Begin typing your search above and press return to search.
राजनीति

70 सालों में आदिवासियों को इतना ही दे पाया है लोकतंत्र

Prema Negi
19 April 2019 2:24 AM GMT
70 सालों में आदिवासियों को इतना ही दे पाया है लोकतंत्र
x

फोटो में दिख रहा वोटर जनकवि रघुवीर सहाय की इन पंक्तियों की याद दिलाता है, 'राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत-भाग्य विधाता है फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता है।' सवाल आज भी जिंदा है ​कि वोट की राजनीति से देश के आखिरी आदमी को कभी कुछ मिलेगा या फिर यह जुमला ही बनकर रह जाएगा...

वोट की राजनीति से लोकतंत्र में आई मजबूती का सच बयां कर रहे हैं उत्तम कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

सच मानिए तो यही भारत की सच्ची तस्वीर है। सोशल मीडिया में छप रही इस तस्वीर की सच्चाई यह है कि भारत के 9 अमीरों के पास 50 प्रतिशत आबादी के बराबर संपत्ति है। भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 2018 में प्रतिदिन 2,200 करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है। इस दौरान, देश के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की संपत्ति में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि 50 प्रतिशत गरीब आबादी की संपत्ति में महज तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश के शीर्ष नौ अमीरों की संपत्ति पचास प्रतिशत गरीब आबादी की संपत्ति के बराबर है। दावोस में विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की सालाना बैठक से पहले जारी इस अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया भर के अरबपतियों की संपत्ति में पिछले साल प्रतिदिन 12 प्रतिशत यानी 2.5 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है।

करोड़पतियों से भरी पड़ी है छत्तीसगढ़ की पूरी कैबिनेट, सबसे अमीर मंत्री की संपत्ति 500 करोड़ से भी ज्यादा वहीं, दुनियाभर में मौजूद गरीब लोगों की 50 प्रतिशत आबादी की संपत्ति में 11 प्रतिशत की गिरावट देखी गयी। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में रहने वाले 13.6 करोड़ लोग साल 2004 से कर्जदार बने हुए हैं। यह देश की सबसे गरीब 10 प्रतिशत आबादी है।

रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सबसे अमीर शख्स और अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस की संपत्ति बढ़कर 112 अरब डॉलर हो गयी। उनकी संपत्ति का एक महज एक प्रतिशत हिस्सा यूथोपिया के स्वास्थ्य बजट के बराबर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 'भारत की शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 77.4 प्रतिशत हिस्सा है।

इनमें से सिर्फ एक ही प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 51.53 प्रतिशत हिस्सा है। वहीं, करीब 60 प्रतिशत आबादी के पास देश की सिर्फ 4.8 प्रतिशत संपत्ति है।देश के शीर्ष नौ अमीरों की संपत्ति पचास प्रतिशत गरीब आबादी की संपत्ति के बराबर है। 2018 से 2022 के बीच भारत में रोजाना 70 नए करोड़पति बनेंगे।

ऑक्सफैम इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ बेहर ने कहा, 'सर्वेक्षण से इस बात का पता चलता है कि सरकारें कैसे स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाओं का कम वित्तपोषण करके असमानता को बढ़ा रही हैं । वहीं, दूसरी ओर, कंपनियों और अमीरों पर कम कर लगा रही है और कर चोरी को रोकने में नाकाम रही हैं। आर्थिक असमानता से सबसे ज्यादा महिलाएं प्रभावित हो रही हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल देश में 18 नए अरबपति बने। इसी के साथ अरबपतियों की संख्या बढ़कर 119 हो गयी है। उनकी संपत्ति पहली बार बढ़कर 400 अरब डॉलर के स्तर को पार कर गई है। इनकी संपत्ति 2017 में 325.5 अरब डॉलर से बढ़कर 2018 में 440.1 अरब डॉलर हो गयी है।

ऑक्सफैम ने कहा कि चिकित्सा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और जल आपूर्ति के मद में केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त राजस्व और पूंजीगत खर्च 2,08,166 करोड़ रुपये है, जो कि देश के सबसे अमीर शख्स मुकेश अंबानी की कुल संपत्ति 2.8 लाख करोड़ रुपये से कम है।

ऑक्सफैम ने कहा कि यह 'नैतिक रूप से क्रूर' है कि भारत में जहां गरीब दो वक्त की रोटी और बच्चों की दवाओं के लिए जूझ रहे हैं वहीं कुछ अमीरों की संपत्ति लगातार बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा, 'यदि एक प्रतिशत अमीरों और देश के अन्य लोगों की संपत्ति में यह अंतर बढ़ता गया तो इससे देश की सामाजिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी।

हम क्या कर रहे हैं लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के बदले उन्हें धर्म और तीज त्योहार में उलझा कर रख रहे हैं। उन्हें लड़ने के लिए हिन्दू मुसलमान हथियार दे दिया है। गाय रक्षा के नाम पर मुसलमानों का कत्लेआम कर रहे हैं।

हिंदू धर्म के उत्थान के नाम पर आदिवासी, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित कर रहे हैं। नए नए योजनाओं के तहत लोगों को ठग रहे हैं। जो इन असमानताओं के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, उनके आवाज को कुचल दिया जा रहा है उन्हें आतंकवादी कहा जा रहा है। जो आदिवासियों के हित में बोल रहे हैं वे माओवादी करार दे दिए जा रहे हैं। इस तरह असमानता बढ़ रही है और लोकतंत्र के लिए भयानक संकट उत्पन्न हो रहा है।

(उत्तम कुमार दक्षिण कोसल के संपादक हैं।)

Next Story

विविध