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यूपी : बागी बलिया में भ्रष्टाचार चरम पर, मुर्दों पर लाद दिया मुकदमा
जनज्वार ब्यूरो/बलिया। आपको सुनने में बेशक अजीब लगता है, लेकिन ये है बिल्कुल सत्य। यूं तो भ्रष्टाचार पूरे देश में अपनी गहरी पैठ बना चुका है, पर उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाके के सबसे अंतिम छोर पर बसे बलिया की बात ही सबसे अलग है। बागी बलिया के नाम से मशहूर यह जनपद अंग्रेजों से गुलामी के दौर में कुछ दिनों के लिए देश से पहले ही आज़ाद हो गया था।
इसी बलिया में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। यहां प्रशासन नाम की चीज का लोप हो चुका है। गुंडे मवाली चोर डकैत चाहे कितना भी बड़ा अपराध किये हों पुलिस व प्रशासन को पैसे देकर मैनेज कर लेते हैं और चैन की बांसुरी बजाते हैं।
भ्रष्टाचार का मामला विकास खण्ड सियर के अंतर्गत आने वाले गांव शाहपुर टिटिहा में 2010 में ग्राम प्रधान के चुनाव में पंकज सिंह एक युवा प्रधान चुना गया। शिक्षा माफिया व इस पर दर्जनों मुकदमें दर्ज हैं। 2016 में तत्कालीन पुलिस कप्तान ने पंकज सिंह को उसके आपराधिक रिकॉर्ड को देखते हुए 6 महीने के लिए जिला बदर कर दिया था। शिक्षा माफिया से पंकज ने काफी संपत्ति अर्जित की।
गलत तरीके से अर्जित किये गए धन से पहले उसने गाँव की प्रधानी खरीदी जिसके बाद पंकज सिंह ने अधिकारियों को पैसे खिलाकर ग्राम विकास के आए हुए पैसे को लूटना शुरू किया। इसमें उसने एक अच्छा काम किया कि 1972 की चकबंदी के बाद से जो चकरोड फेंके नहीं गए थे उन्हें फेंकवाया। बाकि ग्राम निधि व दूसरे मदों में बहुत लूट-पाट मचाई।
सामाजिक कार्यकर्ता व आरटीआई एक्टिविस्ट सिंहासन चौहान ने इंटरनेट पर इंदिरा आवास के आवंटन पर खोजबीन की तो उन्हें यह देखकर हैरानी हुई कि जो आदमी 10-15 साल पहले मर गया था उसके नाम से भी आवास आवंटन कराकर फर्जी खाते खोलकर आवास के 70,000 रूपये का गबन कर लिया गया था। सिंहासन चौहान ने 3 नवम्बर 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार को मेल द्वारा अवगत कराया व मामले में जांच कर कार्यवाही की मांग की।
तब जनसुनवाई पोर्टल लांच नहीं हुआ था फलस्वरूप मुख्यमंत्री कार्यालय से जांच के आदेश बलिया के डीएम को आए। जिसके बाद सियर के बीडीओ जांच के लिए गांव पहुंचे। पंकज सिंह ने जांच टीम को पैसे खिलाकर व जिन आदमियों को आवास नहीं दिया था उनमें किसी को दस हज़ार तो किसी को बीस हज़ार देकर उनसे बयान दिलवा दिया कि हमें आवास का पैसा मिल गया है।
गांव पहुंचे जांच अधिकारी ने यह चेक तक करने की जहमत नहीं उठाई कि इनका आवास बना भी है या नहीं। अधिकारियों ने पंकज सिंह के पक्ष में रिपोर्ट लगाकर केस को बंद कर दिया लेकिन सिंहासन चौहान ने हार नहीं मानी और इस मामले की शिकायत ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार व माननीय प्रधानमंत्री भारत सरकार को बराबर PGPORTAL व रजिस्टर्ड डाक द्वारा करते रहे।
इन शिकायतों से परेशान होकर पंकज सिंह व विकास खंड सियर के अधकारियों ने मुर्दे के नाम से फर्जी लेटर इस्सू किया। मुर्दे ने बाकायदा नोटरी/शपथ पत्र जारी कर अपने जिन्दा होने का सबूत पेश किया और इंदिरा आवास के लिए मिले हुए 70000 रूपये को विकास में जमा करवा दिए। 25 जनवरी 2016 को जब जनसुनवाई पोर्टल व उसका मोबाइल एप लांच हुआ तब सिंहासन चौहान को उस पोर्टल से इस बात की जानकारी हुई।
अधिकारी जो भी रिपोर्ट अपलोड करते तुरंत सिंघासन को जानकारी हो जाती। जिद्दी प्रवत्ति के सिंहासन चौहान ने निश्चय कर लिया था कि वह इसका खुलासा करके ही रहेंगे। फलस्वरूप वो पोर्टल पर बराबर शिकायत करते रहे लेकिन हर बार अधिकारी गलत रिपोर्ट लगाते रहे। 2017 में सरकार बदल गयी। योगी सरकार का अधिकारियों अंदर शुरुआती डर था। जिसके चलते अधिकारीयों ने सही रिपोर्ट लगाई।
उसके बाद सिंहासन चौहान ने पंकज सिंह के कार्यकाल के आवास की लिस्ट की स्टडी की तो सिर्फ घोटाला ही घोटाला नज़र आया। आवास का पूरा पैसा किसी को नहीं मिला था। किसी को दस हज़ार तो किसी को बीस हज़ार, मगर पंकज सिंह की दबंगई के आगे उनके खिलाफ कोई गवाही देने को तैयार नहीं था। सिंहासन चौहान ने एक ऐसी लिस्ट तैयार की जिसमें किसी गवाह की जरुरत नहीं थी।
लिस्ट में निकाले गए मुख्य बिंदु-
1. जिसमें 2012-13 में एक आदमी तपेसर जो 10- 15 साल पहले ही मर गया था साथ ही उसके दो भाई नगेसर व गूजेसर जो 15-20 वर्षों से गाँव में रहते ही नहीं थे, आवास आवंटन कराकर फर्जी खाते खोलकर आवास के पैसे का गबन किया गया था। जो खंड विकास अधिकारी की रिपोर्ट में भी लिखा हुआ है।
2. 2013 -14 में नबी रसूल जो कि 15 साल पहले ही मर चुका था व रहीम जिसे ये नहीं मालूम कि उसे आवास मिला है। सिंहासन चौहान की शिकायत पर जब जांच आयी तब नकद 20000 रूपये देकर उससे कहलवाया कि आवास मिल गया है। ये भी खंड विकास अधिकारी की रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा हुआ है।
3. 2014 -15 में 6 आदमी अशोक, बाबू, राहुल, रमेश, रामअवध, और विपिन जो कि इस नाम का कोई आदमी ही गांव में नहीं है, आवास की एक किश्त का 35 हज़ार प्रत्येक का फर्जी खाता खोलकर आवास के पैसों का गबन किया गया। जो कि खण्ड की रिपोर्ट में लिखा हुआ है। इसमें अधिकारियों ने डर के मारे दूसरी किश्त रिलीज़ नहीं की।
इसी बीच सिंहासन चौहान की आवाज़ को दबाने के लिए पंकज सिंह ने रिश्वतखोर दरोगा सतेंद्र कुमार राय को एक लाख रूपये देकर सिंहासन चौहान के ऊपर फर्जी छेड़खानी का मुकदमा लिखवा कर जेल भिजवा दिया। 69 दिन जेल में रहने के बाद सिंहासन चौहान के इरादे और मजबूत हो गए। जब हर एप्लीकेशन देने के बाद कोई कार्यवाही नहीं हुई तो सिंहासन चौहान ने पत्नी सहित 7 दिन तक कलेक्ट्रेट के सामने भ्रष्टाचार के खिलाफ धरना दिया।
9 अक्टूबर 2020 को अपर जिलाधिकारी के आश्वासन पर धरना खत्म किया। मगर बाद में जब कोई कार्यवाही नहीं हुई तो तहसील दिवस में 20 अक्टूबर 2020 में पुनः मुख्य विकास अधिकारी बलिया मिले और इस संबंध में पोर्टल पर प्रधानमंत्री को शिकायत की व रजिस्टर्ड डाक से मुख्य विकास अधिकारी, जिलाधिकारी बलिया व मुख्यमंत्री को अवगत कराया गया। जिसके बाद अधिकारीयों के कानों पर जूं रेंगी और FIR दर्ज करवाने का फैसला लिया। पोर्टल पर रिपोर्ट लगाई कि इस सन्दर्भ में सचिव समेत 12 लोगो पर उभांव थाना में मुकदमा दर्ज हो गया है।
14 अक्टूबर 2020 जब तीन घंटे तक सिंहासन चौहान सियर ब्लॉक में रहा और वहां पता चला कि मुख्य आरोपी पंकज सिंह के ऊपर कोई मुकदमा ही नहीं हुआ है। मुकदमा तत्कालीन सचिव प्रमोद कुमार पांडेय, तपेश्वर व नबी रसूल(दोनों की मृत्यु 15-20 साल पहले हो चुकी है), गुंजेश्वर व नागेश्वर (ये 15-20 वर्षों से उत्तराखंड में रहते हैं), रहीम (2 साल पहले मर चुका है), अशोक, बाबू, राहुल, रामअवध, रमेश व विपिन (इन नाम का कोई व्यक्ति गाँव में है ही नहीं) पर मुकदमे दर्ज किए गए।
सिंहासन चौहान ने जब इस संबंध में थाना प्रभारी उभांव से बात की तो वे बोले कि विवेचना होने दीजिये इसमें कई लोग आएंगे, इसमें बैंक मैनेजर भी फंसेंगे। ब्लॉक में मुझे किसी से पता चला कि FIR से 2-3 दिन पहले पंकज सिंह ने BDO सियर से बंद कमरे में मुलाकात की और BDO को काफी पैसे दिए तब जाकर BDO सियर ने पंकज सिंह का नाम FIR से निकाल दिया था।