राजनीति की प्रयोगशाला बना उत्तराखंड, जहां कपड़ों की तरह बदला जाता है मुख्यमंत्रियों को
उत्तराखण्ड में भाजपा ने 4 महीने के अंदर बदले मुख्यमंत्री के तीन चेहरे
हिमांशु जोशी की टिप्पणी
जनज्वार। नारायण दत्त तिवारी ने उत्तराखंड के विकास के लिए नौकरशाही को नियंत्रित करते बहुत से कार्य किए, जैसे बेरोज़गारी हटाने के लिए उन्होंने सिडकुल स्थापित किया। इस तरह के विकास कार्य कर कोई नेता उत्तराखंडवासियों के बीच लोकप्रिय होता तो शायद उसे दिल्ली से हटा पाना मुश्किल होता।
20 साल में 11 मुख्यमंत्री, जी हां भारत में उत्तराखंड एकमात्र ऐसा प्रदेश है जहां कपड़े की तरह मुख्यमंत्रियों को बदला जाता है, भाजपा हो या कांग्रेस प्रदेश की सियासत के फरमान दिल्ली से जारी किए जाते हैं।
Timeline of Uttarakhand's Chief Ministers so far.
— Uttarakhand by eUttaranchal (@uttarakhand) July 2, 2021
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Perhaps we are the only state to have so many CMs in such a little time!
.#uttarakhand #garhwal #kumaon #dehradun #politicsOfUttarakhand pic.twitter.com/ruYBdNBkYF
इस बार तो हद हो गई पूर्ण बहुमत से आई भाजपा सरकार ने प्रदेशवासियों को पांच सालों के अंदर विकास की सौगात दी हो या नहीं, पर तीसरे मुख्यमंत्री की सौगात जरूर दे दी।
भ्रष्टाचार के मामलों में नाम आना, कुम्भ में की गई सख्ती और अपने ही पार्टी कार्यकर्ताओं से दूरी जैसे कारण त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी से हटने की वज़ह बने। उनके बाद आए तीरथ सिंह रावत मार्च से लेकर जुलाई तक सिर्फ़ चार महीने के मुख्यमंत्री बने, अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा कि आर्टिकल 164-ए के हिसाब से उन्हें मुख्यमंत्री बनने के बाद छह महीने में विधानसभा का सदस्य बनना था, लेकिन आर्टिकल 151 कहता है कि अगर विधानसभा चुनाव में एक वर्ष से कम का समय बचता है तो उपचुनाव नहीं कराए जा सकते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि संविधान कोई तीरथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद तो लिखा नहीं गया, जब यह सब पहले ही पता था तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया ही क्यों गया! खैर, तीरथ जी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के कुम्भ में आने वाले लोगों के लिए आरटी-पीसीआर निगेटिव रिपोर्ट जरूरी वाले निर्णय और गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने वाले निर्णय को स्थगित कर दिया। इसके साथ ही वह महिलाओं की जींस और अंग्रेजी शासन को लेकर दिए गए अपने बयानों को लेकर वह देशभर में चर्चित रहे।
He's done his job. Delivered the Kumbh Mela superspreader. Exposed the BJP's misogynistic ripped-jeans wardrobe. Made India a US colony. Now #Uttarakhand CM resigns to avert a 'constitutional crisis'. Welcome to the BJP model of seasonal Chief Ministers! https://t.co/G1yyjCC4cJ
— Dipankar (@Dipankar_cpiml) July 3, 2021
तीरथ सिंह रावत के बाद मुख्यमंत्री कौन सवाल पर कुछ समय अनिश्चय की स्थिति बनी रही और अंत में खटीमा के दो बार के युवा विधायक पुष्कर सिंह धामी के नाम पर मुहर लगी। कई वरिष्ठ विधायकों के होते युवा पुष्कर को चुने जाने पर पार्टी में टूट की खबरें भी आई, पर अंत में नए मुख्यमंत्री के शपथ समारोह में सभी विधायकों ने शामिल हो पार्टी में एकता का सन्देश दिया।
सत्ता के इस खेल पर वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरणविद राजीव नयन बहुगुणा ने पहाड़ी भाषा में लिखा-
जेठ बिते, चौमासू ऐगे, भैर लग्यूँ बसकाळ
हरक फ़र्किगे , खंडुडी खँडेगे, खौळीगे सतपाल
बड़ा बड़ों न मथेण्ड पकड़ी, धम धम आये धामी
सबकू भड्डू धरयूँ रैगे, चपट फुकेगें दाळ।
सोशल मीडिया पर उत्तराखंड की राजनीति को लेकर तरह तरह के मीम्स साझा किए जा रहे हैं।
Le Uttarakhand people to Tirath Singh Rawat#UttarakhandCM pic.twitter.com/p6uLXJiXyj
— Ammar Akhtar (@FakirHu) July 3, 2021
पहाड़ी प्रदेश वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद हमेशा से अपने विकास की जगह राजनीति को लेकर देशभर में चर्चित रहा है।
वर्ष 1897 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के समक्ष कुमाऊं को प्रान्त का दर्जा देने की मांग पहली बार रखी गई।
नए मुख्यमंत्री के शहर खटीमा में ही दो सितंबर 1994 को पृथक राज्य के लिए जुलूस निकाल रहे आंदोलनकारियों पर पुलिस ने फायरिंग की, फिर आंदोलन की यह आग पुरे उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक फैल गई। 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने लाल किले से उत्तराखंड राज्य बनाने की ऐतिहासिक घोषणा की, जिसके बाद 9 नवम्बर 2000 को यह राज्य बना।
रबर स्टाम्प वाले मुख्यमंत्री
कई जानकार उत्तराखंड में दिल्ली से बनाए जाते इन मुख्यमंत्रियों को सिर्फ रबर स्टाम्प वाला मुख्यमंत्री मानते हैं और इसका कारण यह बताया जाता है कि छोटे राज्यों के नेताओं को कम भाव दिया जाता है और अधिकतर निर्णय दिल्ली पर निर्भर होते हैं।
गोविंद वल्लभ पन्त, हेमवती नन्दन बहुगुणा और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र नेता नारायण दत्त तिवारी जैसे राजनीतिक दिग्गजों ने उत्तराखंड से निकल अपनी छाप पूरे देश में छोड़ी थी। तमिलनाडु में अम्मा कैंटीन, अम्मा फार्मेसी जैसी योजनाएं चला जयललिता जिस तरह लोकप्रिय हुई, ठीक वैसे ही उत्तराखंड में नारायण दत्त तिवारी लोकप्रिय थे।
वरिष्ठ पत्रकार गौरव नौडियाल के अनुसार नारायण दत्त तिवारी ने उत्तराखंड के विकास के लिए नौकरशाही को नियंत्रित करते बहुत से कार्य किए, जैसे बेरोज़गारी हटाने के लिए उन्होंने सिडकुल स्थापित किया। इस तरह के विकास कार्य कर कोई नेता उत्तराखंडवासियों के बीच लोकप्रिय होता तो शायद उसे दिल्ली से हटा पाना मुश्किल होता।
आजकल के नेताओं की जनता के बीच लोकप्रियता की बात है तो इसे मेरा दूधवाला साबित करता है, जब वह मुझे बताता है कि पुष्कर सिंह धामी गढ़वाल से आते हैं।
नेता मस्त और जनता त्रस्त
पूर्व मुख्यमंत्रियों दी जाने वाली सुविधा पर सरकार ने कितना अड़ियल रुख अपनाया हुआ है, यह हमें हिंदुस्तान की एक ख़बर से पता चलता है जिसमें यह बताया गया है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास के किराए में राहत दिलाने को अब सरकार सुप्रीम कोर्ट में विशेष रिट याचिका दायर करेगी।
मामला यह है कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को राज्य सरकार की ओर से आवास, गाड़ी समेत कई तरह सुविधाएं मिलती थी, साल 2019 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सभी सुविधाओं का किराया बाजार भाव से देना होगा। हाईकोर्ट ने सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से छह महीने में पूरा पैसा जमा करने का आदेश दिया था।
इस फैसले के कुछ ही महीनों के बाद राज्य सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं जारी रखने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री सुविधा अधिनियम बना डाला था। इस अधिनियम को एक संस्था ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर हाईकोर्ट ने उस अधिनियम को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था।
अब सोचने वाली बात यह है कि जिस प्रदेश में कपड़ों की तरह बदलते हुए मुख्यमंत्री 'पूर्व' बन जा रहे हैं, वहां जनता की खून पसीना एक कर कमाई हुई पूंजी को कैसे लुटाया जाता है।
माननीयों के ठाठ बाट यहीं ख़त्म होते दिखते तब भी ठीक था, साल 2018 में हिंदुस्तान में एक ख़बर आई कि उत्तराखंड के विधायक भी अब मालदार हो गए हैं। विधायकों के वेतन भत्तों में कुल 120 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की गई थी। विधेयक के तहत विधायकों के लिए होम लोन की सीमा 30 लाख से बढ़ाकर पचास लाख कर दी गई।
यह वही समय था जब उत्तराखंड में बेरोज़गारी की दर तेज़ी से बढ़ रही थी, पिछले पांच सालों में उत्तराखंड की बेरोजगारी दर छह गुना से ज्यादा बढ़ गई है। कोरोना महामारी के दौरान इसमें सबसे तेजी से वृद्धि हुई।
महामारी से पहले ही राज्य में बेरोजगारी तेजी से बढ़ चुकी थी। लॉकडाउन के बाद कामकाज ठप होने और काम के अभाव में घर लौटे प्रवासियों के चलते प्रदेश में बेरोजगारी बेकाबू होने लगी है।
मुख्यमंत्री बनते ही पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून स्थित उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी शहीद स्मारक पर जा पुष्पांजलि अर्पित की और ट्वीट किया शहीद राज्य आंदोलनकारियों को भावभीनी पुष्पांजलि। हमारी सरकार उत्तराखंड को शहीद आंदोलनकारियों के सपनों का राज्य बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित है।
शहीद राज्य आंदोलनकारियों को भावभीनी पुष्पांजलि।
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) July 3, 2021
हमारी सरकार उत्तराखंड को शहीद आंदोलनकारियों के सपनों का राज्य बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित है। pic.twitter.com/J7zgYAKTip
साथ ही उनका बयान आया कि मेरा ये लक्ष्य होगा कि हमारे जो हज़ारों-लाखों भाई बेरोजगार हैं, उनको रोजगार से जोड़ने का काम हो।
यह बात ठीक है कि उनके सामने बहुत सी चुनौतियां हैं और समय कम, पर यह देखने वाली बात होगी कि क्या वह अपने पूर्ववर्तियों की तरह ही जनता को भूल सिर्फ नेताओं के ऐशोआराम की व्यवस्था करेंगे।
राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच कैसी है कोरोना के खिलाफ़ जंग
उत्तराखंड में अप्रैल माह में हुए कुम्भ के बाद कोरोना तेज़ी से फ़ैला, 13 अप्रैल 2021 को कोरोना से हो रही मौत दो अंकों तक पहुंची 17 मई को यह आंकड़ा एक दिन में 223 तक भी पहुंचा।
कुंभ के दौरान प्रदेश में हुआ देश का सबसे बड़ा कोविड टेस्ट घोटाला भी अब सामने आ गया है जिसमें सरकार द्वारा अनुबंधित जांच प्रयोगशालाओं ने कम से कम कोविड की एक लाख फर्जी रिपोर्ट जारी की।
We are releasing a detailed analysis of 1210 backlog deaths in Uttarakhand till 30th June 2021 today. Stay tuned! #COVID19 #Uttarakhand #BacklogDeaths https://t.co/3yOVvrigII
— Social Development for Communities Foundation (@sdcfoundationuk) July 5, 2021
देहरादून स्थित 'सोशल डेवलपमेंट फ़ॉर कम्युनिटीज फाउंडेशन' संस्था के अनूप नौटियाल के एक ट्वीट के अनुसार 30 जून 2021 तक प्रदेश में 1210 बैकलॉग मृत्यु दर्ज हुई हैं। मृत्यु दर में 2.15% के साथ उत्तराखंड देश में पंजाब के बाद दूसरे स्थान पर है। इससे पता चलता है की राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं मे सुधार की बड़ी आवश्यकता है।
यहां उत्तराखंड हाईकोर्ट में दायर नवनीश नेगी की याचिका पर भी ध्यान देना जरूरी है, जहां उन्होंने अपनी याचिका में कोर्ट का ध्यान पौढ़ी गढ़वाल जिले की ओर खींचा और नोडल ऑफिसर द्वारा प्राप्त हुए जिले के विभिन्न अस्पतालों के आंकड़े दिए गए। इन आंकड़ों के अनुसार जिला अस्पतालों के कोविड हेल्थ सेंटरों में दस वेंटिलेटर हैं, उनमें कोई भी एक्टिव मोड में नही है। आंकड़ों से पता चलता है कि जिले के अस्पतालों में आईसीयू के केवल चार बेड हैं।