जो विकास पिछले 4 साल 8 महीने में मोदी सरकार नहीं कर सकी है वो विकास अब ये विज्ञापन एजेंसियां करेंगी। ये विकास जमीन पर नहीं जनता के दिमाग में होगा, जो दिखेगा नहीं सिर्फ हम आपको आभासी तरीके से महसूस करवाया जाएगा...
सुशील मानव की रिपोर्ट
जनज्वार। शुक्रवार 4 दिसंबर को उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा महागठबंधन का ऐलान हुआ, इधर कल यानि शनिवार 5 जनवरी को डीएम बी. चंद्रकला के घर पर ताबड़तोड़ छापेमारी करके आईएएस अधिकारी समेत 11 लोगों के ख़िलाफ़ केस दर्ज़ करा दिया है। यह महज इत्तेफाक़ नहीं है। आईएस बी. चंद्रकला तो चारा है, निशाना तो अखिलेश यादव हैं। दरअसल ये सब समाजवादी पार्टी और उसके प्रमुख नेता अखिलेश यादव के जरिए गठबंधन पर दबाव बनाने के लिए उठाया जा रहा एक राजनीतिक कदम है।
इससे पहले प्रदेश कि 21 शुगर मिलों की बिक्री को लेकर बसपा प्रमुख मायावती पर सीबीआई ने अपना शिकंजा कसा था। दो अलग-अलग केसों में सपा–बसपा मुखिया को फांसकर गठबधन को तोड़ने का प्रयास कर रही है, ताकि भाजपा के लिए 2019 का चुनावी रास्ता साफ हो सके।
सवाल सीबीआई की कार्रवाई पर नहीं, बल्कि कार्रवाई की परफेक्ट टाइमिंग पर है। बता दें कि उत्तर प्रदेश में कुल 80 लोकसभा सीटें हैं, और 2014 में भाजपा गठबंधन ने उत्तरप्रदेश की 80 में से 73 सीटें जीतकर केंद्र की सत्ता हासिल की थी। भाजपा गठबंधन का मुख्य जनाधार उत्तर भारत के हिन्दी भाषी बेल्ट में है, जबकि पांच राज्यों के हालिया विधान चुनाव में भाजपा ने तीन राज्यों की सत्ता गँवा दी।
इसका सीधा सा अर्थ है कि हिंदी बेल्ट से भी भाजपा गठबंधन का जनाधार बहुत तेजी से खिसका है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन भाजपा के लिए कोढ़ में खाज जैसा है। भाजपा को अगर वापिस सत्ता में लौटना है तो उसे किसी भी हाल में सपा-बसपा गठबंधन को तोड़ना ही होगा। ये सीबीआई, आईबी और आईटी जैसे संस्थाओं का इस्तेमाल किए बगैर संभव नहीं है।
सीबीआई के नंबर एक और नंबर दो राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा का ‘तू चोर, तू चोर’ वाला खेल पूरा देश देख चुका है। देश ये भी देख चुका है कि कैसे एक बेईमान सीबीआई अफसर के खिलाफ जाँच को स्वीकृति देने के बाद सीबीआई निदेशक को भाजपा की मोदी सरकार द्वारा रातों रात छुट्टी पर भेज दिया गया था।
बहरहाल राम-मंदिर और तीन तलाक़ का मुद्दा लाकर मोदी सरकार खुद देश की जनता को संदेश दे चुकी है कि उसे खुद अपने विकास के दावों पर भरोसा नहीं है कि उसके भरोसे वो जनता के पास वोट माँगने जाए। 2004 लोकसभा चुनाव का ‘इंडिया शाइनिंग’ नारा आज भी संघ-भाजपा के दिल में चुभता है।
संघ-भाजपा को मालूम है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और विपक्षी गठबंधन में तोड़फोड़, अब यही दो रास्ते हैं जिससे होकर भाजपा सत्ता में वापसी कर सकती है। उसने दोनों ही मोर्चों पर काम करना शुरू कर दिया है। बुलंदशहर में हिंसा भड़काने की एक बड़ी साजिश नाकाम हो चुकी है। बुलंदशहर हिंसा में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या में बजरंग दल का जिला संयोजक मुख्य अभियुक्त है। इसके अलावा कई भाजपा नेताओं का नाम भी उछला है इस केस में।
तीन तलाक़, नोएडा में खुले में नमाज़ की मनाही जैसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के मुद्दे लगातार मीडिया में क्रिएट किए जा रहे हैं। साथ ही विपक्षी गठबंधन को बनने रोकेन के लिए सीबीआई, आईबी और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट भी लग चुके हैं। इसके अलावा 2014 लोकसभी चुनाव में ‘मोदी लहर’ पैदा करने वली विज्ञापन एजेंसी ओगिल्वी एंड मैथर, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में सांप्रदायिक कमल खिलाने वाली विज्ञापन एजेंसी वेर्मिल्लिओं कम्युनिकेशन तथा इनके अलावा क्रेयोंस एडवरटाइजिंग, प्रोमोडोम कम्युनिकेशंस जैसी 18 विज्ञापन एजेंसियां मोदी सरकार के सरकारी प्रचार अभियान के लिए शार्टलिस्ट की गयी हैं।
जो विकास पिछले 4 साल 8 महीने में मोदी सरकार नहीं कर सकी है वो विकास अब ये विज्ञापन एजेंसिया करेंगी। ये विकास जमीन पर नहीं जनता के दिमाग में होगा, जो दिखेगा नहीं सिर्फ हम आपको आभासी तरीके से महसूस करवाया जाएगा। यूँ कि ये आभासी विकास होगा, जिसे जनता को अपने आँख, नाक,कान जीभ और त्वचा से नहीं बल्कि अपनी आस्था से महसूस करना होगा।
उधर आईटी सेल भी पूरी ऊर्जा से सक्रिय हो गई है, और तरह तरह के फर्जी मैसेज भेजकर वाट्सएप्प पर जनता को मोदी सरकार की चौकीदारी पर शक़ करने के लिए उसके हिंदुत्व पर धिक्कारा जा रहा है। अब सवाल मोदी की मसीहाई पर नहीं, लोगों की भक्ति पर है।
उधर नोटबंदी का समर्थन करने के बाद चित्रा मुद्गल को साहित्य अकादमी मिलने से प्रेरित होकर अर्चना वर्मा, वंदना देव शुक्ला जैसे दर्जनों साहित्यकार राफेल नामक राक्षस को दिन-रात शराप-शराप कर मोदी सरकार की खंडित मूरत की प्राण प्रतिष्ठा में पूरे समर्पण से लगी हुई हैं।