Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

प्रधान सेवक को आवश्यकता है उन पत्रकारों की जो न पूछें सवाल

Prema Negi
4 Aug 2018 3:00 PM GMT
प्रधान सेवक को आवश्यकता है उन पत्रकारों की जो न पूछें सवाल
x

अपने भाषणों में भले ही मोदी जी लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आज़ादी और प्रेस की स्वतंत्रता की दुहाई देते हों, लेकिन जारी आंकड़ों की हक़ीक़त बयान कर रही है कि भाजपा सरकार के चार साल के कार्यकाल के दौरान 15 पत्रकारों की ह्त्या हो चुकी है, कई पत्रकारों को झूठे केस में फंसाने की कोशिश की गयी है...

वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पंत का विश्लेषण

आज नहीं तो कल ये तो होना ही था। जिस धार के साथ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी मास्टर स्ट्रोंक के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अति प्रचारित घोषणाओं और कार्यक्रमों की कलई खोल उन्हें बोल्ड आउट कर रहे थे उसे बर्दाश्त कर पाना ऐसे व्यक्ति के लिए असंभव था जो इस मुगालते में जी रहा हो कि वह सर्वगुण सम्पन्न और सर्वशक्तिमान है, कि वह लोकतंत्र का पहरुवा है और यह कि उसकी सोच और काम में कोई खोट नहीं निकाला जा सकता।

ऐसे में एपिसोड दर एपिसोड प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों की पोल खोलती मास्टर स्ट्रोक की रिपोर्ट्स मोदी जी के अहम् को चोट पहुँचाने के लिए काफी थीं। डर पैदा होने लगा था कि गोदी मीडिया और व्हाटस ऐप के माध्यम से अपरिपक्व आंकड़ों पर खड़ी की गयी सफलता की इमारत कहीं भरभरा के ढह न जाए।

संबंधित खबर : मास्टर स्ट्रोक आज से बंद, पुण्य प्रसून बाजपेयी ने छोड़ा एबीपी चैनल

लिहाजा शुरू कर दिया गया ऑपरेशन सेंसरशिप। पहले चैनल पर दवाब बनाया गया, लेकिन जब पत्रकारीय गरिमा की लाज रखते हुए एबीपी न्यूज़ चैनल के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर और पत्रकार एवं एंकर पुण्य प्रसून वाजपेयी ने सच का साथ छोड़ने से इंकार कर दिया तो सरकार के इशारे पर घर-घर टीवी कनेक्शन पहुँचाने वाली कंपनियों के नेटवर्क में गड़बड़ी पैदा की जाने लगी।

कार्यक्रम प्रसारित होने के समय के दौरान या तो टीवी स्क्रीन काली हो जाती या सिग्नल में गड़बड़ी पैदा होना लिखा आ जाता। बावजूद इसके दोनों पत्रकारों ने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करते हुए कार्यक्रम तैयार करना और उसे प्रसारित करना जारी रखा। लेकिन अक्सर असहिष्णुता दिखाने के आरोपों से घिरी मोदी सरकार इन पत्रकारों की सच को उजागर करने की हठधर्मिता को भला कैसे बर्दाश्त करती। लिहाजा उसने दोनों पत्रकारों की नौकरी ही खा ली।

आखिर इन पत्रकारों की ग़लती क्या थी? क्या यही कि आज के झूठ को सच के रूप में पेश करने के इस दौर में उन्होंने सच के साथ खड़े रहने का निर्णय लिया अथवा ये कि उन्होंने प्रधानमंत्री जी के मन की बात में कहे गए उस झूठ को उजागर करने का साहस दिखाया जिसमें मोदी जी ने छत्तीसगढ़ की महिला चंद्रमणि कौशिक और उसके समूह की आय दोगुनी होने की बात कही थी।

संबंधित खबर : एबीपी को पुण्य प्रसून का मास्टर स्ट्रोक दिखाना पड़ा महंगा, मोदी सरकार के दबाव में मैनेजिंग एडिटर को देना पड़ा इस्तीफा

इस कार्यक्रम से भाजपा, संघ और सरकार सभी नाराज़ थे। सरकार की नाराज़गी तो पुण्य प्रसून को तब भी झेलनी पड़ी थी जब आज तक में रहते हुए उन्होंने सरकार को प्रिय बाबा रामदेव से उनके प्रतिष्ठान में व्याप्त गड़बड़ियों के सबब सवाल पूछ लिया था। सरकार के कोपभाजन का शिकार तो पत्रकार अजित अंजुम को भी होना पड़ा था जब इंडिया टीवी में रहते हुए उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सच को उजागर करते हुए सवाल पूछ दिये थे।

सवाल पूछना उन्हें भारी पड़ा था। सरकार से सवाल पूछने के चलते ही एनडीटीवी के रवीश कुमार को मोदी के अंधभक्तों द्वारा ट्रोलिंग और धमकियों का शिकार होना पड़ता है। अब इन्हें कौन समझाए कि सवाल पूछना ही पत्रकारिता का सात्विक गुण और लोकतंत्र की आत्मा है। ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री इस गूढ़ मंत्र को जानते-समझते ना हों।

अगर ऐसा होता तो वे इंदिरा गाँधी द्वारा देश में आपातकाल लगाए जाने की सालगिरह के मौके पर 26 जून 2018 को सुबह 6 बज कर 49 सेकेण्ड पर यह ट्वीट नहीं करते, 'चलिए हम अपने लोकतान्त्रिक लोकाचार को और अधिक मजबूत करने के लिए हमेशा काम करें। लिखना, बहस करना, मंथन करना, सवाल पूछना हमारे लोकतंत्र के ऐसे महत्वपूर्ण पहलू हैं, जिन पर हमें गर्व है। कोई भी ताक़त कभी भी हमारे संविधान के मूल सिंद्धान्तों को कुचल नहीं सकती।'

तो फिर आदरणीय प्रधानमंत्री जी, आपके द्वारा घोषित योजनाओं की ज़मीनी हक़ीक़त दिखाने पर चैनल के ऊपर दबाव बना पत्रकारों की नौकरी खा जाना लोकतांत्रिक लोकाचार की किस श्रेणी में आता है?

अगर नौकरी लेनी ही थी तो उन अधिकारियों की ली होती जो चंद्रमणि कौशिक को आपसे झूठ बोलने का पाठ पढ़ा आये थे, उन अधिकारियों की ली होती, जो आपकी गुड बुक्स में आने के लिए झूठे आंकड़ों के सहारे आपके कार्यक्रमों की सफलता का ढोल खुद आपसे पिटवाते हैं या फिर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में आपके द्वारा बिठाये गए मंत्री रूपी उन चोबदारों की ली होती, जो आपको सही फीड बैक न देकर आपके स्तुतिगान में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री देखते हैं।

संबंधित खबर : पुण्य प्रसून के खुलासों से डरी मोदी सरकार, 9 बजते ही एबीपी चैनल दिखना हुआ बंद

जिन लोगों ने आँख खुली रख कर आपके चार साल के कार्यकाल की बारीकियों को देखा- समझा है, उन्हें इसका जवाब तुरंत मिल जाएगा क्योंकि आपकी खासियत है कि आप जो कहते हैं उसका उल्टा ही करते हैं। अपने भाषणों में भले ही आप लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आज़ादी और प्रेस की स्वतंत्रता की दुहाई देते हों, लेकिन जारी आंकड़ों की हक़ीक़त बयान कर रही है कि आपकी सरकार के चार साल के कार्यकाल के दौरान 15 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है, कई पत्रकारों को झूठे केस में फंसाने की कोशिश की गयी है।

आपकी पार्टी के अध्यक्ष के सुपुत्र की कमाई अचानक करोड़ों में बढ़ जाने की रिपोर्ट छापने पर वेबसाईट द वायर पर मानहानि का मुकदमा दायर कर उसे नाथने की कोशिश की जाती है, आपकी सरकार की आलोचना करने वाले अखबारों और चैनलों के विज्ञापन बंद कर दिए जाते हैं और उन पर सीबीआई की पड़ताल चालू कर दी जाती है। वहीं एक बिल ला कर सोशल मीडिया को भी नथने का असफल प्रयास किया जाता है।

क्या-क्या गिनाया जाये। प्रधानमंत्री जी, हरि अनंत, हरि कथा अनंता की तर्ज़ पर आपकी सरकार द्वारा मीडिया को नियंत्रित करने की अनेक गाथाएं हैं।

आपकी सरकार के मीडिया के प्रति नज़रिये का अक्स तो आपकी पार्टी के वीर सपूतों की धमकियों में भी देखा जा सकता है। आपको अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता और जम्मू-कश्मीर सरकार में मंत्री रह चुके लाल सिंह चौधरी का वो बयान तो याद होगा जिसमें उन्होंने पत्रकारों को धमकाते हुए कहा था कि वे अपनी हद में रहें वरना उनका भी हश्र राइज़िंग कश्मीर के सम्पादक शुजात बुख़ारी जैसा हो सकता है।

पढ़ें : पुण्य प्रसून वाजपेयी का वह सवाल जिसके पूछने पर रामदेव करने लगे थे ‘कपालभाति’

दरअसल प्रधानमंत्री जी आपकी मनोदशा परीलोक की कथा की उस राजकुमारी जैसी है जो शीशे में अपना मुंह नहीं देखना चाहती थी क्योंकि उसे अपनी हकीकत से रू—ब—रू होने का ख़तरा जो था।

Next Story

विविध