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UP : नाबालिग को लड़की के साथ घूमने-खाना खाने पर धर्मांतरण रोधी अध्यादेश के तहत जेल भेजा
शाकिब की मां संजीदा जो कहती हैं मुसलिम होने की वजह से उनके बेटे को फंसाया गया है। फोटो : सााभार दिप्रिंट (प्रवीण जैन)।
अनन्या भारद्वाज की रिपोर्ट
बिजनौर। 18 साल का सोनू उर्फ शाकिब और 16 साल की उसकी पूर्व सहपाठी एक साथ घूमने के लिए घर से बाहर निकले थे। उन्होंने साथ में कुछ खाया-पीया] फिर टहलने चले गए और यहां से परेशानी शुरू हुई।
उनकी आउटिंग खत्म होने से पहले एक किसान की बेटी व दलित लड़की पुलिस थाने में बैठी थी और सोनू उसे प्रेम जाल में फांस कर धर्मांतरण कराने के अपराध में जेल में था।
दो किशोरों का यह मामला उत्तरप्रदेश के करीब एक महीना पुराने धर्मांतरण संबंधी अध्यादेशों के प्रावधानों के प्रभाव का एक ताजा विवादस्पद उदाहरण है, जिसमें जबरन धर्मांतरण की जांच करना और ऐसे मामलों में सजा देने का प्रावधान शामिल किया गया है। यह कदम तब उठाया गया था जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित भाजपा नेताओं ने हिंदू महिलाओं के इस्लाम में धर्मांतरण की साजिश को रोकने के लिए इसकी जरूरत बतायी थी।
सोनू पर नाबालिग लड़की को शादी के लिए कथित तौर पर अपने साथ भगाने के लिए फुसलाने और जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की कोशिश करने का मामला दर्ज किया गया है। यह एफआइआर कथित रूप से लड़की की पिता की शिकायत पर दर्ज की गयी है तो पश्चिमी उत्तरप्रदेश के बरखेड़ा गांव के एक किसान हैं।
हालांकि इस मामले को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है क्योंकि लड़की के पिता ने आरोप लगाया है कि स्थानीय पुलिस ने खुद यह शिकायत दर्ज की है और इस पूरे मामले को बढा-चढा कर पेश किया गया है।
लड़की के पिता ने इस बात से इनकार किया है कि उनकी बेटी को भगाने की कोशिश की गयी थी, वहीं लड़की ने कहा है कि सोनू से शादी या उसके साथ धर्मांतरण के मुद्दे पर कभी चर्चा नहीं हुई।
पुलिस का दावा सोनू बालिग है, घर वालों का दावा नाबालिग है
पुलिस का इस मामले में कहना है कि सोनू 18 साल का है, पर उसके परिवार का दावा है कि यह नाबालिग है। सोनू के परिवार ने लड़की के इस दावे पर भी सवाल उठाया है कि वह उसके धर्म से अनजान थी।
पुलिस ने सोनू पर धर्मांतरण रोधी कानून के अलावा अपहरण, अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण संबंधी अधिनियम यानी पोक्सो की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।
दिप्रिंट द्वारा प्राप्त की गयी शिकायत में किसी भी यौन हमले का जिक्र नहीं है, लेकिन पुलिस ने लड़की की उम्र का हवाला देकर सोनू के खिलाफ मामले में अपना बचाव करते हुए कहा कि इससे उसके इरादों का पता चलता है। उन्होंने इस आरोप को भी खारिज किया कि पिता को बोल करके शिकायत दर्ज करायी थी।
एक गलती
'उत्तरप्रदेश धर्म परिवर्तन अध्यादेश, 2020' 29 नवंबर को लागू हुआ इसका उद्देश्य गलत ढंग से धर्मांतरण के लिए अंतर धार्मिक विवाह की जांच करना व उस पर रोक लगाना है। इसके तहत दोषी करार दिए गए व्यक्ति को 10 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।
जबकि सोनू के खिलाफ इस कानून की जो धाराएं लगायी गयी हैं उसके लिए लड़की व उसके पिता के कहे अनुसार कोई आधार नहीं था।
दिप्रिंट से बात करते हुए लड़की के पिता ने कहा, 'मैंने उन्हें (पुलिस को) बताया कि वह उसके साथ बाहर घूमने गयी थी और उसने यह गलती की, लेकिन पुलिस एवं मीडिया ने उसे साथ में भागने का मामला बना दिया'।
लड़की के पिता कहते हैं, 'मैंने पुलिस से कहा था कि मैं शिकायत नहीं करना चाहता, लेकिन उन्होंने मुझे डांटा और कहा कि ऐसा भविष्य में हो सकता और मुझे अपनी बेटी के लिए ऐसा करना चाहिए। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि चीजें कैसे काम करती हैं, इसलिए मैं उसके लिए तैयार हो गया था'।
उनकी शिकायत जिसके आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है, में लिखा है : सोनू मेरी लड़की.... को शादी करने और धर्म परिवर्तन कराने के इरादे से बहला फुसला कर भगा के ले गया। पर, लड़के के किसान पिता का कहना है कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा।
लड़की के पिता कहते हैं, 'उसने कभी शादी करने या धर्म बदलने की बात नहीं की तो मैं अपनी शिकायत में ऐसा क्यों कहूंगा? लेकिन शायद उसका इरादा यही था, मैं नहीं कह सकता। उसने सिर्फ अपने नाम के बारे में झूठ बोला। उसने मेरी बेटी को यह नहीं बताया कि वह मुस्लिम है, लेकिन उसने शादी या उसके धर्म को बदलने के इरादे का उल्लेख नहीं किया। वे कहते हैं कि मैंने शिकायत में यह नहीं लिखाया'।
लड़की अपने पिता के दावे की पुष्टि करते हुए कहती है, 'दोनों साथ घूमने गए थे और सोनू ने कभी उससे शदी करने या अपना धर्म बदलने के लिए नहीं कहा'। लड़की के अनुसार, 'शादी की बात नहीं थी, हम कभी कभी मिलते और फोन पर बात करते थे। उस रात भी मैं उससे सिर्फ मिलने व देखने गयी थी, हम साथ भागे नहीं थे'।
लड़की ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने उसने एक जैसा बयान दिया था और स्पष्ट रूप से सोनू ने उसे शादी या धर्मांतरण के लिए मजबूर नहीं किया।
पिता की शिकायत में भी किसी तरह के यौन हमले या अपहरण का उल्लेख नहीं है। हालांकि पुलिस ने धारा किया है कि अपहरण की धाराएं और पोक्सो की धाराएं तब स्वतः लागू होती हैं जब लड़की नाबालिग हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि लड़की क्या कहती है। धामपुर के सर्किल ऑफिसर अजय कुमार अग्रवाल कहते हैं, 'अगर वह स्वेच्छा से भी उसके साथ जाती है तो उसे अपहरण माना जाएगा क्योंकि लड़की नाबालिग है। उन्होंने कहा, 'ऐसे मामलों में हम मानते हैं कि वह व्यक्ति नाबालिग को अपने साथ अपराध करने के इरादे से ले गया और इसलिए इन धाराओं को लागू किया गया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की लड़की क्या कह रही है'।
वे कहते हैं, 'तथ्य यह है कि सोनू ने उसके घर से एक नाबालिग लड़की को साथ लिया जो कि हमारे केस को सत्यापित करने के लिए पर्याप्त सबूत है'।
पुलिस ने उन आरोपों से इनकार किया कि उन्होंने पिता को शिकायत दर्ज कराने के लिए मजबूर किया।
धामपुर पुलिस स्टेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, पुलिस किसी को शिकायत दर्ज करने के लिए कैसे मजबूर कर सकती है? यह निराधार है। उसने हमारे पास आकर यह शिकायत की। शुरुआत में, वह शिकायत दर्ज करने के लिए अनिच्छुक था, क्योंकि उन्हें अपनी लड़की की सुरक्षा का डर था। एक बार जब हमने उन्हें आश्वासन दिया कि वह सुरक्षित रहेगी तो उन्होंने शिकायत दर्ज करायी।
मंदिर के पास दोनों का साथ खाना खाना और फिर लड़कों द्वारा पीछा करना
अन्य बातों के अलावा एफआइआर में कहा गया है कि कि लड़की किसी तरह सोनू से बच गयी और 14 दिसंबर की रात को घर लौट आयी। लेकिन, लड़की के पिता के साथ ग्रामीणों ने भी इस दावे को गलत करार दिया जिन्होंने सबसे पहले नसीरपुर में रात में दोनों को एक साथ देखकर पकड़ा था।
लड़की ने कहा, '14 दिसंबर की रात 11 बज रहे थे जब वह सोनू से मिलने के लिए अपने से निकली और दोनों टहलने के लिए नसीरपुर गांव तक गए (लड़की के घर से चार किमी दूर) और सोनू खाने के लिए पिज्जा लेकर आया था'।
ये किशोर तब मुसीबत में पड़ गए जब गांव के कुछ स्थानीय निवासियों ने उन्हें घूमते हुए देखा।
नसीरपुर के प्रधान मनोज कुमार ने दिप्रिंट को बताया, 'वे आधी रात को गांव में घूम रहे थे। किसी ने उन्हें एक मंदिर के पास भोजन करते हुए देखा। जब गांव के कुछ लड़कों ने उन्हें रोकने और उनसे सवाल पूछने की कोशिश की तो लड़की एक ओर तो लड़का दूसरी ओर भाग गया। लड़कों ने तबतक और लोगों को बुलाया और दोनों का पीछा करना शुरू किया'।
उन्होंने कहा, वे पिछले एक सप्ताह से इस गांव में आ रहे थे लेकिन उस दिन पकड़े गए।
प्रधान के अनुसार, स्थानीय लोगों ने लड़की को पकड़ने के बाद सोनू और लड़की के पिता को फोन किया। उन्होंने कहा, हमने लड़की को सोनू को यह बताने के लिए कहा कि वह जहां भी छिपा है सामने आ जाए। फिर दोनों को पुलिस स्टेशन ले गए।
जब पिता ने उससे पूछा कि क्या वह जानती है कि सोनू मुसलिम है, तो उसने कहा कि वह यह बात नहीं जानती।
लड़की ने दिप्रिंट को बताया कि सोनू कक्षा चार तक उसका सहपाठी था। उसने दावा किया कि वह दो महीने पहले फिर से सोनू से मिली और दोनों ने बात करना शुरू कर दिया, लेकिन उसने इसका उल्लेख नहीं किया कि वह मुसलिम है।
लड़की ने कहा, 'मुझे नहीं पता था कि वह मुसलिम है। उस दिन जब हम बात कर रहे थे तो मैंने उससे कहा कि मुझे मुसलमान पसंद नहीं हैं। तभी उसने मुझे अपना नाम शाकिब बताया था। मैंने तब उससे कहा कि मैं अब उसके साथ नहीं रहना चाहती हूं। अगर वह हिंदू होता तो कोई दिक्कत नहीं थी'।
हालांकि, मनोज कुमार का कहना है कि लड़की को सोनू की असली पहचान के बारे में पता था।
उन्होंने कहा, 'सोनू और लड़की आस-पास के गांवों में केवल 1.5 किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं और उसे उसकी पहचान के बारे में पता था। किरारखेड़ी, जहां सोनू रहता है, एक मुसलिम आबादी वाला गांव है, वह जानती थी कि सोनू शाकिब है'।
परिवार का इकलौता कमाने वाला सदस्य, जिसे मुसलिम होने की वजह से फंसाने का आरोप
किरारखेड़ी गांव में सोनू के चिंतित परिवार ने दावा किया कि उनके बेटे को फंसाया गया है क्योंकि वह मुसलमान है। उसकी मां संजीदा ने कहा कि वह नाबालिग है, जिसका जन्म 2003 में हुआ है। पर, उन्होंने कहा कि उनके पास बेटे के जन्मतिथि को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है।
वह कहती हैं, 'मेरा बच्चा 17 साल का है। सिर्फ इसलिए कि दो किशोरों की आपस में बात हो गयी, पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया'।
सोनू की भाभी सबीना ने कहा कि लड़की सोनू से मिलने किरारखेड़ी गांव आयी थी और उसे उसकी पहचान के बारे में पता था। सबीना ने कहा कि लड़की ने दबाव में अपना बयान बदल लिया।
सबीना कहती हैं,वह लड़की भी उससे मिलने के लिए गांव में आयी है और ऐसी कोई वजह नहीं है कि उसे पता न चले कि वह मुसलिम है। इसके अलावा वह एक अन्य दोस्त के साथ वहां सिर्फ उससे मिलने गया था। वे कहीं भाग नहीं रहे थे। क्या किसी हिंदू लड़की से मिलना भी अब एक अपराध है?
सबीना ने आगे कहा, 'वह अकसर उस लड़की के साथ फोन पर बात भी करता रहता था और मैंने उसे चेतावनी भी दी थी। एक बार वह लड़की उससे मिलने हमारे गांव आयी थी और मैंने लड़की को उसका साथ छोड़ने को कहा था। वह जानती थी कि शाकिब एक मुसलिम है। इस गांव में कोई हिंदू नहीं रहता है। अब वह अपना बयान अपने माता-पिता के डर से बदल रही है'।
लड़के की मां संजीदा के अनुसार, सोनू जालंधर में राजमिस्त्री का काम करता था और लाॅकडाउन के दौरान किरारखेड़ी स्थित अपने घर लौट आया था। वे कहती है, 'उसे सलाखों के पीछे डाल दिया गया क्योंकि वह मुसलिम है और यही उसकी गलती है'। उन्होंने कहा, 'वह अपने परिवार में एक मात्र कमाने वाला सदस्य है'। उन्होंने अपनी बेबसी प्रकट करते हुए कहा कि उनके पास तो वकील करने के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं हैं।
किरारखेड़ी के प्रधान इस्माइल ने कहा कि वे सोनू के दस्तावेजों को जुटाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि साबित हो सके कि वह नाबालिग है।
इस्माइल ने आगे कहा, 'यह दो बच्चों के अपने माता-पिता की जानकारी के बिना आपास में मिलने की गलती का नतीजा है, लेकिन क्या किसी 17 वर्षीया किशोर को इस तरह हत्या और बलात्कार जैसे मामलों की सजा काट रहे अपराधियों के साथ सलाखों के पीछे डाला जाना ठीक है'?
इस्माइल ने कहा, 'यह मामला ग्राम प्रधानों के हस्तक्षेप से सुलझाया जा सकता था, लेकिन पुलिस ने जोर देकर कहा कि यह एक केस है और अब सोनू जेल में है'।
(theprint.in में प्रकाशित मूल खबर से साभार अनूदित, मूल खबर को अंग्रेजी में पढने के लिए क्लिक करें।)