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Raju Srivastava Death : कानपुर में अंतिम संस्कार होता तो कम से कम आखिरी बार उन्हें देख तो लेते, जनज्वार से बोले राजू श्रीवास्तव के पड़ोसी
Raju Srivastava Death : घर के बाहर लगा नीम का पेड़ भरी बारिश के बीच गमजदा होकर मुर्झाया नजर आ रहा था। इस पेड़ के ठीक सामने वो मकान बना है, जहां राजू श्रीवास्तव का जन्म हुआ था। 25 दिसंबर 1963 को राजू ने किदवई नगर विधानसभा के नया पुरवा स्थित इसी मकान में आंखें खोली थीं। हंसी, ठिठोली, चुहलबाजी में बीता उनका बचपन कल बुधवार से लोगों के जेहन में घूम रहा है। कल 21 सितंबर को राजू के इंतकाल की खबर सुनकर पूरा मुहल्ला, शहर और देश गम के साये में लिपटा नजर आ रहा है।
राजू का परिवार कल दोपहर ही कानपुर से दिल्ली के लिए रवाना हो गया था। उनके मुहल्ले में मिले कुछ लोग राजू के बारे में पूछने पर भारी मायूसी ओढ़ लेते हैं। सभी का एक सुर में कहना है कि राजू का अंतिम संस्कार यहीं होना चाहिए था। यहां अंतिम संस्कार होता तो हम अपने राजू को एक बार कम से कम देख तो लेते। लाखों की तादाद में उनके चाहने वाले यहां आते। राजू के चाहने वालों का कहना है कि राजू अब इस दुनियां में नहीं रहे, लेकिन उन जैसा कोई दूसरा नहीं था।
राजू के पड़ोसी हरीश चंद्र, गीता देवी, इत्यादि ने जनज्वार से बात करते हुए अपनी-अपनी तरह से राजू के जाने के बाद खालीपन जताया। उन्होने कहा कि उनके अंदर कभी एक स्टार सरीखा घमंड नजर नहीं आया। बेहद साधारण ढ़ंग से सभी से मिलते। बेहद मिलनसार राजू सभीके सुख-दुख में शामिल होते थे। जब वह दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री बने तो बिना सिक्योरिटी के ही पूरे मुहल्ले में घूम-घूमकर लोगों से मिलते थे, मदद करते थे, उनका हाल-चाल लेते थे।
चार गुना कीमत देकर खरीदा था अपना मकान
राजू श्रीवास्तव को किदवईनगर के नयापुरवा एन ब्लॉक में स्थित मकान से बेहद लगाव था। पड़ोसी बताते हैं कि सन 1990 में राजू के पिता रमेश चंद्र श्रीवास्तव उर्फ बलई काका ने मुफलिसी के वक्त इस मकान को सुरेश सिंह चौहान को साढ़े तीन लाख रुपये में बेच दिया था। जिसके बाद पूरा परिवार कुछ दिन बारादेवी तो कुछ दिन यशोदा नगर में किराये के मकान में रहा। उस समय राजू श्रीवास्तव मुंबई में थे। उन्हें जब मकान बेचने के बारे में पता चला तो घर वालों पर बहुत नाराज हुए।
राजू ने सुरेश से मकान को वापस खरीदने की पेशकश की, लेकिन बात नहीं बनी। उनके पिता पड़ोसी शिवेंद्र पांडेय के पास भी गए और कहा कि सुरेश सिंह से बात करें। कई सालों तक मकान मालिक को मनाने का दौर चला। इसके बाद साल 2000 में राजू ने इस मकान को 24 लाख रुपये में खरीदा। मकान खरीदने के बाद राजू के पिता बलई काका फिर से परिवार के साथ यहां आकर रहने लगे थे।
कानपुर आए तो घर जरूर आते थे
एक चैनल से बात करते हुए राजू के छोटे भाई की पत्नी श्रेया बताती हैं कि जब कभी राजू भइया शहर आते थे, तो घर जरूर आते थे। उन्हें इस पुस्तैनी मकान से बड़ा प्रेम था। कहते थे यहां आकर बड़ा सुकून मिलता है। सबसे इसी बहाने मुलाकात हो जाती है, नहीं तो कहां कोई मिल पाता है। उन पांच-दस मिनट में वह पूरे इलाके का हालचाल लेकर चले जाते थे। पड़ोसी बताते हैं कि वह पैदल ही हर किसी का हाल चाल लेने मुहल्ले में निकल जाया करते थे।
बेटी अंतरा से बहुत लगाव था
राजू का परिवार सदमे हैं, वहीं उनके फैंस की आंखे भी नम हैं। कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव अपनी बेटी अंतरा को सबसे ज्यादा प्यार करते थे। पिता के निधन पर बेटी खुद को संभाल नहीं पाई। बेटी बोली जिंदगीभर सभी को हंसाया, और खुद बिना एक शब्द बोले दुनिया से अलविदा कह गए। अंतरा खुद के आंसू नहीं रोक पाती है। हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव अपने परिवार को सोशल मीडिया मीडिया से दूर रखते थे। राजू के परिवार में पत्नी सिखा, बेटी अंतरा और बेटे आयुष्मान के साथ रहते थे। आयुष्मान सितार वादक हैं, और बुक माई शो 'नई उड़ान' में काम कर चुके हैं। जबकि राजू और उनके पांचों भाई बंद मुट्ठी की तरह थे।
राजू अंतरा को बहादुर बेटी कहते थे
मां के बेहद करीब राजू श्रीवास्तव को अपनी बेटी पर बहुत नाज था। अंतरा अपनी बहादुरी के लिए भी जानी जाती हैं। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने अंतरा को नेशनल ब्रेवरी अवार्ड से नवाजा था। दरअसल 2005 में राजू श्रीवास्तव के घर में चोर घुस आए थे। अंतरा ने अपनी सूझबूझ से चोरों को अरेस्ट कराया था। चोरों से पूरे परिवार की जान बचाई थी।
गजोधर, संकठा, बिरजू जैसे किरदार कहां से आए
मशहूर टीवी सीरियल 'द कपिल शर्मा शो' में राजू श्रीवास्तव ने गजोधर के मिलने का किस्सा सुनाया था। उन्होंने बताया था कि गजोधर उनके नानी के गांव का रहने वाला एक नाई था, जो अपना बकासिया लेकर लोगों के बाल काटने के लिए आता था। गजोधर की सच्चाई जो भी हो, लेकिन राजू श्रीवास्तव ने इसे अपने अंदाज में ऐसे प्रस्तुत किया कि यह किरदार अमर हो गया। देशज भाषा में उसके संवादों को लोगों ने खूब पसंद किया और ऐसा पसंद किया कि राजू का नाम ही उनके चाहने वालों ने गजोधर भइया रख दिया।
राजू के पैतृक गांव उन्नाव जिले के मगरायर के रहने वाले वेद व्यास श्रीवास्तव बताते हैं कि उनके गांव में दशहरा का मेला लगता था। राजू ने यहीं पर अपना पहला स्टेज शो किया था। वह आगे कहते हैं कि इतने बड़े कलाकार होते हुए भी राजू ने अपनी भाषा और अपने गांव तथा आसपास के लोगों को नहीं छोड़ा। वह अपने बुजुर्गों को नहीं भूले। गजोधर, संकठा, जिस तरीके के नाम वो अपने ऐक्ट में लेते थे, वो उनके पैतृक गांव के ही लोग होते थे। गजोधर, बिरजू, संकठा, मिसरा... जैसे सभी किरदार राजू की कल्पना से नहीं बल्कि उनके आसपास के संसार से निकले थे।