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World Press Freedom Day : बीते साल भारत में 4 पत्रकारों की हत्या हुई, दुनियाभर में 46 पत्रकारों को उतारा गया मौत के घाट

Janjwar Desk
3 May 2022 7:18 AM GMT
World Press Freedom Day : विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर यह तस्वीर भारत में पत्रकारिता की दशा को बयां करता है, यह तस्वीर भारत ही नहीं पूरी दुनिया में खुद को पत्रकार कहने वालों के लिए शर्मनाक है
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World Press Freedom Day : विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर यह तस्वीर भारत में पत्रकारिता की दशा को बयां करता है, यह तस्वीर भारत ही नहीं पूरी दुनिया में खुद को पत्रकार कहने वालों के लिए शर्मनाक है

World Press Freedom Day : दुनिया भर में पत्रकारों को आजादी से काम करने देने का समर्थन करते हुए सबसे पहले साल 1991 में दक्षिण अफ्रीका (South Africa) के पत्रकारों ने प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने की मांग की थी. इन पत्रकारों ने तीन मई को ही प्रेस की आजादी के सिद्धांतों को लेकर एक बयान जारी किया था जिसे डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक (Windhoek Declaration) के नाम से भी जानते हैं...

World Press Freedom Day : पत्रकारिता (Journalism) के लिहाज से दुनिया के पांच सबसे खतरनाक देशों में हमारे देश भारत (India) का भी नाम शामिल है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉडर्स (Reporters Without Borders) की एक रिपोर्ट के अनुसार जिन देशों में पत्रकारों की बड़े पैमाने पर हत्या की गयी है उनमें एक देश भारत भी है। संस्था की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में साल 2021 में 46 पत्रकारों को उनके काम के कारण हत्या कर दी गयी। संस्था की ओर से जो आंकड़े जारी किए गए हैं उसके अनुसार हमारे देश भारत में इस दौरान भारत में भी चार पत्रकारों की हत्या कर दी गयी। इस लिस्ट में जो दूसरे देश हैं उनमें मैक्सिको (Mexico) में सबसे अधिक 7 पत्रकारों की, अफगानिस्तान (Afganishtan) में 6 पत्रकारों की, यमन (Yemen) में भारत के ही बराबर 4 पत्रकारों की जबकि पाकिस्तान (Pakistan) में 3 पत्रकारों की उनके काम के करण हत्या कर दी गयी है।

दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता (Freedom of Press) के मुद्दे पर चर्चा होती है पर एक सच्चाई यह भी है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ (Fourth Piller of Democracy) माने जाने वाले प्रेस की राह में सरकारें बाधा पहुंचाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ती है। अक्सर मीडिया (Media) को लोगों तक सही और तथ्यपरक जानकारी (Factual Information) नहीं पहुंचाने दिया जाता है। देश चाहे कोई भी हो, सत्ता चाहे किसी भी राजनीतिक दल (Political Party) की हो सभी चाहते हैं कि प्रेस को अपने हाथ की कठपुतली (Puppet) बनाकर रखा जाए। कई देशों में प्रेस के पास यह आजादी नहीं है कि वह सच्चाई दुनिया को दिखा सकते। इसी स्थिति को बदलने के लिए और सच बोलने के नाम पर अपनी जान को दांव पर लगाने वाले जुझारू पत्रकारों को सम्मान देने के लिए दुनिया भर में 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (World Press Freedom Day) मनाने की शुरू आत की गयी।

दुनिया भर में पत्रकारों को आजादी से काम करने देने का समर्थन करते हुए सबसे पहले साल 1991 में दक्षिण अफ्रीका (South Africa) के पत्रकारों ने प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने की मांग की थी. इन पत्रकारों ने तीन मई को ही प्रेस की आजादी के सिद्धांतों को लेकर एक बयान जारी किया था जिसे डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक (Windhoek Declaration) के नाम से भी जानते हैं। इसके 2 साल बाद यानी 3 मई 1993 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने पहली बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला किया।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का मकसद क्या है

दुनियाभर में प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रहार होते रहे हैं। कई देशों में तो प्रेस की हालत बद से बदतर हो गयी है। प्रेस का कार्य लोगों तक सच पहुंचा कर उन्हें जागरुक करना है, लेकिन बदलते वक्त के साथ सरकारें उनपर लगाम लगाने की कोई कसर नहीं छोड़ रही है। आज दुनिया भर में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की खबरें सामने आती रहती हैं। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का उद्देश्य पत्रकारों के साथ हिंसा रोक कर उनको लिखने और बोलने की आजादी देना हैं। इसी बात का संदेश देने के लिए साल मनाया जाता है विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस।

साल 2022 की विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का थीम क्या है

हर साल विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस किसी ना किसी थीम पर आधारित होता है। इस वर्ष वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे की थीम 'डिजिटल घेराबंदी के तहत पत्रकारिता' (Journalism Under Digital Siege) है। दुनिया भर में यह देखा जा रहा है पत्रकारों को घेरने के लिए विरोधी अक्सर डिजीटल टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसा करने से सच और झूठ में फर्क करना आम जनता के लिए परेशानी भरा सबब बन रहा है। इसलिए इसके प्रति दुनियाभर के लोगों को जागरूकर करने के लिए इसबार की थीम​ डिजिटल घेराबंदी के तहत पत्रकारिता को रखा गया है।

यूनेस्को की ओर से दिया जाता है गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम पुरस्कार

साल 1997 से हर साल 3 मई को विश्व स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 'गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम' पुरस्कार देता है। यह पुरस्कार उस संस्थान या व्यक्ति को दिया जाता है, जिसने प्रेस की आजादी के लिए उल्लेखनीय कार्य किया हो। भारत के किसी भी पत्रकार या संस्थान को अभी तक यह पुरस्कार नहीं दिया गया है।

भारत प्रेस स्वतंत्रता के मामले में दुनिया के देशों में 142वें नंबर पर

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2020 के अनुसार प्रेस स्वतंत्रता के मामले में हमारे देश का नंबर 142वां है। यह रैंकिंग इस बात को बिना कुछ बोले जाहिर कर देती है हमारे यहां की पत्रकारिता और पत्रकार कितनी दयनीय स्थिति में हैं। अक्सर हमारे देश में मीडिया दो भागों में बंटी नजर आती है। एक खेमा गोदी मीडिया बनकर सरकार का लाउडस्पीकर बना रहता है तो दूसरा खेमा भी तर्कपरक बहस का माहौल तैयार करने में अक्षम रहता है। हमारे देश में जहां पत्रकार साहस कर अपने दम पर कुछ कहने की कोशिश भी करते हैं तो उन्हें प्रताड़ित करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाने लगते हैं। यहां कि कई बार तो पत्रकारों को अपनी जान तक गंवानी पड़ती है।

देश में बीते एक सालों में जो खबरे सामने आयी हैं सिर्फ उनके अनुसार ही 46 पत्रकारों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। कई ऐसे मामले दबा दिए जाते हैं जो कभी सामने ही नहीं आ पाते हैं। अभी हाल ही में हमने पत्रकारों की पूरी ​बिरादरी को शर्मशार करने वाली एक तस्वीर देखी थी जहां थाने में पत्रकारों समेत सांस्कृतिककर्मियो को पुलिस ने कपड़े उतरवाकर सिर्फ अंडरवीयर में उनकी तस्वीरें खींच कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दी थी। इस तरह की घटनाएं हमें यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि क्या सिर्फ प्रेस स्वतंत्रता दिवस को मना लेने और बड़ी-बड़ी बातें कर लेने भर से ही प्रेस को आजादी मिल जाएगी या इसके लिए एक सार्थक पहल करनी होगी।


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