिस्थित में हुयी मौत को लेकर भी सवाल खड़े किये गए थे.
किस बात के चलते शिष्य आनंद गिरी से था विवाद
महंत नरेंद्र गिरी के शिष्य आनंद गिरी ने मठ और हनुमान मंदिर से होने वाली करोड़ों रुपये की आमदनी में हेरफेर समेत कई गंभीर आरोप महंत गिरी पर लगाए थे. आनंद गिरि के इस बर्ताव के चलते महंत नरेंद्र गिरी ने उन्हें आश्रम से निष्कासित कर दिया था. लेकिन जब इस मामले पर अखाड़ों ने हस्तक्षेप किया तो महंत गिरी के पैरों में गिरकर आनंद गिरी ने माफ़ी मांगी थी. इसके बाद जाकर यह मामला शांत तो हो गया लेकिन पहले जैसा रिश्ता उन दोनों के बीच नहीं रहा था.
आखिर में अब सवाल यही उठता है कि क्या महंत गिरी का अपने शिष्य ने इतना गहरा विवाद था तो महंत गिरी की हत्या के पीछे आनंद गिरी का ही हाथ है. या फिर गुरु और शिष्य की दुश्मनी का किसी तीसरे ने भरपूर फायदा उठाकर महंत गिरी को मौत के घाट उतार दिया।