नर्मदा घाटी में एक अमानवीय त्रासदी को जन्म दे गया मोदी का ट्वीट
गुजरात सरकार केवल प्रधानमंत्री मोदी की जिद को पूरा करने में जी जान से जुटी है। यह जानकर भी कि बांध के कारण मध्य प्रदेश में विस्थापित हुए हजारों परिवारों को अभी तक मुआवजा नहीं मिला है और वे डूब स्थल पर ही डटे हुए हैं...
सौमित्र राय की रिपोर्ट
यह गुजरात के लिए नाक ऊंची करने वाली खबर हो सकती है कि सरदार सरोवर बांध अगले कुछ ही घंटे में 138 मीटर की ऐतिहासिक ऊंचाई को छूने वाला है। बीते 10 दिन से लगातार बारिश झेल रहे मध्य प्रदेश की 28 में से 21 नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। इन्हीं में से एक नर्मदा नदी भी है, जिसका पानी गुजरात और केंद्र सरकार की इस जिद से आकर टकरा रहा है कि सरदार सरोवर बांध को किसी भी तरह 138 मीटर तक भरना ही है, फिर चाहे इसके लिए मध्य प्रदेश के 32 हजार डूब प्रभावितों की जान की कुर्बानी ही देनी क्यों न पड़े।
नए इंडिया में इंसानों की जान में भी फर्क है। गुजरात में बीजेपी की रुपाणी सरकार ने सरदार सरोवर बांध में पानी का स्तर 137 मीटर पार करते ही बांध से पानी छोड़ना शुरू कर दिया। इसके लिए करीब 4000 लोगों को सुरक्षित स्थानों में पहुंचाया गया। मगर विडंबना देखिए कि 27 अगस्त को बांध के 134 मीटर की ऊंचाई को छूते ही मध्य प्रदेश सरकार ने पानी छोड़ने और बांध को और ज्यादा भरने की जिद छोड़ने की अपील की थी। इसे गुजरात सरकार ने नहीं माना।
यहां तक कि केंद्र सरकार और सरकदार सरोवर में जलभराव का स्तर निर्धारित करने वाली नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी के कानों में जूं नहीं रेंगी। बहरहाल इस जिद ने मध्यप्रदेश के धार और बड़वानी जिलों के एक बड़े हिस्से को डुबो दिया है। इससे 6000 से ज्यादा वे परिवार पूरी तरह से बेघर हो गए हैं, जिन्हें अभी तक सरदार सरोवर परियोजना का पूरा मुआवजा नहीं मिला है। यह त्रासदी कुछ इसी तरह की है जैसे भीड़ को खदेड़ने के लिए पुलिस वॉटर कैनन का इस्तेमाल करे और लोगों को अपनी जमीन, मकान सब-कुछ छोड़ने पर मजबूर करने के लिए सरकारें बांध के पानी का सहारा लें।
डूब प्रभावितों के बीच मेधा पाटकर
क्या केवडिया में स्थापित सरदार पटेल की प्रतिमा अपने पीछे हो रही तबाही को नहीं जान पा रही होगी? असल में यह जिद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थी कि इस साल सरदार सरोवर बांध को इसकी कुल ऊंचाई यानी 138 मीटर तक पूरा भरा जाए। उन्होंने तो ट्वीट कर उस दिन को ऐतिहासिक करार दिया था, जब बांध पूरा भर जाएगा।
गुजरात सरकार तो केवल प्रधानमंत्री की जिद को पूरा करने में जी जान से जुटी है। यह जानकर भी कि बांध के कारण मध्यप्रदेश में विस्थापित हुए हजारों परिवारों को अभी तक मुआवजा नहीं मिला है और वे डूब स्थल पर ही डटे हुए हैं।
देश के लोकतंत्र में इससे ज्यादा अमानवीय और शर्मनाक बात दूसरी कोई हो ही नहीं सकती कि मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव के इस साल 29 मई को लिखे पत्र में केंद्र सरकार को साफ चेतावनी दी गई थी कि अगर बांध को पूरा भरने की कोशिश की गई तो डूब क्षेत्र में पुनर्वास की प्रक्रिया प्रभावित होगी और विस्थापितों के घर डूब जाएंगे।
लेकिन जैसा कि भारत में स्थापित तकरीबन सभी बांध परियोजनाओं में होता आया है, जवाब में 28 अगस्त को प्रधानमंत्री का ट्वीट आ गया।
ऐसा पहली बार नहीं है कि राजनीतिक मंसूबों की जिद में देश के प्रधानमंत्री ने मानवीय त्रासदी का खुलेआम मखौल उड़ाया हो। इससे पहले जब हिमाचल प्रदेश के पौंग बांध को प्रभावितों के विस्थापन और पुनर्वास से पहले ही पूरा भरने का ऐलान किया गया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने दो-टूक कह दिया था कि लोग अगर अपना भला चाहते हैं तो बसाहट छोड़कर भाग जाएं।
शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कुछ यही कहना चाहते थे। नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी की वेबसाइट को अगर खोलें तो मिलेगा कि सरकार ने सरदार सरोवर बांध के डूब प्रभावित सभी 32 हजार परिवारों को मुआवजा दे दिया है। इनमें 73 फीसदी से ज्यादा डूब प्रभावित मध्य प्रदेश से हैं। केंद्र सरकार यही दावा बीते पांच साल से करती आ रही है। इसकी बुनियाद में मध्य प्रदेश में 15 साल से काबिज रही पूर्ववती बीजेपी सरकार के ही काले कारनामे हैं। 2018 के अंत तक बीजेपी की शिवराज सिंह सरकार ने बचे हुए 6000 परिवारों में किसी को जमीन दी तो नकद मुआवजा नहीं दिया तो किसी को मुआवजा मिला तो जमीन नहीं दी गई।
सुप्रीम कोर्ट के साल 2000 में पारित आदेश के अनुसार बांध की ऊंचाई 100 मीटर होने के बाद से ही डूब प्रभावित मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के सभी परिवारों को उनकी जमीन, मकान का मुआवजा देने की प्रक्रिया पूरी करनी थी। जमीन के बदले जमीन और मकान के बदले प्लॉट और 5.8 लाख रुपए की नकद धनराशि का मुआवजा तय हुआ था।
मध्यप्रदेश सरकार ने सभी को पुनर्वास पैकेज देने के केंद्र के दावे को खारिज करते हुए 2017 में उन 18 हजार डूब प्रभावितों की पूरी सूची राजपत्र में जारी की थी, जिन्हें मुआवजा नहीं मिला था। तब मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह की ही सरकार थी। इनमें से एक तिहाई को अभी तक पूरा मुआवजा नहीं मिला है। यही वजह है कि ये 6000 परिवार अभी भी डूब प्रभावित इलाकों में रहने पर मजबूर हैं, क्योंकि उनके पास पुनर्वास स्थल में नया मकान बनाने के लिए पैसा नहीं है।
मध्य प्रदेश के डूब प्रभावित परिवार
साफ है कि अगर केंद्र सरकार सच बोल रही है तो मध्य प्रदेश सरकार का राजपत्र झूठी तस्वीर दिखा रहा है, लेकिन जमीन पर जो सच नजर आ रहा है वह मध्य प्रदेश की पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के आंकड़े को ही सही ठहराता है। यानी नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी का दावा पूरी तरह से बेबुनियाद है।
अगर इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बरक्स देखें तो यह गंभीर अवमानना का मामला बनता है और खुद प्रधानमंत्री भी इसके दायरे में आ जाते हैं, जो अपनी ही सरकार की एक एजेंसी के फर्जी दावे को आधार बनाकर बांध को उसकी पूरी ऊंचाई तक भरने को ऐतिहासिक बता रहे हैं। उनका यह ट्वीट बेहद अमानवीय है, क्योंकि डूब प्रभावित 178 गांवों और एक पूरे शहर को दोबारा कभी बसाया नहीं जा सकता और न ही प्रभावितों की जिंदगी को दोबारा पहले ही तरह बहाल किया जा सकता है।
दरअसल, यह एक सनक भरी जिद में पूरे इतिहास और सदियों पुरानी संस्कृति को डुबो देने वाला वीभत्स षड्यंत्र है। इसका जाल 1987 में उस समय बुनना शुरू हो गया था, जब लाख विरोधों के बावजूद सरदार सरोवर बांध की शुरुआत हुई। बांध का निर्माण गुजरात और राजस्थान के सूखे इलाकों की प्यास बुझाने वाला और मध्य प्रदेश को बिजली देने के वादे के साथ शुरू किया गया था। लेकिन नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी पर लगातार गुजरात का पक्ष लेने के आरोप लगते रहे हैं और अब तो मध्यप्रदेश सरकार ने गुजरात पर नर्मदा अवॉर्ड का खुलेआम उल्लंघन करने और राज्य को बिजली न देने का आरोप लगाया है।
बहरहाल, इन तमाम राजनीति के बीच मध्य प्रदेश के डूब प्रभावितों की जिंदगी एक जिद के चलते अधर में लटक गई है। उनके पास सरकारी राहत शिविर में परोसा जाने वाला दो वक्त का भोजन तो है, लेकिन न छत है और न ही कोई रोजगार। इससे भी बड़ी शर्मनाक बात यह है कि गरीबों, किसानों और वंचितों की खुशहाली और विकास का दावा करने वाली सरकार खुद यह जिद पाले बैठी है।
(पिछले दो दशक से पत्रकारिता में रहे सौमित्र राय इन दिनों भोपाल में एक स्वयंसेवी संस्था के साथ जुड़े हैं।)