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राष्ट्रीय

पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की जमानत याचिका भारतीय पत्रकारिता और न्याय प्रणाली के लिए अगुवा जैसी हालत में क्यों?

Janjwar Desk
3 Sep 2022 2:12 PM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की जमानत पर जताई सहमति, करीब 2 साल पहले हाथरस जाते वक्त हुई थी गिरफ्तारी
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सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की जमानत पर जताई सहमति, करीब 2 साल पहले हाथरस जाते वक्त हुई थी गिरफ्तारी

केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का परिवारिक सदस्य और सहकर्मी के रूप में हमें बेसब्री से इंतजार कर है। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार सबूतों के बिना भी 700 से ज्यादा दिनों तक उनका हिरासत में रहना योगी सरकार की बदले की भावना से प्रेरित कार्रवाई जैसा है। यूपी सरकार नजर में कप्पन ने पत्रकारिता की आड़ में इस्लामवादियों के साथ मिलकर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने की साजिश रची थी, जो बेबुनियाद है....

सिद्दीक कप्पन की गिरफ्तारी पर मोहम्मद सबित और रुशी अस्वनी की रिपोर्ट / article-14

कोझीकोड-नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की जेल में विचाराधीन कैदी और केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन ( Siddiqui Kappan ) की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) में 9 सितंबर को सुनवाई होगी। 705 दिनों से जेल में बंद कप्पन को उस दिन सुनवाई के बाद जमानत ( Bail ) मिली तो वह जेल मुक्त हो जाएंगे। अगर जमानत नहीं मिली तो अक्टूबर के पहले सप्ताह में जेल में रहते हुए उनका दो साल पूरा हो जाएगा। पूर्व मुख्य न्यायाधीश और उनके सहयोगी अधिवक्ताओं की नजर में कप्पन का मामला एक ऐसा उदाहरण है जो न्याय का गर्भपात, भारतीय कानूनों की जान बूझकर गलत व्याख्या और बदले की भावना से प्रेरित है। दूसरी तरफ यूपी पुलिस ( UP Police ) और प्रदेश सरकार की नजर यह पत्रकारिता की आड़ में इस्लामवादियों के साथ आतंकवादी गतिविधियों की साजिश रचने जैसा है।

43 वर्षीय कप्पन ( Siddiqui Kappan ) पत्रकारिता में एक दशक से अधिक समय से बतोर एक रिपोर्टर मलयालम समाचार प्रकाशनों और वेबसाइटों के लिए दिल्ली स्थित रिपोर्टर के रूप में कार्य करते आये हैं। उनकी ओर से 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकार की गई जमानत याचिका में कहा गया है कि उनका मामला अहम न्यायिक प्रश्न को उठाता है और यह स्वतंत्रता के अधिकार के साथ-साथ संविधान के तत्वावधान में स्वतंत्र मीडिया में निहित अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता से संबंधित है।

सिद्दीकी कप्पन ( Siddiqui Kappan ) ने अपनी विशेष अनुमति याचिका में कहा है कि मुकदमे में अभी तक सुनवाई न होने की वजह से परिवार व दोस्तों के लिए उनकी जेल की जिदंगी अनकही वित्तीय और मानसिक कठिनाई का पर्याय है। उन्हें एक ऐसे अपराध की सजा दी जा रही है जो उन्होंने कभी किया ही नहीं।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई की इजाजत मिलने से पहले उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष 2 अगस्त को भी जमानत याचिका दायर की थी, लेकिन यूपी पुलिस के तर्क को बरकरार रखते हुए अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। पुलिस ने दावा किया था कि कप्पन का एक पत्रकार के रूप में हाथरस में कोई काम नहीं था।

सिद्दीकी कप्पन ( Siddiqui Kappan ) की गिरफ्तारी उस समय हुई थी जब वो एक कैब चालक और दो मुस्लिम एक्टिविस्ट के साथ हाथरस जा रहे थे। वहां जाने के पीछे कप्पन का मकसद 19 वर्षीय दलित लड़की का बलात्कार और हत्या को कवर करना था, जिसके शव का पुलिस ने परिवार की इच्छा के विरुद्ध अंतिम संस्कार कर दिया था।

कप्पन की विशेष अनुमति याचिका में कहा गया है कि उन्होंने आतंकी साजिश के आरोपों में लगभग दो साल जेल में बिताए हैं, जबकि वह केवल हाथरस बलात्कार व हत्या के कुख्यात मामले पर रिपोर्टिंग के अपने पेशेवर कर्तव्य का निर्वहन करने की कोशिश कर रहे थे। यूपी पुलिस ने आरोप लगाया कि उनकी रिपोर्टिंग मुसलमानों को उकसाने के लिए थी और सबूत के तौर पर उन्होंने अल्पसंख्यक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए 36 कहानियां लिखी थीं।

यूपी पुलिस का आरोप है कि कप्पन ने भारत के भीतर और विदेशों से आठ अन्य लोगों के साथ इस्लामवादियों से अवैध तरीके से धन हासिल किया था। पुलिस ने उनके खिलाफ तीन कानूनों से संबंधित सात धाराओं के तहत मामला दर्ज किया और वो अभी तक उसी के आरोपों में जेल में और उन्हें अभी तक जमानत भी नहीं मिली है। यूपी पुलिस ने कप्पन पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जान बूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य में संलिप्त होने का आरोप लगाया है।

विशेषज्ञों के मुताबिक कप्पन ( Siddiqui Kappan ) का मामला एक गंभीर समला है। भारत की न्याय प्रणाली को लेकर बुनियादी सवाल उठाता है। यह मामला पेशेवर कर्तव्यों का पालन करने के बावजूद उन्हें आतंकवादी उद्देश्यों सहित आपराधिक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार ठहराता है। उनके पेशेवर काम को आतंकवाद और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 में शामिल कर उन्हें अपराधी मानता है। यही वजह है कि उनका यह मामला प्रतिबंधात्मक जमानत शर्तें, मुकदमे या जमानत के बिना अंतहीन कैद में तब्दील हो गया है। यह अपने आप में पत्रकारों और असंतुष्टों पर नकेल कसने के लिए न्याय प्रणाली का उपयोग करना है।

इलाहाबाद के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए कहा कि कप्पन का निरंतर कारावास यह संदेश देता है कि असंतोष की आवाज दंडनीय होगी। माथुर ने विशेष रूप से कप्पन और अन्य पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती पुलिस कार्रवाई का जिक्र करते हुए कहा कि पत्रकार बड़े पैमाने पर जनता की आवाज हैं जो नागरिकों के खुद को व्यक्त करने के अधिकार का प्रयोग करते हैं। वे न्याय की मांग करने वाली आवाज को एक मंच प्रदान करते हैं। उनकी गिरफ्तारी और लगातार जेल में रहना प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर आघात है जो एक लोकतांत्रिक समाज के लिए मौलिक है।

यह एक पेशे का अपराधीकरण करने जैसा

कप्पन की विशेष अनुमति याचिका में कहा गया है कि वह 12 साल के अनुभवी पत्रकार थे, जिन्होंने केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के दिल्ली चैप्टर के सचिव के रूप में भी काम किया है। यूपी पुलिस ने उन पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया और अपनी चार्जशीट ने उन पर एक जिम्मेदार पत्रकार की तरह नहीं लिखने और दुबई व मस्कट से आतंकवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए 80 लाख रुपए हासिल करने का आरोप लगाया है।

यूपी पुलिस का तर्क है कि उनके पास इस फंडिंग के सबूत हैं लेकिन ऐसा कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है। जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कप्पन की जमानत याचिका खारिज कर दी तो यूपी पुलिस ने बताया कि आवेदक और उसके सहयोगियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे अवैध धन से इंकार नहीं किया जा सकता है।

अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कप्पन की वर्तमान याचिका के अनुसार उन्हें जो भी पैसा मिला वह पेशेवर पत्रकार के रूप में उनकी नौकरी के लिए पारिश्रमिक था। उन्होंने कहा कि वह अपने परिवार के लिए एक घर बनाने के लिए पैसे का उपयोग करना चाहते थे। याचिका में कहा गया है कि कप्पन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण आरोप यह है कि वह सांप्रदायिक दंगे भड़काने और सामाजिक सद्भाव को बाधित करने के लिए दूसरों के साथ हाथरस की यात्रा पर निकले थे। कप्पन ने याचिका में इसे पूरी तरह से बेतुका बताया है।

कप्पन ( Siddiqui Kappan ) की याचिका ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अवलोकन पर भी सवाल उठाया कि उनके पास हाथरस में कोई काम नहीं था। क्या माननीय उच्च न्यायालय इस तथ्य की सराहना करने में विफल रहा है कि याचिकाकर्ता एक पत्रकार है और यात्रा कर रहा है और घटनाओं को कवर करने जा रहा है। एक पत्रकार के रूप में उनके पेशे का मूलभूत हिस्सा देश भर में जाना जाता है।

पत्रकारों के लिहाज से बिगड़ते हालात

अप्रैल 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट से सेवानिवृत न्यायाधीश माथुर का कहना है कि ध्यान देना दिलचस्प है कि एक मध्यम आयु वर्ग के व्यक्ति कप्पन जो छह वर्षों से दिल्ली में बतौर पत्रकार तैनात थे यूपी पुलिस की जानकारी में तब आया जब उसे हाथरस के रास्ते में गिरफ्तार कर लिया गया। यह परिस्थितियां पुलिस की ओर से एक घटना की रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों को चुप कराने के प्रयासों का संकेत है जो न केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने में प्रशासन की पूर्ण विफलता को दर्शाता है बल्कि सबूतों को मिटाने जैसा कार्य भी है। जस्टिस माथुर ने कहा कि चूंकि कप्पन के खिलाफ आरोप पत्र. लगभग 5000 पृष्ठ. के हैं इसलिए उन्हें अब जांच की आवश्यकता नहीं थी। अब उनकी कैद से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

दिल्ली के एक अधिवक्ता अभिनव सेखरी का कहना है कि प्रायोजित मकसद से पत्रकारों को बंदी बनाना एक गलत संदेश देता है। अदालतें और न्यायाधीश अक्सर लोकतंत्र में असहमति के मूल्य की प्रशंसा करते हैं और राज्य के कार्यों पर आलोचनात्मक टिप्पणी करते हैं। दूसरी तरफ कप्पन के साथ जो हो रहा है वो लोगों की इस तरह के आलोचनात्मक विचारों को अभिव्यक्त करने के काबिज नहीं बनाते। 2020 के बाद से भारत में स्वतंत्र मीडिया पर हमलों में इजाफा हुआ है ।गिरफ्तारी, आतंक और देशद्रोह के मामलों के साथ यहां तक कि एक दक्षिणपंथी पारिस्थितिकी तंत्र बलात्कार और मौत की धमकी जारी करता है और आधिकारिक हितों के खिलाफ किसी भी धटना को गलत मोड़ देने का काम करता है। जैसा कि फरवरी 2021 में अनुच्छेद 14 की रिपोर्ट में बताया गया है। एक एडवोकेसी ग्रुप फ्री स्पीच कलेक्टिव के एक विश्लेषण पाया गया है कि 2010 और 2020 के बीच अपने पेशेवर काम के लिए गिरफ्तार किए गए या सरकारी शत्रुता का सामना करने वाले 154 भारतीय पत्रकारों में से 40 प्रतिशत से अधिक अकेले 2020में सामने आये हैं। वैश्विक पत्रकारिता की वकालत करने वाली कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स द्वारा प्रकाशित दिसंबर 2021 की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारत में पत्रकारों की सबसे अधिक संख्या थी। भारत में राज्य के खिलाफ काम करने के आरोप में कप्पन सहित छह पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया था।

UAPA की आड़ में कप्पन जेल में बंद

यूएपीए ( UAPA ) उन कानूनों में से एक है जिसने कप्पन और उसके जैसे अन्य लोगों को बिना मुकदमे के जेल में रखा है। यूएपीए जमानत देने के लिए न्यायाधीशों के विवेक को सीमित करता है। यूएपीए के प्रावधान कई कार्यकर्ताओं, असंतुष्टों, शिक्षाविदों और पत्रकारों के खिलाफ चल रहे मामलों के केंद्र में आपराधिक रूप से अतिव्यापी, अत्यधिक अस्पष्ट और राज्य द्वारा प्रायोजित मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के बीच संतुलन की कमी को दर्शाता है।

सामान्य कानून के तहत यदि पुलिस को किसी गिरफ्तार करती है तो उसे 24 घंटे से अधिक हिरासत में रखने से पहले एक मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है। आम तौर पर जांच के मकसद से पुलिस ष्न्यायिक हिरासत या पुलिस रिमांड की मांग करती है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 पुलिस हिरासत की अवधि पर अवधि को भी सीमित करती है जिसके लिए एक आरोपी को जांच के दौरान हिरासत में लिया जा सकता है। पुलिस को गिरफ्तारी के 60 से 90 दिनों के भीतर कथित अपराध की गंभीरता के आधार पर जांच पूरी करनी होती है। इस समय सीमा को पूरा करने में विफल रहने पर गिरफ्तार व्यक्ति जमानत का हकदार हो जाता है। इन तंत्रों के माध्यम से कानून यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि जांच के प्रयोजनों के लिए कोई अनिश्चितकालीन बंदी न हो।

यूएपीए मामले में एक आरोपी को सीआरपीसी के तहत चार्ट की तुलना में बहुत अलग कानूनी वास्तविकता का सामना करना पड़ता है। यूएपीए 15 दिनों की हिरासत रिमांड को बढ़ाकर 30 दिनों तक कर देता है.जिसमें पुलिस हिरासत भी शामिल है। यह प्रावधान पुलिस को जांच के दौरान किसी भी समय हिरासत में लेने की अनुमति देता है.न कि केवल शुरुआत में। यूएपीए न्यायाधीश को सीआरपीसी के तहत 60 या 90 दिनों के बजाय 180 दिनों तक जांच के दौरान हिरासत की अनुमति देने की भी अनुमति देता है।

अधिवक्ता सेखरी का कहना है कि यूएपीए( UAPA ) के तहत आरोपों की गंभीरता के कारण कप्पन को जमानत से वंचित कर दिया गया है। ऐसी स्थिति में अदालतों को मुख्य रूप से मामले की योग्यता पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि जमानत होनी चाहिए या नहीं।

यूएपीए ( UAPA ) की धारा 43डी (5) के अनुसार अदालतें आरोपी को जमानत देने से इनकार कर सकती है अगर उन्हें लगता है कि पुलिस की ओर से पेश तथ्य विचार करने योग्य है या यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया है। साथ ही मामले की जांच जारी है। हालांकि, ऐसी स्थिति में भी जमानत दिए जा सकते हैं, कप्पन के मामले में प्रतीत होता है। ऐसा इसिएल कि यूपी पुलिस के पास आरोप सच साबित करने के लिए अभी तक पर्याप्त सबूत नहीं हैं।

सेखरी का कहना है कि कप्पन की जमानत याचिका को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया क्योंकि न्यायाधीश राज्य के मामले से सहमत थे। यदि यह दिखाया जाता कि आरोपी एक पेशेवर पत्रकार है जिसके पास मान्यता आदि है तो विश्वसनीय सामग्री के अभाव में किसी के पेशेवर पत्रकार को व चर्चित चेहरे को बदनाम नहीं करना चाहिए। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इन कानूनी पहलुओं पर विचार करती है या नहीं। यही वजह है कि जमानत को लेकर कप्पन का परिवार और सहकर्मी आशा और निराशा के बीच फंसे हुए हैं। पत्रकार की पत्नी रेहनाथ कप्पन ने अनुच्छेद 14 के आधार पर बताया है कि वो उम्मीद के साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही हैं। साथ ही जमानत को लेकर चिंतित भी हैं। बतौर लैबोरेटरी तकनीशियन 40 वर्षीय रेहनाथ कप्पन का कहना है कि जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने जमानत याचिका को स्वीकार कर सुनवाई के लिए डेट भी दे दी है, उससे कई तरह की भ्रांतियों को दूर करने में मदद मिली है।

रेहानाथ का मानना है कि उच्च न्यायालय में चीजें बहुत धीमी गति से आगे बढ़ीं। कप्पन द्वारा अपनी याचिका दायर करने के लगभग छह महीने बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अगस्त 2022 में कप्पन की जमानत याचिका पर अपना फैसला सुनाया। उन्होंने कप्पन की अनुपस्थिति में परिवार चलाने के लिए संघर्ष किया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी है ।मुझे एक परिवार की देखभाल करनी थी। मुझे कप्पन के मामले से संबंधित मामलों को देखना था। ऐसे में आप टूट सकते हैं लेकिन ऐसा समय आराम करने का नहीं होता बल्कि मजबूत बने रहना होगा। यह सब बताते वक्त कई बार रेहनाथ बोल भी नहीं पा रही थी। रैहनाथ ने कहा कि उन्हें अक्सर नींद नहीं आती। खासकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कप्पन के मामले की सुनवाई के लिए सहमत होने के बाद से। मैं प्रार्थना में हूं कि कप्पन को जमानत मिल जाएगी। कप्पन के दोस्त और सहकर्मी उसके पेशेवर काम के बारे में विस्तृत विवरण उपलब्ध करा रहे हैं जिस पर यूपी पुलिस को संदेह है।

अनजाने क्षेत्र में पत्रकार कैसे करते हैं यात्रा

केरल और दिल्ली में कप्पन के सहयोगी पत्रकार यूपी पुलिस के आरोपों पर विश्वास करने से इनकार करते हैं। उन्होंने इस आरोप पर सवाल उठाया कि वह रिपोर्टिंग के अलावा किसी और चीज के लिए हाथरस गए थे। सुप्रभातम अखबार के एक रिपोर्टर यूएम मुख्तार ने कहा कि वह कप्पन को 2014 से जानते हैं और उन्होंने पुलिस के आरोपों को संबोधित करने के लिए अपने स्वयं के अनुभवों की पेशकश की है। कप्पन किसी तरह कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया के कार्यकर्ताओं के साथ हाथरस की यात्रा करने की साजिश में शामिल नहीं थे। फिर छात्र इकाई इस्लामिक पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की विंग प्रतिबंधित संगठन नहीं हैं। हाल ही में केरल वापस आने से पहले दिल्ली में काम करने वाले मुख्तार ने कहा कि पत्रकारों के लिए विशेष रूप से प्रिंट या ऑनलाइन प्रकाशन वाले साथी पत्रकारों और यहां तक कि कार्यकर्ताओं के साथ रिपोर्टिंग असाइनमेंट के लिए यात्रा करना आम बात है।

मुख्तार ने कहा कि कप्पन और मैंने दिल्ली के बाहर अपने कुछ पत्रकारिता कार्यों के दौरान अपने यात्रा खर्चों को साझा किया। उदाहरण के लिए हम एक साथ हरियाणा के नूंह गए, वहां रोहिंग्या शरणार्थियों की दुर्दशा पर रिपोर्ट करने के लिए। मुख्तार ने कहा कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि जब दंगा, बलात्कार या हत्या जैसा कुछ होता है तो टेलीविजन पत्रकार एक इकाई के रूप में अपने वाहन और चालक दल के अन्य सदस्यों के साथ वहां जाते हैं। प्रिंट के मामले में ऐसा नहीं होता।

मुख्तार ने कहा कि प्रिंट में हर किसी के पास अपना वाहन नहीं होता है। विशेष रूप से थेजस और अज़ीमुखम कप्पन के लिए काम करने वाले समाचार संगठन जैसे छोटे मीडिया संगठनों के पत्रकार के पास। मैंने ऐसे पत्रकारों को भी देखा है जो बेहतर वित्तीय पृष्ठभूमि वाले मीडिया संगठनों के लिए काम करते हैं। ऐसा वो यात्रा खर्च को कम करने और उनका साथ देने के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए एक मध्यम और एक प्रमुख मलयालम समाचार पत्र के पत्रकार जिसे मैं जानता था कि धारा 370 को निरस्त करने के बाद कार्यकर्ताओं की एक तथ्य-खोज टीम के साथ कश्मीर गया था। इस तरह की संयुक्त यात्रा असामान्य नहीं है। मुझे लगता है कि कप्पन भी उन्हीं कारणों से कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया से उन कार्यकर्ताओं.या एक तथ्य-खोज दल के साथ हाथरस जा रहे थे।

दिल्ली के दो मलयाली पत्रकार डी धनसुमोद और एम प्रशांत ने कहा कि कप्पन ने उन्हें और अन्य पत्रकारों को हाथरस जाने की अपनी योजना के बारे में जानकारी दी थी। धनसुमोद केयूडब्लूजे की दिल्ली इकाई के सचिव हैं और प्रशांत उपाध्यक्ष हैं। वामपंथी रुझान वाले दैनिक समाचार पत्र देशभिमानी के एक रिपोर्टर प्रशांत ने कहा कि कप्पन ने हम में से कई लोगों से पूछा कि क्या हमारी यात्रा खर्च साझा करने के लिए हाथरस जाने की कोई योजना है। हम में से बहुत से लोग पहले से जानते थे कि वह जघन्य अपराध की रिपोर्ट करने के लिए हाथरस जा रहा था। जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तो कप्पन अज़ीमुखम के लिए काम पर थे।

सिद्दीकी कप्पन के सहकर्मियों ने कहा कि वह कुछ समय के लिए बेरोजगार हो गया था। सात बच्चों के एक वंचित परिवार से था। वह आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहा था क्योंकि कुछ समाचार पत्रों में उन्होंने भुगतान किए गए पत्रकारों के लिए न्यूनतम राशि का काम किया था। उदाहरण के लिए आप जिस कहानी को पढ़ रहे हैं उसके लेखकों में से एक को हाल ही में एक मलयालम अखबार के लिए मुख्य कहानी लिखने के लिए 750 रुपए का भुगतान किया गया था।

एक हाशिए का रिपोर्टर

यूपी पुलिस ने आरोप लगाया कि कप्पन ने 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान पीड़ित मुस्लिमों के पक्ष में झूठी और सांप्रदायिक रिपोर्ट लिखी थी। जिम्मेदार पत्रकार इस तरह की सांप्रदायिक रिपोर्टिंग में शामिल नहीं होते हैं। यूपी पुलिस चार्जशीट में कहा गया है कि सिद्दीकी कप्पन की पत्रकारिता केवल मुसलमानों को भड़काने और पीएफआई के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए थी जो दंगों और सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काना चाहता है। कप्पन को वर्षों से जानने वाले पत्रकारों ने कहा कि उनका काम निश्चित रूप से अल्पसंख्यकों और वंचितों पर केंद्रित रहा है।

सिद्दीकी कप्पन के खिलाफ एक आरोप यह है कि उन्होंने अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दों पर अधिक रिपोर्टि।ग की। चेककुट्टी ने कहा कि कप्पन की रिहाई के लिए केरल में गठित एक संयुक्त मंच के अध्यक्ष भी हैं लेकिन तथ्य यह है कि उनके कार्यकाल के दौरान दिल्ली में एक रिपोर्टर के रूप में अल्पसंख्यकों से संबंधित बड़ी संख्या में मुद्दे थे। हमारे अखबार ने अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और अन्य हाशिए के समुदायों के मुद्दों पर भी विशेष ध्यान दिया था।

जून 2021 में आर्टिकल 14 ने बताया कि कप्पन ने करंट अफेयर्स, अपराध और राजनीति पर रिपोर्ट दी थी। उनके द्वारा लिखी गई कहानियों के विषयों में शामिल हैं। फरवरी 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे, अधिवक्ता प्रशांत भूषण का एक साक्षात्कार, असम में नागरिकता के मुद्दे, भारत में अपनी जड़ों का पता लगाते हुए विभाजन से अलग एक पाकिस्तानी ऑक्टोजेरियन, उर्दू मलयाली कवि सैयद मोहम्मद सरवर और जेल में बंद प्रोफेसर जी एन साईबाबा से संबंधित खबरें उन्होंने रिपोर्ट की थी।

अन्य पत्रकारों की तरह जिन्होंने छोटे मलयालम, समाचार पत्रों दिल्ली के लिए काम किया, कप्पन ने भी दिल्ली से लगभग सब कुछ कवर किया। डी धनसुमोद और प्रशांत के मुताबिक कप्पन ने विशेष रूप से दलितों, मुसलमानों और अन्य जैसे हाशिए के सामाजिक समूहों से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। वह संघ परिवार की राजनीति को उजागर करने वाले मुद्दों पर रिपोर्ट करने में ज्यादा रुचि लेते थे। डी धनसुमोद ने कहा कि मैं जिस कप्पन को जानता हूं वह सांप्रदायिक सद्भाव के खिलाफ काम करने वालों में शामिल नहीं है बल्कि कोई है जो ऐसा करता है। कप्पन ने खुद कहा था कि उनकी पत्रकारिता वास्तव में हाशिए के समुदायों पर केंद्रित थी। सुप्रीम कोर्ट में कप्पन की याचिका में बताया गया है कि दलितों और अल्पसंख्यकों की दुर्दशा पर आधारित कप्पन ने लेख लिखे हैं। याचिकाकर्ता द्वारा समुदायों के बीच प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा देने वाला कोई लेख नहीं लिखा।

एक समझदार और काम के लिए प्रतिबद्ध व्यक्ति

उनके पूर्व संपादक चेक्कुट्टी ने कहा कि कप्पन में मैंने पाया कि वह एक समझदार व्यक्ति था। मलयालम समाचार चैनलों के लिए राजनीतिक मुद्दों पर नियमित टिप्पणीकार चेक्कुट्टी ने कहा 2013 में जरूरत पड़ने के बाद उन्हें दिल्ली में तैनात किया गया था। उन्होंने हमारे लिए सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मुद्दों को कवर किया। एक प्रमुख समाचार पत्र मलयाला मनोरमा के पत्रकार बीनू विजयन ने यूपी पुलिस को दिए अपने बयान में कथित तौर पर आरोप लगाया कि कप्पन ने केयूडब्ल्यूजे की दिल्ली इकाई के सचिव के रूप में धन का दुरुपयोग किया और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए फर्जी खबरें फैलाई लेकिन केयूडब्लूजे के विजयन के कप्पन द्वारा किसी भी हेराफेरी के आरोपों से इनकार किया है। 30 जून को एक साक्षात्कार में कप्पन के पूर्व संपादकों में से एक जोसी जोसेफ ने भी कहा कि उनकी गिरफ्तारी में प्रतिद्वंद्विता की भूमिका थी।

एक पत्रकार और लेखक जोसेफ ने कहा सिद्दीकी की कहानी उन भाइयों की भी कहानी है जो देशद्रोही हैं। सिद्दीकी के खिलाफ यूपी पुलिस के कई आरोप सिर्फ आरोप थे जो कि केयूडब्लूजे की दिल्ली इकाई के भीतर उभरी आंतरिक प्रतिद्वंद्विता का परिणाम थे। जोसेफ ने कहा कि कप्पन आज भारत में मीडिया का प्रतीक है और जेल में इसलिए है कि वो एक मुस्लिम है।

चेककुट्टी का कहना है कि यूपी पुलिस ने असली हाथरस मुद्दे जनता का ध्यान भटकाने के लिए सिद्दीकी कप्पन का इस्तेमाल एक टूल के रूप में किया। मुस्लिम नाम वाले सिद्दीकी कप्पन में यूपी सरकार को वह मिला जो वे चाहते थे। कप्पन की गिरफ्तारी के बाद कहा गया कि देखो अब कोई हाथरस की दलित लड़की या उसके परिवार के बारे में बात नहीं कर रहा है।

पत्रकार संघ ने कप्पन के समर्थन की पुष्टि की

दक्षिण भारतीय राज्यों के सबसे बड़े पत्रकार संघ केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स की दिल्ली इकाई ने यूपी पुलिस द्वारा अक्टूबर 2020 में कप्पन को गिरफ्तार करने के एक दिन बाद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। यह एक ऐसी याचिका है जो किसी सरकारी एजेंसी या व्यक्ति से हिरासत में लिए गए किसी व्यक्ति की अदालत में उपस्थिति की मांग करती है। आमतौर पर व्यक्ति की भलाई सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया जाता है। केयूडब्लूजे की सुप्रीम कोर्ट की याचिका के अगले दिन यूपी पुलिस ने कप्पन. और कैब ड्राइवर और उनके साथ यात्रा कर रहे दो मुस्लिम छात्र कार्यकर्ताओं को यूएपीए के तहत बुक किया, जिससे उन्हें हिरासत में रखने की अनुमति मिली।इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 2 अगस्त को कप्पन की जमानत याचिका खारिज करने के बाद जारी एक बयान में KUWU की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष प्रसून एस कंडथ और सचिव डी धनसुमोद ने कहा कि यूपी पुलिस की कार्रवाई के बाद वे लोग निराश हो गए। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट कप्पन को रिहा करेगा और पत्रकारों के खिलाफ कठोर कानूनों के दुरुपयोग के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश भेजेगा।

केयूडब्ल्यूजे की नई अध्यक्ष विनीता एम वी ने कहा कि संघ ने कप्पन की रिहाई के लिए अपनी दिल्ली इकाई के पूर्ण समर्थन की पेशकश की है। केयूडब्ल्यूजे कप्पन की रिहाई के लिए अपना प्रयास जारी रखेगा। हम कप्पन की गिरफ्तारी के बाद से उसके परिवार के साथ हैं। हम उनके साथ खड़े रहेंगे। ऐसा इसलिए कि कल हम में से कोई और भी गलत मामले में जेल में हो सकता है। कप्पन के पत्रकार मित्र और कम से कम कुछ अन्य पत्रकार जो पहले कप्पन को नहीं जानते थे ने कहा कि उनका मानना है कि कप्पन के अनुभव में उनके लिए एक खतरे का संदेश है। यूपी पुलिस स्पेशल टास्क फोर्स कप्पन के मामले मे ंऐसी कार्रवाई का उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे भारत के सबसे बड़े राज्य की एक प्रीमियर जांच एजेंसी ने दुरुपयोग का सहारा लिया है और केवल संदेह के आधार पर कप्पन को जेल भेज दिया। कई पत्रकारों ऐसे भी हैं जो कप्पन को जानते थे, इस बारे में अनुच्छेद 14 पर बात करने से इनकार कर दिया। उन्हें ऐसा करने पर यूपी पुलिस से संभावित प्रतिशोध या प्रतिकूल प्रचार का डर था।

एक किताब के लिए सामग्री या विध्वंसक दस्तावेज़

यूपी पुलिस के अनुसार कप्पन के खिलाफ एक बड़ा आरोप यह था कि उसके पास सिमी या 1977 में बनाया गया एक संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया जिसे 2001 में केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित किया गया था, से संबंधित एक दस्तावेज उसके पास थे। न्यूजलॉन्ड्री की आकांक्षा ने कहा कि इन दस्तावेजों में वो दस्तावेज भी शामिल थे जो यूएपीए ट्रिब्यूनल द्वारा सिमी पर प्रतिबंधित तीन स्वतंत्र रूप से उपलब्ध पुस्तिकाएं भी हैं जो एडवोकेसी ग्रुप पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स द्वारा प्रकाशित हैं और 2012 का एक शोध है जो दिल्ली के प्रमुख जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से सिमी पर तैयार पेपर हैं। आकांक्षा ने कहा कि इन दस्तावेजों के अलावा चार्जशीट में सिमी के साथ कप्पन के लिंक का सुझाव देने के लिए और कुछ नहीं था।

कप्पन की नवीनतम सुप्रीम कोर्ट की याचिका ने सिमी-दस्तावेज प्रश्न को संबोधित किया। कप्पन ने कहा कि एक दोस्त सिमी के पूर्व नेताओं पर एक किताब लिख रहा था और उसके साथ एक मसौदा साझा किया था। इस पुस्तक के लिए उन्होंने अपने लेखक मित्र के अनुरोध के बाद सिमी से जुड़े कुछ संसद सदस्यों का साक्षात्कार लिया था। कप्पन के एक पूर्व संपादक पी कोया ने पुष्टि की कि सिमी के पूर्व कार्यकर्ताओं पर एक पुस्तक कमीशन की गई थी। सेवानिवृत्त प्रोफेसर लेखक और पीएफआई सदस्य कोया ने कहा fd कुछ लोग जिन्हें मैं जानता हूं वे संगठन सिमी का एक उद्देश्यपूर्ण इतिहास लिखना चाहते थे। मैं भी इस विचार से सहमत था और मैंने अपने एक दोस्त को सिमी पर किताब लिखने का काम सौंपा। उन्होंने विभिन्न राज्यों की यात्रा की] कुछ पूर्व नेताओं और सदस्यों से मुलाकात की] जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जो अब विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े हुए हैं।

कोया ने कहा कि जब लेखक कुछ अध्याय लिखने के बाद फंस गया तो समूह ने काम जारी रखने के लिए एक नया लेखक खोजने का फैसला किया। कोया ने कहा fd चूंकि मैं कप्पन को अल्पसंख्यक राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले पत्रकार के रूप में जानता था और क्योंकि वह कुछ वर्षों से दिल्ली में था और स्वतंत्र काम करने के लिए तैयार था।मैंने सोचा कि वह कार्यभार संभाल सकता है। वयोवृद्ध मुस्लिम कार्यकर्ता o लेखक ने कहा कि किताब लिखना अवैध गतिविधि नहीं थी। कप्पन के खिलाफ यूपी पुलिस की चार्जशीट में कोया के साथ उसकी व्हाट्सएप चैट भी शामिल है।

आकांक्षा ने कहा कि इन चैट में केवल एक संपादक और एक पत्रकार के बीच एक बहुत ही सामान्य आदान&प्रदान होता है। चैट 2018 में हुई] जब कप्पन और कोया दोनों थेजस में सहयोगी थे। आकांक्षा ने कहा कि कप्पन के खिलाफ चार्जशीट की जांच ने एक पत्रकार के रूप में उनकी धारणा को राज्य के प्रति फिर से परिभाषित किया है और यह उन लोगों से कैसे निपटता है जो इसे जवाबदेह ठहराते हैं। किन जैसा कि कप्पन ने खुद एक बार अदालत के बाहर संवाददाताओं से कहा था।

कप्पन के खिलाफ यूपी पुलिस की चार्जशीट में कोया के साथ उसकी व्हाट्सएप चैट भी शामिल है। आकांक्षा ने कहना है कि इन चैट में केवल एक संपादक और एक पत्रकार के बीच एक बहुत ही सामान्य आदान-प्रदान होता है। चैट 2018 में हुई, जब कप्पन और कोया दोनों थेजस में सहयोगी थे। कप्पन के खिलाफ चार्जशीट की जांच ने एक पत्रकार के रूप में उनकी धारणा को राज्य के प्रति फिर से परिभाषित किया है और यह उन लोगों से कैसे निपटता है जो इसे जवाबदेह ठहराते हैं। आकांक्षा का दावा है कि कप्पन ने खुद एक बार कोर्ट के बाहर संवाददाताओं से कहा था कि मुझे अभी भी संविधान में विश्वास है। ;

(मोहम्मद सबित और तरुशी अस्वनी की यह रिपोर्ट पहले मूल रूप से अंग्रेजी में article-14 पर प्रकाशित।)

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