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विमर्श

सबसे बड़ा नरसंहार : बेटों की लालसा में हर साल मारी जाती हैं 8 लाख बेटियां

Prema Negi
9 July 2018 5:14 AM GMT
सबसे बड़ा नरसंहार : बेटों की लालसा में हर साल मारी जाती हैं 8 लाख बेटियां
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लोगों के भीतर लड़की की तुलना में लड़के की चाह इतनी अधिक क्यों हैं? क्या यह कुछ लोगों की व्यक्तिगत मानसिक बीमारी है या यह एक व्यापक सामाजिक बीमारी है

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जनज्वार। भारतीय वित्त मंत्री ने 2017-18 के आर्थिक सर्वे में जब यह तथ्य प्रस्तुत किया कि 6 करोड़ 30 लाख लड़कियां गायब हैं और 2 करोड़ 10 लाख अनचाही लड़कियां पैदा हुई हैं। अनचाही लड़कियां ऐसी लड़कियां हैं, जिन्हें उनके माता-पिता पैदा नहीं करना चाहते थे, लेकिन लड़के की उम्मीद में पैदा हो गईं। आखिर ये 6 करोड़ 10 लाख गायब लड़कियां कौन हैं और ये कैसै गायब हुईं?

विश्व भर में यह स्थापित तथ्य है कि प्रकृति का सामान्य नियम है कि आम तौर जितने लड़के पैदा होते हैं, उतनी ही लड़किया भी पैदा होती हैं। लेकिन भारत में पुरूषों की तुलना में 6 करोड़ 10 लाख लड़कियां कम हैं। इन्हीं को वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत आर्थिक सर्वे में गायब लड़किया कहा गया है।

इनमें से अधिकांश वे लड़कियां हैं, जिन्हें गर्भ में हीं उनके लिंग की पहचान करके मार दिया गया। इस तथ्य की पुष्टि कुछ ही दिनों पहले नेशनल हेल्थ सर्वे-4 की रिपोर्ट में भी हुई है। 2011 के जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 0-6 वर्ष के बीच के 1000 लड़कों पर सिर्फ 914 लड़किया पैदा हुईं, जबकि 2001 की जनगणना में यह अनुपात प्रति 1000 लड़कों पर 927 था। इसका अर्थ यह है कि जहां 10 वर्ष पहले 1000 लड़कों पर 927 लड़किया पैदा होती थीं, वह घटकर 2011 में 914 हो गया।

नेशनल हेल्थ सर्वे-4 की रिेपोर्ट के अनुसार हर वर्ष करीब 8 लाख लड़कियों की गर्भ में हत्या कर दी जाती है। इस रिपोर्ट के अनुसार 1000 लड़कों की तुलना में सिर्फ 919 लड़कियां ही 2010-11 से 2015 के-16 बीच पैदा हुईं। मानक यह है कि कम से कम 1000 लड़कों पर 950 लड़किया पैदा होनी चाहिए थी, जबकि सिर्फ 919 लड़किया ही पैदा हुईं। इसका अर्थ है कि प्रति 1000 में से 31 लड़कियों को गर्भ में यह पहचान कर कि ये लड़कियां हैं, मार दिया गया। इस प्रकार प्रति वर्ष करीब 8 लाख लड़कियों की गर्भ में हत्या की गई। आंकड़े के अनुसार प्रति वर्ष 2 करोड़ 60 लाख बच्चे (लड़के-लड़कियां) पैदा होते हैं।

सारे तथ्य यह बताते हैं कि माता-पिता और परिवार के अन्य निर्णायक सदस्य लड़कियों की तुलना में लड़का पैदा करने को प्राथमिकता देते हैं और आधुनिक तकनीकी से यह पहचान कर कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़की है, उसकी गर्भ में ही हत्या करा देते हैं, जिसे आम भाषा में कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं।

भारतीय वित्तमंत्री द्वारा आर्थिक सर्वे में प्रस्तुत आंकड़े कन्या भ्रूण हत्या भारत में भयावह स्थिति को सामने लाती है। 6 करोड़ 30 लाख लड़कियों के गायब होने या मारे जाने को विश्व के किसी भी जनसंहार से तुलना नहीं की जा सकती है। दो विश्व युद्धों में भी इतने लोग नहीं मारे गये। यह संख्या विश्व के कई देशों की कुल जनसंख्या से भी अधिक है।

शायद ही कोई इस बात से असहमत हो कि कन्याभ्रूण हत्या का मूल कारण लड़कियों की तुलना में लड़कों को प्राथमिकता देना या दूसरी भाषा में कहे तो लड़कों की तुलना में लड़कियों को दोयम दर्जे का मानना है। आंकड़े यह भी तथ्य सामने लाते हैं कि आम तौर पहला बच्चा जब गर्भ में रहता है, तो लोग भ्रूण परीक्षण नहीं कराते, लेकिन यदि पहला बच्चा लड़की पैदा हो जाये तो, दूसरा बच्चा जब गर्भ में आता है तो माता-पिता पता लगाते हैं कि लड़का है या लड़की।

यदि लड़की होती है, तो भ्रूण की हत्या करा देते हैं। कुछ माता-पिता यह काम दो लड़कियों के बाद करते हैं। इसके उलट तथ्य यह है कि यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो, कुछ लोग बच्चा पैदा ही नहीं करते या बच्चे का लिंग परीक्षण नहीं कराते। सबसे ज्यादा ध्यान देने की बात यह है कि आज तक कोई उदाहरण सामने नहीं आया है कि किसी माता-पिता ने लड़की की चाह में लड़का रूपी भ्रूण की हत्या कराई हो। ये तथ्य इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि भारत में कन्या भ्रूण हत्या लड़के की चाह में होती है।

प्रश्न यह उठता है कि लोगों के भीतर लड़की की तुलना में लड़के की चाह इतनी अधिक क्यों हैं? क्या यह कुछ लोगों की व्यक्तिगत मानसिक बीमारी है या यह एक व्यापक सामाजिक बीमारी है, जिसके सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक कारण हैं, जो ऐसी स्थिति का निर्माण करते हैं, जो अधिकांश माता-पिता को इस बात के लिए बाध्य कर देता है कि वे लड़के को प्राथमिकता दें। लड़का पैदा करने की इसी चाह का परिणाम करोड़ों लड़कियों की गर्भ में हत्या है।

लड़के को प्राथमिकता देने का आर्थिक कारण- अधिकांश माता-पिता यह सोचते हैं कि लड़का आर्थिक सुरक्षा प्रदान कर सकता है, लड़की नहीं। भले संविधान और कानून ने लड़कियों को संपत्ति मे बराबर का अधिकार प्रदान कर दिया हो, लेकिन वास्तविक और व्यवहारिक स्थिति यह है कि पुरूष ही संपत्ति का मालिक होता है।

अधिकांश माता-पिता इस बात पर विश्वास नहीं कर पाते हैं कि उनकी लड़की उन्हें बुढ़ापे में आर्थिक सुरक्षा प्रदान कर सकती हैं, क्योंकि वह इस व्यवहारिक सच्चाई को जानते हैं कि मेरी लड़की नहीं, बल्कि उसका पति ही वास्तव में उसकी आय एंव संपत्ति का मालिक है। इस कारण से वे बुढ़ापे की सुरक्षा के लिए लड़को पर ज्यादा भरोसा करते हैं, लड़की पर भरोसा नहीं कर पाते। इसके साथ ही लड़की दहेज के रूप में संपत्ति घर से लेकर जाती है, जबकि लड़का संपत्ति घर में लेकर आता है।

लड़के को प्राथमिकता देने का सामाजिक कारण- लड़का माता-पिता को सामाजिक सुरक्षा और प्रतिष्ठा दोनों प्रदान करता है। लड़का शादी के बाद भी माता-पिता के साथ रहता है, जबकि लड़की माता-पिता को छोड़कर अपने पति के घर चली जाती है। अभी भी अधिकांश मामलों में यही होता है।

इसके चलते माता-पिता अपनी सामाजिक सुरक्षा के लिए लड़के पर भरोसा करते हैं, लड़की पर नहीं कर पाते। आज भी भारतीय समाज के बड़े हिस्से में लड़का सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय है। लड़के वाली मां प्रतिष्ठा पाती है, जबकि सिर्फ लड़की वाली मां को थोड़ा हेय समझा जाता है।

लड़के को प्राथमिकता देने का धार्मिक कारण- हमारे देश में अभी भी बहुत सारे लोग इस मान्यता पर विश्वास करते हैं कि लड़का ही अंतिम संस्कार संपन्न कर सकता है। उसके हाथों यह संस्कार संपन्न होने पर ही परलोक सुधरेगा। इसके साथ ही यह मान्यता भी है कि मृत्यु के बाद पितरों को पिंडदान लड़का ही कर सकता है।

पुत्र की लालसा को अनेक अनुष्ठानों द्वारा सुनिश्चित किया गया है। पुत्रेष्टि यज्ञ के अलावा अनेक कर्मकाण्डों में पुत्रों की उपस्थिति के बिना माता-पिता की मुक्ति नहीं होती। पुत्र-लालसा के कुछ साफ और मोटे कारण हैं, मसलन परिवार का कर्ताधर्ता होगा, वह व्यक्तिगत सम्पत्ति का स्वामी है, वह मुखाग्नि देने वाला और पिण्डदान करने वाला है। यानी वह इहलोक में ही नहीं परलोक में भी माता-पिता के सुख की गारंटी है।

यह तथ्य चाहे जितना भी अप्रिय हो, लेकिन यह सच्चाई है कि यदि जीवन के सभी क्षेत्रों में जब तक लड़कियों को लड़कों के बराबर का दर्जा प्राप्त नहीं होता, तब कन्या भ्रूण हत्या को रोकना मुश्किल है। (यह लेख राष्ट्रीय सहारा में पहले प्रकाशित)

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