Haldwani Court: हल्द्वानी के हिस्से में उत्तराखंड हाईकोर्ट, 3 शहरों में चल रही रस्साकशी पर कैबिनेट ने लिया फैसला, रामनगर में निराशा
Haldwani Court: हल्द्वानी के हिस्से में आई उत्तराखंड हाई कोर्ट, तीन शहरों में चल रही रस्साकशी पर कैबिनेट ने लिया फैसला, रामनगर में निराशा
Haldwani Court: भूगर्भीय दृष्टि से नाजुक मिजाज के नैनीताल शहर से प्रदेश के उच्च न्यायालय को हल्द्वानी शिफ्ट करने का फैसला बुधवार को आयोजित कैबिनेट की बैठक में हो गया। नैनीताल शहर में उच्च न्यायालय के संभावित विस्तार के लिए आने वाली अड़चनों और पर्यटकों के बढ़ते दबाव के चलते हाई कोर्ट को यहां से हटाकर दूसरी जगह स्थापित किए जाने की बात लंबे समय से की जा रही थी। राष्ट्रपति द्वारा राज्य में हाई कोर्ट की स्थापना के लिए जनपद नैनीताल का नोटिफिकेशन होने के कारण हाई कोर्ट को केवल नैनीताल जिले में ही स्थापित किया जा सकता था। जिले से बाहर हाई कोर्ट को ले जाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से लेकर राष्ट्रपति भवन तक से तमाम अनापत्तियों के बाद नोटिफिकेशन हासिल करने की लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता। ऐसे में हाई कोर्ट के नैनीताल जिले में ही तीन दावेदार थे। जिसमें से एक खुद, नैनीताल तो दूसरा हल्द्वानी और तीसरा दावेदार रामनगर था। लेकिन बुधवार को धामी कैबिनेट की बैठक में इस मुद्दे को हल्द्वानी के पक्ष में निस्तारित कर दिया गया।
राज्य स्थापना के बाद अस्थाई राजधानी के तौर पर देहरादून तथा "स्थाई" उच्च न्यायालय के लिए जिला नैनीताल का नोटिफिकेशन किया गया था। नैनीताल में स्थाई हाई कोर्ट की स्थापना के बाद यहां आधारभूत ढांचे की अवस्थापना का काम शुरू हुआ। लेकिन भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील होने के चलते नैनीताल शहर में हाई कोर्ट के विस्तार की भी एक सीमा थी, जो पहले ही पूरी हो चुकी थी। न्यायालय का कामकाज बढ़ने के साथ ही यहां नई बेंच स्थापित होने की वजह से न्यायाधीशों सहित न्यायिककर्मियों के लिए आवास सहित तमाम दुश्वारियों सामने आने लगी थी। उस पर सरोवरनगरी नैनीताल में लगातार सैलानियों की बढ़ती आमद के दबाव की स्थिति यह थी कि नैनीताल शहर की व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन सैलानियों को कभी रूसी बाई पास कभी कालाढूंगी तो कभी ज्योलिकोट में रोककर उन्हें नैनीताल शहर में प्रवेश नहीं करने देता था। इसकी अलावा एक और खास बात थी, वह यह थी कि नैनीताल पर्यटन शहर होने के नाते यहां आने वाले वादकारियों के लिए बहुत महंगा पड़ता है। ऐसी सूरत में नैनीताल के पर्यटन व्यवसायी भी अपने को असहज महसूस कर रहे थे तो दूसरी तरफ हाई कोर्ट की बढ़ती जरूरतों का भी कोई समाधान नहीं निकल रहा था। समस्या के समाधान के तौर पर हाई कोर्ट को यहां से अन्यत्र स्थापित करने के विचार ने जन्म लिया। लेकिन यहां एक पेंच यह था कि हाई कोर्ट का नोटिफिकेशन नैनीताल जनपद का ही होने के कारण इसकी स्थापना नैनीताल जिले में ही की जा सकती थी। जिसके बाद हाई कोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर तीन गुट बन गए।
हाई कोर्ट की स्थापना को लेकर एक गुट नैनीताल से ही जुड़ा था। जो नहीं चाहता था कि यहां से हाई कोर्ट अन्यत्र स्थापित हो। इस गुट का तर्क था कि पहाड़ की हाई कोर्ट को मैदानी क्षेत्र में स्थापित करना पहाड़ का अपमान है। जबकि रामनगर और हल्द्वानी के लोग अपने शहर के विकास के लिए अपने अपने शहर में हाई कोर्ट को स्थापित करना चाहते थे। हाई कोर्ट की शिफ्टिंग की सुगबुगाहट के बाद रामनगर में तो इसके लिए बकायदा आंदोलन भी शुरू हो गया था। रामनगर में हाई कोर्ट को शिफ्ट किए जाने के लिए शुरू किए आंदोलन के दौरान सरकार को यह भी बताया गया कि यहां हाई कोर्ट की जरूरतों के लायक न केवल पूरी जमीन है बल्कि हाई कोर्ट इस जगह को पसंद भी कर चुका है।
रामनगर हवाई अड्डे के नजदीक है, रेलवे स्टेशन यहां है, प्रदेश के हर हिस्से की रामनगर तक सीधी पहुंच है जैसे अनगिनत तर्क भी दिए गए। लेकिन इन सब तर्कों को अस्वीकार करते हुए प्रदेश सरकार ने अंततः बुधवार को प्रदेश के उच्च न्यायालय को हल्द्वानी गौला पार क्षेत्र में स्थापित करने का निर्णय लेकर इस पूरे मुद्दे का पटाक्षेप कर दिया। कैबिनेट के इस निर्णय के बाद हल्द्वानी के लोगों में खुशी है। वहां के अधिवक्ताओं ने मिठाई बांटकर अपनी खुशी को साझा भी किया है। जबकि नैनीताल में ऑफिस और मकान बना चुके अधिवक्ताओं को कैबिनेट के इस फैसले से झटका लगा है। रामनगर में भी कैबिनेट का फैसला पब्लिक डोमेन में आते ही निराशा का माहौल व्याप्त हो गया। रामनगर के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की काहिली को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए दलील दी जा रही है कि रामनगर से जुड़े सांसद व विधायक (दोनो ही भारतीय जनता पार्टी से हैं) यदि चाहते तो उच्च न्यायालय रामनगर में स्थापित हो सकता था।
जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता से हाई कोर्ट से वंचित हुआ रामनगर
नैनीताल स्थित उच्च न्यायालय को नैनीताल से हल्द्वानी शिफ्ट किए जाने के कैबिनेट के फैसले पर उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे स्थानीय विधायक और सांसद की निष्क्रियता का परिणाम बताया है। पार्टी के प्रधान महासचिव व राज्य आंदोलनकारी प्रभात ध्यानी ने उत्तराखंड सरकार द्वारा हाईकोर्ट को नैनीताल से हल्द्वानी शिफ्ट करने के कैबिनेट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि रामनगर विधायक दीवान सिंह बिष्ट एवं सांसद तीरथ सिंह रावत की निष्क्रियता के कारण हाईकोर्ट रामनगर शिफ्ट होने से रह गई। जबकि रामनगर बार एसोसिएशन की अगुवाई में रामनगर के सामाजिक राजनीतिक संगठनों ने हाई कोर्ट को नैनीताल से रामनगर शिफ्ट करने के लिए अभियान भी चलाया था।
इस संबंध में विधायक व सांसद की अगुवाई में मुख्यमंत्री से मिलने के लिए विधायक प्रतिनिधि गणेश रावत व सांसद प्रतिनिधि इंद्र सिंह रावत ने विश्वास दिलाया था कि इस संबंध में सांसद विधायक से वार्ता कर मुख्यमंत्री से मिलने का समय लिया जाएगा। इतना ही नहीं इस मामले में विधायक दीवान सिंह से व्यक्तिगत तौर पर भी संपर्क किया गया। लेकिन उनकी निष्क्रियता के कारण आज उत्तराखंड सरकार की कैबिनेट की बैठक में हाईकोर्ट रामनगर की बजाए हल्द्वानी शिफ्ट करने का फैसला लिया गया। जबकि इस संबंध में रामनगर के आमपोखरा को भी हाईकोर्ट के लिए उपयुक्त माना गया था। लेकिन जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता के कारण रामनगर एक बार फिर विकास से वंचित रह गया है।