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उत्तर प्रदेश

शिक्षकों के उत्पीड़न के मामले में मानवाधिकार आयोग के निशाने पर योगी सरकार, जांच कर दिया कार्रवाई का आदेश

Janjwar Desk
4 Jan 2022 6:34 AM GMT
शिक्षकों के उत्पीड़न के मामले में मानवाधिकार आयोग के निशाने पर योगी सरकार, जांच कर दिया कार्रवाई का आदेश
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Harassment of teachers in Yogi government:

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

Harassment of teachers in Yogi government: उच्च शिक्षा में सुधार व नई शिक्षा नीति की वकालत करने वाली यूपी के योगी सरकार एक बार फिर कठघरे में है। अनुदानित महाविद्यालयों के स्ववित्तपोषित शिक्षकों के शोषण व उत्पीड़न एवं विनियमितिकरण के मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लेते हुए जांच का आदेश दिया है। यह प्रकरण राज्य स्तरीय होने के नाते सचिव राज्य मानवाधिकार आयोग को जांच करवा कर निस्तारण की कार्यवाही करने लिए निर्देशित किया है। विधान सभा चुनाव जहां करीब है,ऐसे वक्त में शिक्षकों का मामला उठने व मानवाधिकार आयोग के जांच के आदेश देने से सरकार के दिलचस्पी लेने की उम्मीद जताई जा सकती है।

उच्च शिक्षा में सुधार के तमाम सरकारी दावे के बाद भी उत्तर प्रदेश के शिक्षण संस्थानों की स्थिति काफी खराब है। राज्य के ऐसे संस्थानों में अध्ययनरत तकरीबन 48 लाख से अधिक छात्र में से 95 फीसद वित्तविहीन मान्यता प्राप्त महाविद्यालय व स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रम आधारित महाविद्यालय में पढ़ते हैं। जहां के अधिकांश शिक्षकों को सरकार के द्वारा घोषित न्यूनतम मजदूरी दर भी नहीं मिल पाती है तो जिनसे बेहतर गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की गारंटी कैसे की जा सकती है। उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की बात करने वाले हों या सबका साथ सबका विकास की दुहाई देनेवाली सरकार। सबने शिक्षा व शिक्षकों की व्यवस्था में सुधार करने के नाम पर मात्र कागजी घोड़ा दौड़ाने का ही कार्य किया है। जिसका नतीजा है कि व्यवस्था में सुधार के बजाय हालात बदतर होते चले गए। वित्तविहीन महाविद्यालयों एवं वित्तपोषित पाठ्यक्रम आधारित महाविद्यालयों में कार्यरत प्राचार्य व शिक्षकों को नेट, जेआरएफ, पीएचडी करने के बाद भी योगी सरकार मनरेगा मजदूर के बराबर भी मजदूरी,हक एवं सुरक्षा नहीं दिला पा रही है।

उधर हाल यह है कि उत्तर प्रदेश के अनुदानित महाविद्यालयों से दर्जनों स्ववित्तपोषित शिक्षकों को कोरोना काल में महाविद्यालय से निष्कासित तक कर दिया गया है और जब निष्कासित शिक्षकों द्वारा अपने बकाया वेतन आदि के मांग की गुहार लगाई गया तो मनबढ़ महाविद्यालय प्रबन्धकों के द्वारा सम्बन्धित शिक्षकों पर प्राणधातक हमला तक करवाया गया। कोरोनाकाल में छात्रों से वार्षिक शुल्क लेने के बाद भी महाविद्यालय प्राचार्यों व प्रबन्धको द्वारा आपदा में अवसर ढूंढते हुए कहीं डेढ़ वर्ष से वेतन नहीं दिया जा रहा है तो कहीं दिये जा रहे वेतन से आर्थिक संकट का काल्पनिक रोना रोते हुए वेतन व ईपीएफ कटौती की जा रही है। जिसके कारण स्ववित्तपोषित शिक्षक, आर्थिक विपन्नता व संकट के बोझ तले दब कर आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। अभाव एवं और असुरक्षा के कारण देवरिया जिले के एक स्ववित्तपोषित पीजी कॉलेज के प्राचार्य ने पोखरी में डूबकर आत्महत्या भी कर ली थी, उन्हें प्राचार्य होने के बावजूद मात्र 3000 रुपए वेतन मिलता था।

अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक महासंघ उत्तर प्रदेश उत्तराखंड के क्षेत्रीय सचिव डॉक्टर राजेश मिश्रा कहते हैं कि कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रीत्व काल में अशासकीय महाविद्यालयों में भी नए पाठ्यक्रम शुरू करने पर सरकार द्वारा कोई अनुदान देने के बजाय छात्रों से आए फीस से ही शिक्षकों का वेतन भुगतान करने का निर्देश दिया था। यही प्रावधान वित्तविहीन मान्यता प्राप्त महाविद्यालयों के लिए भी लागू किया गया। इसके बाद यह व्यवस्था बना दी गई कि नामांकित छात्रों से आई फीस का 75 प्रतिशत हिस्सा शिक्षकों के वेतन पर खर्च किया जाएगा, जिसके चलते यह प्रावधान आगे चलकर एक बड़ी विसंगति के रूप में सामने आई। प्रबंधन की मनमानी व छात्रों के कम नामांकन के चलते महाविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों को जहां नियमित वेतन का भुगतान नहीं होता है वहीं आमतौर पर 10000 से 12000 रुपए तक मिलते हैं, जबकि कुछ संस्थान तो 5000 रुपए से भी कम भुगतान करते हैं।

उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या पर गौर करें तो विश्वविद्यालयों की संख्या 15, राजकीय महाविद्यालय की 157 और अशासकीय महाविद्यालय की 331 (स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रम वाले महाविद्यालय 272) व वित्तविहीन स्ववित्त पोषित मान्यता वाले महाविद्यालयों की संख्या 6500 से अधिक है। राज्य के इन स्थानों में पंजीकृत 48 लाख से अधिक छात्रों में से एक अनुमान के मुताबिक 95 प्रशित छात्र स्ववित्त पोषित महाविद्यालय व वित्तविहीन मान्यता वाले महाविद्यालयों में पढ़ते हैं। ये अधिकांश संस्थान ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित हैं। यहां अध्ययनरत अधिकांश छात्र ग्रामीण परिवेश से आते भी हैं, जहां उचित वेतन नहीं मिलने से बेहतर शिक्षण व्यवस्था की भी उम्मीद करना बेईमानी है।

इस हालात को देखते हुए मानवाधिकार सुरक्षा संगठन के प्रदेश संयोजक डॉ दिलीप शुक्ला (प्रदेश उपाध्यक्ष अनुदानित महाविद्यालय विश्वविद्यालय स्ववित्तपोषित अनुमोदित शिक्षक संघ उत्तर प्रदेश) द्वारा मामले को उठाया गया। डा शुक्ला ने राज्य विश्वविद्यालयो के कुलपतियों व कुलसचिवों द्वारा स्ववित्तपोषित शिक्षकों से सम्बन्धित शासनादेशो का अनुपालन सुनिश्चित न करने व न करवाने एवं अनुदानित अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में कार्यरत स्ववित्तपोषित शिक्षकों के साथ शोषण व उत्पीडन एवं उपेक्षा तथा वेतन कटौती व वेतन रोकने एवं मानवाधिकारों का किये जा रहे उलंघन तथा विनियमितिकरण आदि की शिकायत पिछले वर्ष 15 अगस्त को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली से किया था।

जिसका संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की विधायी समिति के निर्णयानुसार मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 की धारा 13(6) के तहत मामला राज्य स्तरीय होने के नाते सचिव राज्य मानवाधिकार आयोग विभूति खण्ड लखनऊ को जांच करवा कर निस्तारण की कार्यवाही करने लिए निर्देशित दिया गया है। इस संबंध में एक सप्ताह पूर्व 29 दिसंबर को आदेशित करते हुए जांच के लिए पत्र स्थानान्तरित किया गया है। अब देखना यह होगा कि उत्तर प्रदेश राज्य मानवाधिकार आयोग लखनऊ द्वारा राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, कुलसचिवों और प्रबन्धक,प्राचार्यों के द्वारा अनुदानित महाविद्यालयों के स्ववित्तपोषित शिक्षकों के साथ किये जा रहे शोषण उत्पीड़न व मानवाधिकार के उल्लंघन पर कब तक कार्यवाही करता है।

उल्लेखनीय हो कि इस प्रकरण में सामाजिक संस्था मानवाधिकार सुरक्षा संगठन उत्तर प्रदेश के प्रदेश संयोजक डॉ दिलीप कुमार शुक्ला द्वारा प्रेषित शिकायत का राजभवन उत्तर प्रदेश व उच्च शिक्षा मंत्री डॉ दिनेश शर्मा ने संज्ञान लेते हुए अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा को दिनांक पिछले 5 मई एवं 8 जून को जारी आदेश के द्वारा तत्काल कार्यवाही करने का आदेश दिया था। डॉ शुक्ला के अनुसार आदेश के बाद भी आगे कोई कार्रवाई न होने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर उत्तर प्रदेश में स्ववित्तपोषित शिक्षकों के मानवाधिकारों के हो रहे उलंघन की शिकायत की थी। जिसे संज्ञान में लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दिल्ली ने अपनी राज्य इकाई को फौरी तौर पर कार्रवाई करने को कहा है। जिससे एक बार फिर उत्पीड़न के शिकार इन शिक्षकों में न्याय की उम्मीद जगी है।

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