Supreme Court के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने PIL को बताया 'Personal Interest Litigation', क्यों?
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना पीआईएल को बताया 'Personal Interest Litigation', क्यों?
नई दिल्ली। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में हाई कोर्ट्स के चीफ जस्टिस और मुख्यमंत्रियों के संयुक्त सम्मेलन (Joint Conference of Chief Ministers and Chief Justices of High Courts) में सीजेआई एनवी रमना ( CJI NV Ramana ) ने कहा कि जनहित याचिका ( PIL ) की व्यवस्था के पीछे अच्छे इरादों के तहत लोक हित को बढ़ावा देना था। अब इसका दुरुपयोग किया जाता है। पीआईएल ( PIL ) अब वैकासिक परियोजनाओं को रोकने और सार्वजनिक प्राधिकरणों को आतंकित करने के लिए 'व्यक्तिगत हित याचिका' ( Personal Interest Litigation ) के रूप में किया जा रहा है। इससे पीआईएल को अर्थ ही बदल गया है। यह राजनीतिक और कॉर्पोरेट प्रतिद्वंद्वियों के साथ स्कोर तय करने का एक साधन बन गया है।
सीजेआई एनवी रमना ( CJI NV Ramana ) ने सभी सरकारों से अपील की है कि संबंधित लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं को शामिल करने के साथ गहन बहस और चर्चा के बाद कानून बनाया जाना चाहिए। अक्सर अधिकारियों के गैर-प्रदर्शन और विधायिकाओं की निष्क्रियता के कारण मुकदमेबाजी होती है जो टालने योग्य हैं।
सभी रखें लक्ष्मण रेखा का ध्यान
एक दिन पहले उमर खालिद को दिल्ली हाईकोर्ट ने लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखने की हिदायत दी थी, आज सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई एनवी रमना ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा हकि हमें 'लक्ष्मण रेखा' का ध्यान रखना चाहिए, अगर यह कानून के अनुसार हो तो न्यायपालिका कभी भी शासन के रास्ते में नहीं आएगी। यदि नगरपालिकाएं, ग्राम पंचायतें कर्तव्यों का पालन करती, यदि पुलिस ठीक से जांच करती और अवैध हिरासत की यातना समाप्त होती, तो लोगों को अदालतों की ओर देखने की जरूरत नहीं होती।
CJI रमना ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही सभी चीफ जस्टिस को भेजे पत्र और वीडियो कान्फ्रेंस की याद दिलाते हुए कहा कि तब भी आप लोगों से अपील की गई थी कि जजों के खाली पदों को भरने की प्रक्रिया तेज की जाए। न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नाम भेजने के दौरान सामाजिक विविधता का भी ध्यान रखें। कुछ हाईकोर्ट ने तो बहुत अच्छा काम किया। सभी के सामूहिक प्रयास का ही असर है कि साल भर के भीतर 126 जजों की विभिन्न हाईकोर्ट में नियुक्ति संभव हो पाई। 50 और जजों की नियुक्ति जल्दी ही होने वाली है।
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में भी हो स्थानीय भाषा में बहस
सुप्रीम कोर्ट के CJI एनवी रमना ने कहा कि सामाजिक न्याय के लिए न्याय के तराजू तक जाने की जरूरत ही काफी नहीं बल्कि भाषा भी अड़चन होती है। हमारे यहां सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) और हाईकोर्ट में कार्यवाही अंग्रेजी में होती है। अब इन अदालतों में भी स्थानीय भाषा को प्रोत्साहन देने की जरूरत है।
जनता की भाषा में कार्यवाही से भरोसा बढ़ेगा : PM Modi
सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई एनवी रमना से पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi ) ने अदालती बहस में भाषा की अड़चनों का जिक्र करते हुए कहा था कि अगर शीर्ष अदालतों में भी स्थानीय भाषा ( Local languages ) में सुनवाई हो तो इससे सामान्य नागरिक का न्याय में भरोसा बढ़ेगा। इसी तरह तकनीकी और मेडिकल शिक्षा सामान्य भाषा में क्यों ना हो? युवाओं की क्षमता के विकास के लिए लीगल एजुकेशन अंतरराष्ट्रीय स्तर का होना चाहिए। इस दिशा में नए आयाम विकसित करने होंगे। न्याय सुराज का आधार है। न्याय जनता की भाषा में सरल और सुगम हो। कानून न्यायिक भाषा के अलावा सामान्य नागरिक की भाषा में भी हो जो आम नागरिकों को समझ में आए।
अप्रसांगिक कानूनों को समाप्त करने की दिशा में काम करें राज्य सरकारें
पीएम ने कहा कि देश अदालतों में अभी अंग्रेजी में ही कार्यवाही होती है। अच्छा हुआ कि ये मुद्दा सीजेआई ने ही उठाया। मीडिया को सुर्खियां मिलीं लेकिन उसमें समय लगेगा क्योंकि अर्जी डालने से लेकर फैसला आने तक ये काफी पेचीदा मामला है। हमने 1800 कानून जो अब प्रासंगिक नहीं हैं मे सं 1450 कानूनों को खत्म करने की पहल की थी लेकिन राज्यों ने अब तक सिर्फ 75 कानून ही निरस्त किए हैं। पीएम ने मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया कि वो लोगों को ऐसे कानून के जाल से बाहर निकालें।