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उत्तराखण्ड के इतिहास में पहली बार बिना कस्टडी के एससी-एसटी एक्ट में मिली जमानत, चर्चित एक्टिविस्ट अधिवक्ता चंद्रशेखर करगेती का मामला

Janjwar Desk
25 Nov 2021 5:26 PM GMT
उत्तराखण्ड के इतिहास में पहली बार बिना कस्टडी के एससी-एसटी एक्ट में मिली जमानत, चर्चित एक्टिविस्ट अधिवक्ता चंद्रशेखर करगेती का मामला
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उत्तराखण्ड के न्यायिक इतिहास में बुधवार को एससी-एसटी के एक मुकदमें में आरोपी की बिना किसी कस्टडी के जमानत मिलने का निर्णय लिया गया। मूल रूप से सवर्ण ब्राह्मण लेकिन जनजातीय क्षेत्र में रहने के कारण जौनसारी जनजाति का प्रमाण पत्र बनवाने एक अधिकारी ने खुद को मिले एससी-एसटी दर्जे के तहत यह मुकदमा मूलरूप से राज्य के बहुचर्चित समाज कल्याण विभाग में हुए छात्रवृत्ति घोटाले से जुड़े एक विवाद के फलस्वरूप देहरादून में दर्ज कराया गया था।

देहरादून। उत्तराखण्ड के न्यायिक इतिहास में बुधवार को एससी-एसटी के एक मुकदमें में आरोपी की बिना किसी कस्टडी के जमानत मिलने का निर्णय लिया गया। मूल रूप से सवर्ण ब्राह्मण लेकिन जनजातीय क्षेत्र में रहने के कारण जौनसारी जनजाति का प्रमाण पत्र बनवाने एक अधिकारी ने खुद को मिले एससी-एसटी दर्जे के तहत यह मुकदमा मूलरूप से राज्य के बहुचर्चित समाज कल्याण विभाग में हुए छात्रवृत्ति घोटाले से जुड़े एक विवाद के फलस्वरूप देहरादून में दर्ज कराया गया था।

इस दिलचस्प मुकदमे की पृष्ठभूमि में राज्य का वह बहुचर्चित मामला है जिसमें समाज कल्याण विभाग में करोड़ों रुपये का छात्रवृत्ति घोटाला सामने आया है। इस घोटाले के तार शासन स्तर से इतने नाभिनाल थे कि घोटाले की जांच के लिए गठित एसआईटी ने कई अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेजा था। इस घोटाले का पर्दाफाश करने में हल्द्वानी के वरिष्ठ अधिवक्ता व एक्टिविष्ट चन्द्रशेखर करगेती ने सूचनाधिकार के माध्यम से तमाम सूचनाएं हासिल करके महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसी घपले-घोटाले की जांच की आंच समाज कल्याण विभाग के उपनिदेशक गीताराम नौटियाल जो बाद में अनुसूचित जनजाति आयोग के सचिव भी बने, तक पहुंचने लगी। जिस पर नौटियाल ने करगेती की इसी घपले-घोटाले से जुड़ी कुछ सोशल मीडिया पोस्ट को आधार बनाते हुए देहरादून के वसंत विहार थाने में करगेती के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।

मुकदमा दर्ज करने के लिए करगेती के खिलाफ दी गयी शिकायत की शुरुआत में ही जाति से सवर्ण ब्राह्मण गीताराम नौटियाल ने अपना उल्लेख जनजाति के सदस्य के तौर पर किया था। यहां बताते चलें कि उत्तराखंड के जिस क्षेत्र के नौटियाल निवासी हैं, वह क्षेत्र जनजातीयबहुल हैं। इस क्षेत्र में जौनसारी जनजाति के अलावा अन्य लोग भी जौनसारी जनजाति का जाति प्रमाण पत्र बनवाकर जनजाति को मिलने वाले लाभ प्राप्त करते हैं। इसी का लाभ उठाकर नौटियाल ने भी अपनी ब्राह्मण जाति को छिपाकर जौनसारी जनजाति ल समुदाय का सदस्य बताते हुए करगेती के खिलाफ एससी-एसटी सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज करवाया था।

जिन धाराओं में करगेती के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया गया था, उन धाराओं में आरोपी की जमानत से पूर्व निश्चित गिरफ्तारी का प्रावधान है। लेकिन इस मामले में विद्वान जज आशुतोष कुमार मिश्र, विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) पंचम अपर सत्र न्यायाधीश देहरादून ने करगेती की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उनके गैर आपराधिक इतिहास व मामले की चार्जशीट दाखिल होने को आधार बनाते हुए उनकी जमानत मंजूर कर दी। कानून के जानकारों की नजर में इन धाराओं में दर्ज इस मुकदमें में आरोपी को बिना हिरासत में लिए जमानत दिए जाने का यह उत्तराखण्ड राज्य में पहला मामला है।

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