पहलवान बजरंग पुनिया ने लौटाया पदमश्री, PM मोदी को लिखा 'अब कोई ऐसे सम्मानों से बुलायेगा तो आयेगी शर्म'
Bajrang Punia returned Padma Shri Award : भारत के चर्चित पहलवानों में शामिल और ओलंपिक पदक जीतकर देश की शान बढ़ाने वाले बजरंग पुनिया ने आज पीएम मोदी के नाम खत लिखकर पदमश्री लौटाने की बात कही है। ऐसा उन्होंने खिलाड़ियों की बातें नहीं सुने जाने के कारण किया है।
पहलवान बजरंग पुनिया ने अपना पद्मश्री सम्मान प्रधानमंत्री आवास के सामने फ़ुथपाथ पर रख दिया है, जिसका वीडियो पत्रकार मनदीप पुनिया ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है।
बजरंग पुनिया ने अपना पद्मश्री सम्मान प्रधानमंत्री आवास के सामने फ़ुथपाथ पर रख दिया है pic.twitter.com/KFSuNgJ5Y3
— Mandeep Punia (@mandeeppunia1) December 22, 2023
गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में WFI प्रमुख और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर महिला खिलाड़ियों के यौन उत्पीड़न के आरोप लगाते हुए आंदोलन किया गया था, मगर बावजूद इसके खिलाड़ियों को न्याय नहीं मिला। बृजभूषण शरण सिंह लंबे अरसे से भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहे और पहलवानों के लंबे आंदोलन के बाद उन्हें अध्यक्ष पद की कुर्सी खाली करनी पड़ी थी। इसके बाद हुए चुनाव में बृजभूषण के बहुत करीबी संजय सिंह को अध्यक्ष बनाया गया है। यानी एक बार मोदी सरकार ने यह संदेश दे दिया कि पहलवानों का पिछले 11 महीने से बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ चलाया गया आंदोलन किसी काम का नहीं है। ऐसे में विरोधस्वरूप बजरंग पूनिया ने अपना पदक लौटाने का ऐलान किया है।
बजरंग पुनिया लिखते हैं, माननीय प्रधानमंत्री जी, उम्मीद है कि आप स्वस्थ होंगे. आप देश की सेवा में व्यस्त होंगे. आपकी इस भारी व्यस्तता के बीच आपका ध्यान हमारी कुश्ती पर दिलवाना चाहता हूं. आपको पता होगा कि इसी साल जनवरी महीने में देश की महिला पहलवानों ने कुश्ती संघ पर काबिज बृजभूषण सिंह पर सेक्सुएल हरासमैंट के गंभीर आरोप लगाए थे, जब उन महिला पहलवानों ने अपना आंदोलन शुरू किया तो मैं भी उसमें शामिल हो गया था. आंदोलित पहलवान जनवरी में अपने घर लौट गए, जब उन्हें सरकार ने ठोस कार्रवाई की बात कही, लेकिन तीन महीने बीत जाने के बाद भी जब बृजभूषण पर एफआईआर तक नहीं की तब हम पहलवानों ने अप्रैल महीने में दोबारा सड़कों पर उतरकर आंदोलन किया, ताकि दिल्ली पुलिस कम से कम बृजभूषण सिंह पर एफआईआर दर्ज करे, लेकिन फिर भी बात नहीं बनी तो हमें कोर्ट में जाकर एफआईआर दर्ज करवानी पड़ी.
वह आगे लिखते हैं, 'जनवरी में शिकायतकर्ता महिला पहलवानों की गिनती 19 थी, जो अप्रैल तक आते आते 7 रह गई थी, यानी इन तीन महीनों में अपनी ताकत के दम पर बृजभूषण सिंह ने 12 महिला पहलवानों को अपने न्याय की लड़ाई में पीछे हटा दिया था. आंदोलन 40 दिन चला. इन 40 दिनों में एक महिला पहलवान और पीछे हट गईं. हम सबपर बहुत दबाव आ रहा था. हमारे प्रदर्शन स्थल को तहस नहस कर दिया गया और हमें दिल्ली से बाहर खदेड़ दिया गया और हमारे प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी. जब ऐसा हुआ तो हमें कुछ समझ नहीं आया कि हम क्या करें, इसलिए हमने अपने मेडल गंगा में बहाने की सोची. जब हम वहां गए तो हमारे कोच साहिबान और किसानों ने हमें ऐसा नहीं करने दिया. उसी समय आपके एक जिम्मेदार मंत्री का फोन आया और हमें कहा गया कि हम वापस आ जाएं, हमारे साथ न्याय होगा. इसी बीच हमारे गृहमंत्री जी से भी हमारी मुलाकात हुई, जिसमें उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि वे महिला पहलवानों के लिए न्याय में उनका साथ देंगे और कुश्ती फेडरेशन से बृजभूषण, उसके परिवार और उसके गुर्गों को बाहर करेंगे. हमने उनकी बात मानकर सड़कों से अपना आंदोलन समाप्त कर दिया, क्योंकि कुश्ती संघ का हल सरकार कर देगी और न्याय की लड़ाई न्यायालय में लड़ी जाएगी, ये दो बातें हमें तर्कसंगत लगी.
पीएम मोदी को वह लिखते हैं, लेकिन बीती 21 दिसंबर को हुए कुश्ती संघ के चुनाव में बृजभूषण एक बार दोबारा काबिज हो गया है. उसने स्टेटमैंट दी कि "दबदबा है और दबदबा रहेगा." महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोपी सरेआम दोबारा कुश्ती का प्रबंधन करने वाली इकाई पर अपना दबदबा होने का दावा कर रहा था. इसी मानसिक दबाव में आकर ओलंपिक पदक विजेता एकमात्र महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती से सन्यास ले लिया. हम सभी की रात रोते हुए निकली. समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाएं, क्या करें और कैसे जीएं. इतना मान-सम्मान दिया सरकार ने, लोगों ने. क्या इसी सम्मान के बोझ तले दबकर घुटता रहूँ. साल 2019 में मुझे पद्मश्री से नवाजा गया. खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. जब ये सम्मान मिले तो मैं बहुत खुश हुआ. लगा था कि जीवन सफल हो गया, लेकिन आज उससे कहीं ज्यादा दुखी हूं और ये सम्मान मुझे कचोट रहे हैं. कारण सिर्फ एक ही है, जिस कुश्ती के लिए ये सम्मान मिले उसमें हमारी साथी महिला पहलवानों को अपनी सुरक्षा के लिए कुश्ती तक छोड़नी पड़ रही है.
बजरंग पुनिया लिखते हैं, खेल हमारी महिला खिलाड़ियों के जीवन में जबरदस्त बदलाव लेकर आए थे. पहले देहात में यह कल्पना नहीं कर सकता था कि देहाती मैदानों में लड़के-लड़कियां एक साथ खेलते दिखेंगे. लेकिन पहली पीढी की महिला खिलाड़ियों की हिम्मत के कारण ऐसा हो सका. हर गांव में आपको लड़कियां खेलती दिख जाएंगी और वे खेलने के लिए देश विदेश तक जा रही हैं. लेकिन जिनका दबदबा कायम हुआ है या रहेगा, उनकी परछाई तक महिला खिलाड़ियों को डराती है और अब तो वे पूरी तरह दोबारा काबिज हो गए हैं, उनके गले में फूल-मालाओं वाली फोटो आप तक पहुंची होगी. जिन बेटियों को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की ब्रांड अंबेसडर बनना था उनको इस हाल में पहुंचा दिया गया कि उनको अपने खेल से ही पीछे हटना पड़ा. हम "सम्मानित" पहलवान कुछ नहीं कर सके. महिला पहलवानों को अपमानित किए जाने के बाद मैं "सम्मानित" बनकर अपनी जिंदगी नहीं जी पाउंगा. ऐसी जिंदगी कचोटेगी ताउम्र मुझे. इसलिए ये "सम्मान" मैं आपको लौटा रहा हूं.
बजरंग प्रधानमंत्री को लिखते हैं, जब किसी कार्यक्रम में जाते थे तो मंच संचालक हमें पद्मश्री, खेलरत्न और अर्जुन अवार्डी पहलवान बताकर हमारा परिचय करवाता था तो लोग बड़े चाव से तालियां पीटते थे. अब कोई ऐसे बुलाएगा तो मुझे घिन्न आएगी, क्योंकि इतने सम्मान होने के बावजूद एक सम्मानित जीवन जो हर महिला पहलवान जीना चाहती है, उससे उन्हें वंचित कर दिया गया. मुझे ईश्वर में पूरा विश्वास है उनके घर देर है अंधेर नहीं. अन्याय पर एक दिन न्याय की ज़रूर जीत होगी.
आपका बजरंग पूनिया
असम्मानित पहलवान