यूपी के सरकारी स्कूलों के 76 फीसदी बच्चे नहीं पढ़ पा रहे हिंदी, जबकि योगी लगे हैं प्रदेश को 'हिंदू' बनाने में
यूपी के सरकारी के स्कूलों के 76 फीसदी बच्चे नहीं पढ़ पाते हिंदी। उदाहरण के लिए बच्चों को पढ़ने के लिए दिया गया, 'बहन तुम कहां से आ रही हो?' लेकिन बच्चे इस वाक्य को भी अच्छे से नहीं पढ़ पाए...
जनज्वार। अगर बच्चा हिंदी के बहुत छोटे और साधारण वाक्य भी पढ कर बोल न पाए तो हम इसे क्या कहेंगे? यह स्थिति एक या दो बच्चे की नहीं है, बल्कि सरकारी स्कूलों में जाने वाले ज्यादातर बच्चों की है। इसी को लेकर सरकारी स्कूलों में बच्चों पर एक सर्वे किया गया।
इसमें छोटे बच्चों का पढ़ने के लिए हिंदी के बहुत छोटे व साधारण वाक्य दिए गए। सर्वे करने वाले हैरान थे, क्योंकि बच्चा पढ़ ही नहीं पा रहा था। वह वाक्य की जगह अक्षर पढ़ रहे थे। वह भी सही से नहीं। उदाहरण के लिए बच्चों को पढ़ने के लिए दिया गया, 'बहन तुम कहां से आ रही हो?' लेकिन बच्चे इस वाक्य को भी अच्छे से नहीं पढ़ पाए। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कैसे हो रही है? इस रिपोर्ट से इसका पता आसानी से चल रहा है। सरकारी स्कूल में बच्चे जा तो रहे हैं, लेकिन वह पढ़ना नहीं सीख रहे हैं।
बच्चे हिंदी में बात आसानी से कर लेते हैं
सर्वे में चौथीं कक्षा के जिन बच्चों को इस सर्वे में शामिल किया गया था, वह हिंदी में आसानी से बात कर सकते हैं। वह अपने दोस्तों व घर पर हिंदी में ही बात करते हैं। उनके घर का माहौल भी हिंदी वाला है। फिर भी वह हिंदी के साधारण वाक्य नहीं पढ़ पा रहे थे, क्योंकि जिस सरकारी स्कूल में वह पढ़ रहे हैं, वहां उन्हें इस तरह से तैयार नहीं किया गया।
यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) ने 2018 के आंकड़े जारी किए। जो बता रहे हैं कि बच्चों की पढ़ने की स्थिति कितनी खराब है। आंकड़ों के मुताबिक 2 कक्षा में मातृभाषा में पढ़ने में उत्तर प्रदेश में 76%, राजस्थान में 62% और कर्नाटक में 53% छात्र एक भी वाक्य सही से नहीं पढ़ पाए। हालांकि महाराष्ट्र में हालाता बहुत अच्छे माने जा सकते हैं। यहां 96% छात्र मातृ भाषा में दिए गए वाक्य आसानी से पढ़ पाए।
बच्चों के सीखाने की ओर ध्यान नहीं
विश्व बैंक ने एक रिपोर्ट जारी की है, इससे पता चलता है कि सरकारी स्कूल में बच्चों को सीखाने की ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया जा रहा है। रिपोर्ट से पता चलता है कि 50% बच्चें स्कूल में पांच साल लगाने के बाद भी बहुत साधारण वाक्य भी पढ़ नहीं पाते। दस साल के बच्चों में यह प्रतिशत लगभग 55% है। भारत भर में, 25 मिलियन बच्चों को हर साल पहली कक्षा में दाखिला मिलता है। 17-18 मिलियन बच्चे पांच साल की उम्र तक गणित और हिंदी सीख नहीं पाते।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगले दस सालों को एक एक योजना तैयार करनी होगी कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाए। सरकारी स्कूलों की जो स्थिति बन रही है, वह चिंतानजक है। इससे अशिक्षित बच्चों की संख्या इतनी हो जाएंगी कि हम संभाल ही नहीं पाएंगे।
स्कूली शिक्षा में काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संस्थान सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन के संस्थापक और चेयरपर्सन आशीष धवन ने कहा, सरकारी स्कूलों में 14 वर्षों में सीखने का परिणाम निराशाजनक है। इसमें कोई सुधार नहीं हुआ है। एएसईआर की रिपोर्ट में बताया गया कि कक्षा तीन के 75% छात्र साधारण गणित के सवाल हल नहीं कर पा रहे हैं। दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ पा रहे हैं।
हरियाणा की पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल ने बताया कि इसमें दो राय नहीं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का तरीका सही नहीं है। इसमें बहुत से बदलाव की जरूरत है। इस ओर जल्दी ही ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो निश्चित ही एक समय के बाद बच्चे स्कूल छोड़ देंगे। क्योंकि उन्हें पढ़ना आएगा ही नहीं तो अगली कक्षा में करेंगे क्या?
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उन्होंने बताया कि हमें पढ़ाने के ऐसे तरीके खोजने होंगे जिससे बच्चे ज्यादा से ज्यादा सीखे। शिक्षा नीति में बदलाव करने होंगे। पढ़ने का तरीका बदलना होगा। सरकारी शिक्षक की जवाबदेही भी सुनिश्चित करनी होगी। इस तरह के छोटे छोटे उपाय कर हम खासा बदलाव ला सकते हैं।
शिक्षक नेता और सामाजिक कार्यकर्ता चतुरानन ओझा कहते हैं, 'बच्चे हिंदी पढ़ेंगे कैसे जब प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ही पूरे प्रदेश को सिर्फ हिंदू बनाने की योजना में लगे हैं। शिक्षा के लिए शांति की बहुत जरूरत है, पर यह सरकार तो फसाद खोज—खोज कर ला रही है। मैं तो कहता हूं सिर्फ बच्चे ही हिंदी नहीं पढ़ पा रहे, बल्कि आप यूपी के कॉलेजों के विद्यार्थियों से हिंदी की 10 पंक्तियां लिखवा लें तो कमोबेश यही स्थिति पाएंगे।'