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Yogi Adityanath News: मुख्यमंत्री बनते ही योगी ने अपनी 'हिन्दू युवा वाहिनी' के सदस्यों को दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल फेंका
Yogi Adityanath News: योगी आदित्यनाथ की हिंदू युवा वाहिनी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह अब अखिलेश यादव के साथ देखे जाते हैं। वह खुलकर कह रहे हैं कि वह अब समजवादी पार्टी में हैं। उनके जैसे न जाने कितने लोगों ने हिंदू युवा वाहिनी से अलग सपा का साथ पकड़ लिया है। वाहिनी के पूर्व सदस्य बताते हैं कि अब हिंदू युवा वाहिनी खत्म हो चुकी है।
संगठन के खत्म होने के कई एक कारण हैं। सूत्रों का ये भी कहना है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की तरफ से 2017 में साफ तौर पर निर्देश दिए गए थे कि हिंदू युवा वाहिनी का विस्तार न हो, इसे खत्म किया जाए। चलिए हम आपको बताते हैं कि, कैसे धीरे-धीरे इसका अस्तित्व कम हुआ और सदस्य सपा में जुड़ते चले गए।
सपा में पहुंचे हिंदू युवा वाहिनी के प्रमुख सदस्य
सुनील सिंह, सौरभ विश्वकर्मा और चंदन विश्वकर्मा ने लगातार 15 साल तक हिंदुत्व का झंडा उठाया। अब यह तीनों ही अखिलेश यादव के साथ हैं। 2017 में विधानसभा चुनाव टिकट के बंटवारे के मुद्दे को लेकर इन तीनों का योगी आदित्यनाथ से मतभेद हो गया था, जिसके बाद योगी आदित्य नाथ ने उन्हें संगठन से बाहर निकाल दिया। बताया कि उन पर रासुका तक लगा दी गई। और अलग-अलग मामलों में जेल भी भेजा।
योगी ने हमें नजरअंदाज किया
हिंदू युवा वाहिनी के बनने के बाद ही सुनील सिंह संगठन से जुड़ गए। वह प्रदेश अध्यक्ष रहे। वे कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें व अन्य सदस्यों को नजरअंदाज किया। प्रदेश नेतृत्व का दबाव बढ़ने के बाद धीरे-धीरे जिला इकाइयां भंग होने लगीं। सदस्य अलग होकर सपा से जुड़ने लगे। आज ज्यादातर कार्यकर्ता सपा के साथ हैं। उन्होंने ये भी बताया कि हिंदू युवा वाहिनी बनने के बाद योगी की एक आवाज में सेना जी जान से उनके लिए जुट जाती थी।
इस तरह खत्म होती गई युवा वाहिनी
2018 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के तीन जिलों- बलरामपुर, मऊ और आज़मगढ़ में इकाइयां भंग हो गईं। बलरामपुर में युवा वाहिनी का मजबूत आधार हुआ करता था। प्रदेश नेतृत्व के निर्देश पर संगठन की मऊ जिला इकाई निष्क्रिय हो गई। प्रदेश नेतृत्व की उपेक्षा के चलते सदस्य खुद ही छोड़कर जाने लगे।
संगठन से योगी को क्या फायदा मिला?
- योगी आदित्यनाथ ने 1998 में पहला लोकसभा चुनाव 26 हजार वोट से जीता था। 1999 में हुए दूसरे चुनाव में उनकी जीत का अंतर महज सात हजार था।
- हिंदू युवा वाहिनी की स्थापना के दो साल बाद यानी 2004 में ही जीत का अंतर 1.42 लाख हो गया।
- 2009 और 2014 के लोक सभा चुनावों में वे 3 लाख से ज्यादा वोटों से जीते।
वाहिनी के खत्म होने का कारण
RSS के निर्देश पर हिंदू युवा वाहिनी को भंग किया गया। योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद इसके विस्तार को रोकने का काम शुरू हो गया। शिवसेना जैसा एक हिंदू संगठन पहले ही राजनीतिक दल के रूप में भाजपा के लिए चुनौती हैं। योगी आदित्यनाथ की ही ओर से सदस्यता अभियान को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। इसके बाद एक-एक कर हिंदू युवा वाहिनी की इकाइयां भंग की गईं।
यह भी उठती हैं बातें
योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तो सदस्यों को साथ लेकर नहीं चले और तो खुद के मुकदमें खत्म करा लिए तथा सदस्यों को मुकदमों में भी कोई राहत नहीं मिली। न नए सदस्य बने और न बैठकें हुईं। सदस्यों को सरकार में कोई जगह नहीं मिली। इसके अलावा न ठेकेदारी और नौकरियों में ही जगह मिली।