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राजनीति

Uttarakhand Election 2022 : इन बागियों के फेर में चकरघिन्नी बनी भाजपा-कांग्रेस, भाजपा को बड़े नुकसान की आशंका

Janjwar Desk
30 Jan 2022 4:00 PM IST
Uttarakhand Election 2022 : इन बागियों के फेर में चकरघिन्नी बनी भाजपा-कांग्रेस, भाजपा को बड़े नुकसान की आशंका
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Uttarakhand Election 2022 : उत्तराखण्ड में ज़िन्दगी भर पार्टी का झण्डा-डंडा ढोकर भी ऐन चुनाव के मौके पर दूसरों को टिकट थमाए जाने से आहत कार्यकर्ताओं की राजनैतिक निष्ठा पर महत्त्वकांक्षा भारी पड़ रही है।

Uttarakhand Election 2022: उत्तराखण्ड में ज़िन्दगी भर पार्टी का झण्डा-डंडा ढोकर भी ऐन चुनाव के मौके पर दूसरों को टिकट थमाए जाने से आहत कार्यकर्ताओं की राजनैतिक निष्ठा पर महत्त्वकांक्षा भारी पड़ रही है। विधानसभा की कई सीटों पर टिकट वितरण के बाद कई ऐसे लोगों की गलतफहमी भी दूर हो गयी है जो सोच रहे थे कि पूरी पार्टी का भार ही उनके नाजुक कंधों पर है।

पार्टी की इस निर्ममता के विरुद्ध ऐसे कार्यकर्ता मुखर होकर अब उसी पार्टी की जड़ों में मट्ठा डालने में आमादा हैं, जिसे कभी उन्होंने अपने खून-पसीने से सींचा था। बग़ावत की स्थितियां भाजपा-कांग्रेस में तो हैं ही नई नवेली आम आदमी पार्टी भी इससे अछूती नहीं है। वर्तमान में कांग्रेस-आम आदमी पार्टी की जो राजनैतिक स्थिति है, उसमें इन दोनों दलों के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। इसलिए इस बग़ावत का सर्वाधिक नुकसान भाजपा को होने की आशंका व्यक्त की जा रही है।

कभी राजनीति की डगर के साथी रहे इन बागियों की बग़ावत ने अपनी ही पार्टी के दिग्गजों को सांसत में डाल दिया है। अभी की ताजा तस्वीर में 28 सीटों में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी बग़ावत के भंवर में गोते लगा रहे हैं। इसमें भाजपा के 16 तो कांग्रेस के 12 प्रत्याशी शामिल हैं। जहां बागियों ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपने-अपने नामांकन कर रखे हैं।

बात शुरू करें कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की तो बग़ावत के खौफ से रामनगर से साजो-सामान समेटकर लालकुआं पहुंचे पूर्व सीएम लालकुआं में भी बग़ावत के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं। यहां वही संध्या डालाकोटी उनके लिए सिरदर्द बनी हुई हैं, जिनको मिला टिकट काटकर हरीश लालकुआं चुनाव लड़ने आये हैं। बदली स्थिति में पार्टी की प्रत्याशी बनाई गई संध्या डालाकोटी ने टिकट कटने पर निर्दलीय के तौर पर अपना नामांकन कर दिया।

यहां से भाजपा के पवन चौहान और कुंदन सिंह मेहता भी बागी हो गये हैं। ऋषिकेश से कांग्रेस के पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण तो भाजपा से उषा रावत बागी हो गये हैं। रुद्रप्रयाग से कांग्रेस के पूर्व मंत्री मातबर सिंह कंडारी भी बगावत का झंडा बुलंद कर चुके हैं। रामनगर से पूर्व सांसद महेंद्र पाल को टिकट मिलने से नाराज पूर्व ब्लॉक प्रमुख संजय नेगी ने निर्दलीय के तौर पर ताल ठोक दी है। कालाढूंगी से भाजपा के बंशीधर भगत पार्टी के बागी गजराज बिष्ट से सहमे हुए हैं।

रुद्रपुर से वर्तमान विधायक व फायरब्रांड नेता राजकुमार ठुकराल ने अपना टिकट कटने के बाद भाजपा प्रत्याशी शिव अरोरा के सामने निर्दलीय के तौर पर संग्राम छेड़ दिया है तो किच्छा सीट से राजेश शुक्ला को दोबारा प्रत्याशी बनाये जाने पर अजय तिवारी बागी हो गये हैं। यहीं पर कांग्रेस का टिकट तिलकराज बेहड़ को मिलने पर हरीश पनेरू ने बग़ावत का झंडा बुलंद किया हुआ है।

भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के डोईवाला से चुनाव न लड़ने के एलान के बाद तो भाजपा के तीन नेताओं जितेंद्र नेगी, सुभाष भट्ट और सौरभ थपलियाल ने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के सामने निर्दलीय के तौर पर ताल ठोक दी है। भीमताल से भाजपा के लाखन सिंह नेगी और मनोज साह पार्टी के लिए मुसीबत बन चुके हैं।

रानीखेत से भाजपा के दीपक करगेती तो बागेश्वर से कांग्रेस के भैरवनाथ ने बगावत कर दी है। सहसपुर से कांग्रेस के अकील अहमद तो धर्मपुर सीट से भाजपा के वीर सिंह पंवार तो देहरादून कैंट से भाजपा के दिनेश रावत तो कांग्रेस के चरणजीत कौशल बागी हो गये हैं।

राजपुर विधानसभा से कांग्रेस के संजय कन्नौजिया तो रायपुर से कांग्रेस के सूरत सिंह नेगी ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है। हरिद्वार के ज्वालापुर से कांग्रेस के एसपी सिंह, रानीपुर सीट से भाजपा के इंशात तेजीयान तो पिरान कलियर से भाजपा के जयभगवान सैनी के सुर भी बगावत में मुखर हैं।

टिहरी के घनसाली से कांग्रेस के भीम लाल आर्य, भाजपा के सोहन लाल चांडेलवाल और दर्शनलाल तो धनौल्टी से भाजपा के पूर्व विधायक महावीर रांगड़ बागी हो गये हैं। कोटद्वार से रितु खंडूरी को प्रत्याशी बनाये जाने से भाजपा के धीरेंद्र चौहान बागी हो गये हैं तो चमोली के कर्णप्रयाग से भाजपा के टीका प्रसाद मैैखुरी ने संग्राम छेड़ रखा है।

कुल मिलाकर विधानसभा चुनाव के लिए सोच-विचारकर भी टिकट दिए जाने के बाद भाजपा-कांग्रेस आंतरिक बग़ावत से नहीं बच सकीं। ऐसे में इन पार्टियों का सारा जोर बागियों कज़ मान-मनौव्वल कर उनके नामांकन वापसी को लेकर ही है। यदि बागी मान गए तो ठीक, अन्यथा उन्हें नुकसान झेलने के लिए तैयार रहना होगा।

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