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Varanasi Suicidal Point Case : बनारस के सुसाइडल प्वाइंट से 1 साल में 100 लोगों की मौत, लेकिन जान बचाने वाली 10 फीट उंची जाली नहीं लगा पा रहे अधिकारी

Janjwar Desk
11 Jun 2022 7:11 PM IST
Varanasi Suicidal Point Case : बनारस के सुसाइडल प्वाइंट से 1 साल में 100 लोगों की मौत, लेकिन जान बचाने वाली 10 फीट उंची जाली नहीं लगा पा रहे अधिकारी
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Varanasi Suicidal Point Case : बनारस के सुसाइडल प्वाइंट से 1 साल में 100 लोगों की मौत, लेकिन जान बचाने वाली 10 फीट उंची जाली नहीं लगा पा रहे अधिकारी

Varanasi Suicidal Point Case : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र और स्मार्ट सिटी बनारस की विडंबना यह है कि हादसों को रोकने के लिए डीएम के आदेश के बाद लोक निर्माण व सम्बंधित विभागों की तरफ से रेलिंग पर दोनों तरफ 10 फीट ऊंची जाली लगने वाली थी, जो आजतक नहीं लग पाई...

उपेंद्र प्रताप की ग्राउंड रिपोर्ट

Varanasi Suicidal Point Case : बनारस (Varanasi) में गंगा नदी पर बने राजघाट पुल, लंका-रामनगर का शास्त्री ब्रिज (Shastri Bridge) और सामनेघाट स्थित विश्वसुंदरी ब्रिज सुसाइड प्वाइंट बन गए हैं। कैलेंडर का कोई ऐसा महीना नहीं होगा, जिसकी तारीखें पुल से छलांग लगाकर मरने वालों की खून से लाल नहीं हो। तीनों पुलों को मिलाकर हर महीने करीब पांच से सात लोग गंगा नदी में कूदकर आत्महत्या कर लेते हैैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र और स्मार्ट सिटी बनारस की विडंबना यह है कि हादसों को रोकने के लिए डीएम के आदेश के बाद लोक निर्माण व सम्बंधित विभागों की तरफ से रेलिंग पर दोनों तरफ 10 फीट ऊंची जाली लगने वाली थी, जो आजतक नहीं लग पाई।

'जब मैं गंगा नदी पर बने राजघाट ब्रिज (Rajghat Bridge) की रोड पर पहुंचा- वह आधा लटक कर फोन पर किसी से बातचीत कर रहा था और अजीब पशोपेश में दिख रहा था। मुझे ब्रिज पर पहुंचते ही उसने जाने कैसे देख लिया ? मैं कुछ समझ पाता तब तक भैया ने गंगा में छलांग लगा दी। यह देख मेरा कलेजा सन्न रह गया और आंखे फटी की फटी रह गई। एक-दो मिनट मुझे महसूस हुआ कि मेरे पूरे शरीर को लकवा मार दिया है। जैसे-तैसे मैं रेलिंग तक जाता, तब तब भैया साठ फीट की ऊंचाई से ब्रिज के सीमेंट पिलर से टकराकर गंगा थे। इस घटना के दस मिनट भी नहीं बीते होंगे कि पूरे ब्रिज पर वाहनों की लम्बी कतारें लग गई और सैकड़ों राहगीरों का हुजूम और उनकी सैकड़ों आश्चर्य में डूबी आंखें गंगा में भैया को ढूंढने और बचाने की संभावनाएं तलाशने लगी। परिजन और रिश्तेदार भी राजघाट पुल और हादसे वाली जगह नीचे गंगा में किनारे जुटने लगे। धीरे-धीरे एक घंटा से अधिक बीत गया और भैया की बॉडी गंगा की सतह पर नहीं आ सकी। सभी की मजबूरी में यह स्वीकारना पड़ रहा था कि गोविन्द यानी मेरे भैया अब कभी भी जिंदा नहीं लौट सकेंगे।'

महेंद्र सोनकर आगे बताते हैं कि 'यदि राजघाट पुल के दोनों तरफ कुछ ऊंचाई तक जाली लगी रहती तो भैया अचानक से नहीं कूद पाते। साथ ही हमलोगों द्वारा भैया को बचाने की कोशिश का एक मौका मिलता। मुझे बड़ा अफसोस है कि भैया मेरे सामने ही गंगा में कूद गया और मैं कुछ कर नहीं सका। राजघाट पुल के जिम्मेदार अधिकारियों से मेरी मांग है कि जल्द से जल्द दोनों तरफ जाली लगाकर घेर दें, ताकि मेरी तरह अन्य लोगों के साथ ऐसा दिल दहलाने वाला हादसा नहीं हो। वे अपने परिवार के सदस्य को मौत के मुंह में छलांग लगाने से बचा सकें।' यह बात कहते हुए उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित सारनाथ थाना क्षेत्र के खालिसपुर गांव निवासी महेंद्र सोनकर सुबक उठते हैं। खालिसपुर गांव की दूरी वाराणसी जिला मुख्यालय (Varanasi District Headquarter) से बमुश्किल 15 से 18 किलोमीटर है और गंगा पर बने राजघाट पुल से 04 किलोमीटर। खालिसपुर में शुक्रवार को दहकते और बदन झुलसती दुपहरी में कैलाश की सुबक ने अचानक से वातावरण में नमी घोल दी। इससे उपस्थित दर्जन भर लोगों की अपने गांव के जवान बेटे को खोने के गम में आंखों की नमी बाहर आने को मचल गई और दर्द का सीलन ऐसा की दिल सीज गया।

सामनेघाट स्थित जाली विहीन राष्ट्रीय राजमार्ग-2 का विश्व सुंदरी ब्रिज। अक्सर इस ब्रिज से स्टूडेंट और लोग कूदकर जान दे देते हैं।

बनारस में गंगा नदी पर बने राजघाट पुल, लंका-रामनगर का शास्त्री ब्रिज और सामनेघाट स्थित विश्वसुंदरी ब्रिज सुसाइड प्वाइंट बन गए हैैं। कैलेंडर का कोई ऐसा महीना नहीं होगा, जिसकी तारीखें पुल से छलांग लगाकर मरने वालों की खून से लाल नहीं हो। तीनों पुलों को मिलाकर हर महीने करीब पांच से सात लोग गंगा नदी में कूदकर आत्महत्या कर लेते हैैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र और स्मार्ट सिटी बनारस की विडंबना यह है कि हादसों को रोकने के लिए डीएम के आदेश के बाद लोक निर्माण व सम्बंधित विभागों की तरफ से रेलिंग पर दोनों तरफ 10 फीट ऊंची जाली लगने वाली थी, जो आजतक नहीं लग पाई. नतीजा आए दिन किसी न किसी ब्रिज से कूदकर जान देने वालों की खबरों से सुबह का अखबार रंगा होता है। सालभर में ब्रिजों से गंगा में कूदकर होने वाली मौतों की संख्या 100 से पार जा चुकी है।

वाराणसी और आसपास के जनपदों से प्रेम-प्रसंग, नाराजगी, पारिवारिक कलह, घाटा, कर्ज, आर्थिक तंगी, लाइलाल बीमारी व अन्य कारणों से लोग सुसाइड करने के लिए राजघाट, शास्त्री और विश्वसुंदरी पुल को चुनते हैैं। ये तीनों पुल असुरक्षित है। इन्हें लोहे या स्टील की जाली से नहीं घेरा गया है। सामनेघाट से रामनगर तक बने पुल पर अक्सर आत्महत्या की घटनाएं पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुकी हैं। पुलिस और एनडीआरएफ के लोग घंटों तलाश करते रहते हैं. घटनाओं को रोकने के लिए अक्सर फैंटम और पुलिस दस्ता चक्रमण भी करती हैं लेकिन हादसे नहीं रूक रहे हैं. तत्कालिन लंका इंस्पेक्टर महेश पांडेय ने ब्रिज से किए जा रहे आत्महत्या को रोकने के बाबत गंगा पुल पर ऊंची जाली लगाने के लिए पत्राचार भी किया था। इसके बाद जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने निर्देश दिया था कि जल्द से जल्द जाली लगा दी जाए। लेकिन अब तक जाली नहीं लगी है.

अपने बेटे खोने के गम में डूबे 58 साल के भैयालाल सोनकर 'जनज्वार' को बताते हैं कि 'गोविंद रिश्तेदारी में गया था और घर आया तो किसी से कोई बात ही नहीं की. उसके रिश्तेदारी से लौटने के दौरान मेरी आखिरी मुलाकात सरैया में हुई। गोविन्द अपने बाएं से आता रहा और मैं अपने बाएं से जाता रहा। न कोई बात न कोई न कोई शिकायत। मुझे ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि आज कोई बड़ी घटना घटने वाली है। मैं शनिवार की रात दस बज रहे होंगे। मैं ठेले पर आम बेचकर घर लौट रहा था। अपने गांव के नजदीक रास्ते पर पहुँचने पर एक व्यक्ति ने रोककर पूछा कि आपका कोई बेटे हलकी ढाढ़ी रखता है। मैंने बताया हां मेरे दो बेटे हलकी ढाढ़ी रखते हैं। उसने कहा गोविंद आपका ही लड़का है, जो दोपहर में दो-ढाई बजे राजघाट पुल से कूदकर मर गया। यह सुनते ही मैं बेहोश हो गया। जैसे-तैसे लोगों ने घर पहुंचाया।

जवान बेटे की वियोग में घर के बहार बैठीं लालमनी देवी की आंखें पथराई हुई है। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा है। लड़का सायना और जिम्मेदार हो गया था। ऐसे में परिवार को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी और शादी आदि की बातों पर विचार किया जा रहा था। ऐसे में शनिवार की शाम को मनहूस खबर मिलते ही लालमनी अन्दर ही अन्दर टूटती जा रही हैं। बाह कहती हैं कि 'शनिवार की सुबह गोविन्द रिश्तेदारी से आया। घर में खीर-पूड़ी बनी हुई थी। मैनें उसे खाना खाने के लिए कहा तो उसने मना करते हुए कहा कि थोड़ी देर में आकर खाना खाऊंगा। वह तो नहीं आ सका, लेकिन उसकी मौत की खबर आ गई। उसने ऐसा क्यों किया समझ में नहीं आ रहा।'

मई महीने में राजघाट पुल से गंगा में कूदकर आत्महत्या करने वाले गोविंद की मां लालमनी देवी । अपने जवान बेटे के खोने के गम में बेसुध रहती हैं।

राजघाट पुल पर शव निकलने वालों गोताखोरों की भूमिका पर सवाल उठाते हुए मृतक गोविन्द के बड़े भाई कैलाश सोनकर बताते हैं कि ' मुझे ऐसा लगता है गोविन्द के गंगा में डूबने के बाद खोजबीन अभियान में गोताखोर उसकी लाश को पानी में कहीं छुपा दिए थे। पहले दिन की खोजबीन में उसकी लाश नहीं मिल सकी और गोताखोर बिना बताए ही घर चले गए। दूसरे दिन एक गोताखोर ने 10 हजार रुपए की डिमांड की और कहा कि हम लाश खोज देंगे। लाश नहीं मिलने से हमलोग पहले से ही परेशान थे. लिहाजा, मैंने कहा लाश को खोजिये मैं पैसे दे दूंगा। इतने में दो-तीन गोताखोर घटना वाली जगह पर गंगा में उतरे और महज 10 मिनट में लाश खोजकर पानी से बाहर ले आए। ज़रा आप सोचिये- गंगा में हल्का-फुल्का बहाव बना हुआ है। गोविन्द की लाश वहीं मिली जहां वह डूबा था। आखिर ये गोताखोर पहले दिन ही क्यों नहीं लाश को खोज पाए। इतना ही नहीं पैसे की लालच में लाश को गंगा में छिपाने के दौरान एक गोताखोर का सिर फट गया और वह घर चला गया। गोताखोर भी अब भरोसे के नहीं रहे। कुछ रुपए की लालच में मानवीय मूल्यों का मजाक उड़ाने में लगे हुए हैं. मैंने लाश निकलने के छह हजार रुपए का भुगतान गोताखोरों को किया।'

इसपर गोताखोर राकेश निषाद कहते हैं कि 'ये गलत बात है। जिनको पैसे चाहिए होते हैं वे मांग लेते हैं, लेकिन किसी की लाश गंगा में भला क्यों छिपाएंगे ? मछली पकड़ते या सैलानियों को सैर-सपाटे कराने के दौरान नदी में असमान्य हरकत होने पर मल्लाह शोर करते हुए बीच गंगा में स्पॉट पर पहुंचते हैैं। सही समय पर पहुंच जाने से कुछ लोगों को बचाने में सफलता मिल जाती है। देर से पता चलने पर डेड बॉडी खोजने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। उन्होंने सरकार से गोताखारों को भी पेंशन और भत्ता देने की मांग की है।'

अवसादग्रस्त व्यक्ति को अकेला नहीं छोड़े

मनोवैज्ञानिक डॉ. मुकेश पंथ बताते हैं कि 'लम्बे समय से उदास-परेशान व्यक्ति को उपदेश न दें, भरोसा जताएं। बहस न करें। साथ में थोड़ी दूर टहलने की कोशिश करें। मित्र-परिजन को आगाह कर दें कि उससे मेल-मिलाप बढ़ाएं। अवसादग्रस्त शख्स को बिना अहसास कराए निगरानी रखें। उसे वह हर काम करने दें जो पसंदीदा हो। उससे परिवार या दफ्तर की कोई समस्या शेयर न करें। उसकी उपलब्धियां दोहराएं ताकि उसे पॉजिटिव एनर्जी मिले। जानकारी के बिना उसे मनोचिकित्सक से मिलवाएं। इन कोशिशों से अवसाद में रह रहे व्यक्ति को आत्महत्या की कोशिश से बचाया जा सकता है।' कमिश्नरेट वाराणसी के अपर पुलिस आयुक्‍त सुभाष चंद्र दुबे बताते हैं कि 'नागरिकों को अपने आसपास के परिवेश में मिल-जुलकर रहना चाहिए। भाई-बहन, माता-पिता, वाइफ, फ्रेंड, पड़ोसी और रिश्तेदारों से जुड़ाव बना रहे। सुसाइड केस एक मनोरोग होता है। यह क्षणमात्र के लिए हावी होता है। ऐसे में उदास-परेशान व्यक्ति की मदद करना हर अवेयर नागरिक का दायित्व है। यह दौर सामाजिकता की ओर लौट चलने का है।'

सारनाथ के खालिसपुर गांव में अपने घर पर बुजुर्ग फल विक्रेता भैयालाल सोनकर और उनके बेटे। तस्वीर में बाएं कैलाश का मानना है कि जाली लगी रहती तो मेरे भाई की जान बच सकती थी।

बजट के मिलते ही बांध दी जाएगी जाली

बनारस के बौद्धिक नागरिक वैभव त्रिपाठी शहर में ब्रिजों से गंगा में कूदकर सुसाइड करने वाली मौतों की संख्या से चिंतित हैं। वे कहते हैं कि 'भावनात्मक रूप से टूटा हुआ व्यक्ति ही आत्महत्या करने जाता है। आने वाले समय में और भी स्थित भयावह होने वाली है। स्मार्ट शहर बनारस के लिए ब्रिज से आत्महत्या के केसेज शोभा नहीं देते हैं। सभी पुलों पर 10 फीट की जाली लगाई जाए। प्रशासन और सत्ता सरकार को मौतों के मामलों को गंभीरता से एक्शन लेना चाहिए। सरकार और प्रशासन की लापरवाही के चलते आत्महत्या मौतों की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। जिनके घर के बच्चे और मुखिया ब्रिज से कूदकर मर जाते हैं, इससे पूरा परिवार आर्थिक और सामाजिक रूप से बिखर जाता है. ऐसे तीनों पुलों पर जाली लगाई जाए ताकि निर्दोषों की जान बच सकें।

केस-1

राजघाट पुल से शुक्रवार को एक महिला पारिवारिक कलह से तंग आकर गंगा में कूद गई। हालांकि मल्लाओं ने उसे बचा लिया। आदमपुर पुलिस ने उसे कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल में भर्ती कराया है। उसके परिजनों को बुलाकर समझाया गया, हिदायत दी गई। नक्खीघाट निवासी 27 साल की विवाहिता दोपहर में राजघाट पुल पर पहुंची और इधर-उधर देखने के बाद रेलिंग पर चढ़ गई। जब तक शोर मचाते हुए लोग उसे रोकते, उसने गंगा में छलांग लगा दी।

केस-2

राजघाट पुल पर बाइक खड़ी कर रविवार दोपहर शिक्षक ने गंगा में छलांग लगा दी। मल्लाहों और एनडीआरएफ के गोताखोरों ने देर शाम तक खोजबीन की। सूचना पाकर परिजन भी राजघाट पुल पहुंचे। मैदागिन स्थित कोतवाली थाना अंतर्गत जतनवर मोहल्ला निवासी चंद्रकांत तिवारी (29) शिवपुर स्थित अन्नपूर्णा मंदिर संस्कृत विद्यालय में शिक्षक हैं। दोपहर में वह बाइक से राजघाट पुल पर पहुंचा और कुछ देर मोबाइल पर बातचीत की फिर गंगा में कूद गया। राहगीरों के शोर मचाने पर मल्लाह तुरंत नाव लेकर गंगा में पहुंच गए। हालांकि तब तक चंद्रकांत गंगा में डूब चुका था। मौके पर पहुंचे सूजाबाद चौकी इंचार्ज संदीप तिवारी ने बाइक पर दर्ज रजिस्ट्रेशन नंबर के आधार पर चंद्रकांत तिवारी के रूप में पहचान की।

ब्रिज से छलांग लगाने के अन्य केसेज

-28 मई को राजघाट पुल से कूदा सारनाथ निवासी युवक, मौत

-13 मई को शास्त्री ब्रिज पर एक युवक ने अपने दो बच्चों के साथ कूदकर दी जान

-24 अप्रैल को मालवीय पुल से शिक्षक ने लगाई छलांग, मौत

-23 अप्रैल को सारनाथ निवासी युवती ने राजघाट पुल से गंगा में छलांग लगाई

-20 अप्रैल को शास्त्री पुल से कूदा युवक।

(सभी घटनाएं हाल के महीनों की हैं.)

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