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विमर्श

किसान आंदोलन के निशाने पर अडानी-अंबानी ग्रुप ही क्यों?

Janjwar Desk
10 Dec 2020 9:43 AM GMT
किसान आंदोलन के निशाने पर अडानी-अंबानी ग्रुप ही क्यों?
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यह जानना अहम है कि इन समूहों की कंपनियों का कितना सरोकार कृषि कानूनों के कारण किसानों की संभावित समस्याओं से अभी है या भविष्य में होनेवाला है...

वरिष्ठ पत्रकार राजेश पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों को लेकर देश के बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी और गौतम अडानी किसानों के निशाने पर हैं। कई किसान संगठनों का आरोप है कि मुकेश अंबानी और गौतम अडानी ग्रुप्स की कंपनियां खेती-किसानी के बाजारीकरण की कोशिशों में हैं, हालांकि ये कंपनियां इस बात से लगातार इंकार करती रहीं हैं। ऐसे में यह जानना अहम है कि इन समूहों की कंपनियों का कितना सरोकार कृषि कानूनों के कारण किसानों की संभावित समस्याओं से अभी है या भविष्य में होनेवाला है।

सरकार के साथ किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की 9 दिसंबर को हुई वार्ता फेल हो गई। सरकार के 22 पन्नों के पत्र को किसान संगठनों ने एक स्वर से खारिज कर दिया है। इसके साथ ही उन्होंने अंबानी-अडानी ग्रुप्स के उत्पादों और सेवाओं के बहिष्कार की घोषणा कर दी है।

किसानों का कहना है कि अब वो जियो सिम से लेकर रिलायंस के सभी सामानों का बहिष्कार करेंगे। उनका कहना है कि इस दौरान अडानी-अंबानी के पेट्रोल पंप का भी बहिष्कार किया जाएगा और वहां से पेट्रोल नहीं खरीदा जाएगा।

वस्तुतः किसानों के अंबानी-अडानी ग्रुप्स के प्रति रोष का कारण के पीछे यह वजह नजर आती है कि हालिया दौर में देश के सार्वजनिक क्षेत्रों के सरकारी प्रतिष्ठानों के निजीकरण की प्रक्रिया चलाई जा रही है। रेलवे, हवाई अड्डों सहित सार्वजनिक क्षेत्रो की कंपनियों और सेवाओं को पूर्ण या आंशिक रूप में निजी हाथों को सौंपा जा रहा है।

इसे संयोग कहें या अंबानी-अडानी ग्रुप्स की साख कहें, इन ग्रुप्स के मैनेजमेंट का पावर कहें या इनकी बड़ी पूंजी का जोर कहें, निजीकरण के इस दौर में इनमें से बड़े पैमाने पर काम इन दो ग्रुप्स को मिल जा रहे हैं। इसे लेकर किसान और उनके संगठन आशंकित हैं कि इन दो उद्योग समूहों के कारण ही भविष्य में खेती-किसानी की स्थिति खराब हों सकती है।

इसके अलावा अडानी समूह की कंपनी अडानी एग्री फ्रेश लिमिटेड की ऑफिशियल वेबसाइट में यह जानकारी दी गई है कि वह हिमाचल प्रदेश में 'स्टेट ऑफ द आर्ट' तकनीक से सेव की फार्मिंग का काम करा रही है और वहां वर्ल्डक्लास पैकेजिंग ऑपरेशन और स्टोरेज सुविधा भी उपलब्ध करा रही है। 'फार्म पिक' ब्रांडनेम और बिजनेस मॉड्यूल से वहां सेव की फार्मिंग, स्टोरेज और विपणन का कार्य कर रही है।

किसान नेताओं के अनुसार सरकार ने कोई स्पष्ट बात कहने की जगह गोलमोल बात कही है। 22 में आधे से ज्यादा पन्नों पर कृषि कानूनों की भूमिका, इसकी पृष्ठभूमि, फायदे, आंदोलन खत्म करने की अपील और धन्यवाद लिखा गया है। जो लिखा गया है, वह भी कोई स्पष्ट घोषणा नहीं है, बल्कि यह लिखा गया है कि इन सबपर विचार किया जा सकता है। सीधे तौर पर हां या न में कोई बात नहीं लिखी गई है।

इससे पहले दिसंबर में ही जब पंजाब के अमृतसर में किसानों का प्रदर्शन चल रहा था तो वहां उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रिलायंस इंडस्‍ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी, अडाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडाणी के पुतले भी फूंके थे।

बीते नवंबर में किसानों ने कई जगहों पर मुकेश अंबानी ग्रुप के उत्पाद जियो सिम कार्ड को जलाने की मुहिम चलाई थी। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर भी जियो के खिलाफ कई अभियान चलाए गए थे। इस क्रम में कई पंजाबी गायकों द्वारा सिम कार्ड को जलाने के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल भी हुए थे।

कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि गौतम अडानी का अडाणी ग्रुप ऐसी व्यवस्था और वेयरहाउस तैयार कर रहा है, जहां अनाज स्‍टोर करके रखा जाएगा और बाद में उन्‍हें ऊंची कीमत पर बेचा जाएगा।

किसान संगठनों की सोच है कि कॉरपोरेट कृषि और कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग जैसे प्रावधानों से बड़े उद्योगपतियों को लाभ होगा और किसानों से उनके छोटे-छोटे जोत छिन जाएंगे तथा ये सब उद्योगपतियों के हाथ में चले जाएंगे। हालांकि सरकार लगातार यह कह रही है कि ऐसा नहीं होगा, पर किसान सरकार की बातों पर भरोसा नहीं कर पा रहे।

किसानों का यह भी मानना है कि इस कानून के कारण धीरे-धीरे एक वक्त ऐसा आएगा कि देश के किसान अपनी ही जमीन पर खेतिहर मजदूर बनकर रह जाएंगे।


राहुल गांधी ने भी ट्वीट कर कृषि कानूनों को अडानी-अंबानी कृषि कानून करार दिया था। उन्होंने ट्वीट कर लिखा था 'अदानी-अंबानी कृषि क़ानून' रद्द करने होंगे। और कुछ भी मंज़ूर नहीं!'




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