भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जानते हैं कि गौ आतंकियों को लेकर सरकार कितनी सीरियस है, इसलिए वह गिरफ्तारियों को कार्यवाही की तरह पेश कर शान बघारते हैं...
अजय प्रकाश
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से कल जब पत्रकारों ने गोवा में गौ गुंडों के मुतल्लिक सवाल पूछा तो अध्यक्ष ने तपाक से एक रेडीमेड और खूबसूरत जवाब पत्रकारों को पकड़ा दिया। अमित शाह ने कहा, 'क्या किसी मामले में गिरफ्तारी नहीं हुई है?'
इसे आप सवाल का एक माकूल जवाब कह सकते हैं! संपूर्ण जवाब की श्रेणी में भी डाल सकते हैं। ऐसा जवाब जिससे पता चलता है कि सरकार कार्यवाही करने में कोताही नहीं बरत रही और संविधान के उपबंधों के हिसाब से चल रही है। संविधान और कानून कहता है, अगर कोई अपराध करे तो जिम्मेदार संस्थाएं सबसे पहले मामले की तफ्शीस कर मुकदमा दर्ज करें।
इसलिए अपराध होने पर पीड़ित पक्ष सबसे ज्यादा मुकदमा दर्ज करने पर जोर देता है। मुकदमे के लिए धरना—प्रदर्शन, रोड जाम करता है, भूख हड़ताल और आत्महत्याएं तक करता है। पीड़ित के सहयोगी, नजदीकी, राजनीतिक पक्षकार और उनका जाति—समुदाय भी मुकदमा दर्ज करने की जीतोड़ मांग करता है। और फिर जैसे ही मुकदमा दर्ज हो जाता है, सभी शांत हो मान लेते हैं कि पुलिस को अपना काम करने दिया जाए। अब अदालत में सही—गलत का फैसला होगा और अपराधी को सजा मिलेगी।
सवाल है क्या यही सब सोचकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पत्रकारों को गौ गुंडों की गिरफ्तारियों पर आश्वस्त करते हैं? क्या वह चाहते हैं कि उनकी ही सरकार में, उनके ही कार्यकर्ता हत्या के जुर्म में फांसी चढ़ें, आजीवन कारावास झेलें। वो कार्यकर्ता जिन्होंने पार्टी को ऐतिहासिक जीत दिलाई है, जीत के लिए जिन्होंने रात—दिन एक किया है, विपक्षियों के लात—घूंसे खाए हैं और पारिवारिक मुश्किलें झेली हैं।
यह कैसे संभव है कि दंगा—फसाद, नरसंहार, सांप्रदायिकता, हिंदू श्रेष्ठता और जातीय दंभ वाले जिन मूल्यों—मान्यताओं, राजनीतिक समझदारियों के बूते जो संघी—भाजपाई नेता—मंत्री बने हैं, वह उन्हीं मूल्य—मान्यताओं वाले कार्यकर्ताओं को दंगाई करार दें, हत्यारा साबित करें और समाज विरोधी करार देकर जेलों में ठूंस दें।
नहीं होगा न ऐसा!!!
इसीलिए, सिर्फ इसीलिए अमित शाह पूछते हैं, 'गौ रक्षा के नाम पर मारे गए लोगों के किस मामले में गिरफ्तारी नहीं हुई है?'
अमित शाह हिंदू राष्ट्र की आकांक्षा में डूबे सिरफिरों की जमात में नरम दल और गरम दल का फर्क बनाए रखने के लिए गिरफ्तारी को कवच की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही के रूप में नहीं। वह जानते हैं कि आजतक किसी गौ गुंडे को किसी एक मामले में कोई सजा नहीं मिली है।
देश के प्रमुख मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉल सिविल लिबर्टिज की महासचिव कविता श्रीवास्तव के मुताबिक, 'मैंने कभी नहीं सुना कि किसी गौ रक्षा के नाम पर हत्या या गुंडई करने वालों को कभी कोई सजा मिली हो। दादरी के अखलाक जैसे चर्चित हत्याकांड में किसी को कोई सजा मिलेगी, इसमें मुझे संदेह है।'
गिरफ्तारी और मुकदमा दर्ज कर सरकार अपने कर्तव्य का इतिश्री ही नहीं कर रही, बल्कि गिरफ्तार हो रहे कार्यकर्ताओं का सटीक बचाव कर रही है, क्योंकि वह जानती है कि यह समाज के अपराधी नहीं पार्टी और विचारधारा के कर्मठ कार्यकर्ता हैं, जिनको सरफिरा बनाने में वर्षों की मेहनत लगी है, कई पीढ़ियां खप गयी हैं।
गिरफ्तार लोग हिंदू राष्ट्र बनाने की राह में दी जा रही कुर्बानी पसंद लोगों की वह जमात हैं, जिनकी गिरफ्तारियों के बाद उनकी रिहाई, जेल में सेवा पानी और देखरेख में भाजपा कार्यकर्ता और आरएसएस के लोग जुटते हैं। अपराधियों को गर्व का अनुभव कराते हैं और बताते हैं, 'साथी आपका यह त्याग आने वाले समय में हिंदू राष्ट्र के नींव में एक मजबूत ईंट का काम करेगा। आपकी कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी।'
वर्ष 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से गौ रक्षा के नाम पर करीब 2 दर्जन हत्याएं या मॉब लिंचिंग हो चुकी है। सबमें मुकदमे दर्ज हुए, गिरफ्तारियां भी हुई हैं और चार्जशीट भी दाखिल हुए हैं या होने की प्रक्रिया में हैं। पर सजा किसी एक मामले में नहीं हुई है। दो साल पहले हुए मंदसौर में गौ गुंडागर्दी मामले में तो पुलिस ने उसी के परिजनों को गिरफ्तार किया, जिसको मार दिया गया। बाद में लीपापोती के लिए हत्यारों पर मुकदमे दर्ज हुए, चार्जशीट दाखिल हुई, सब बरी हो गए पर कभी कोई सजा नहीं हुई। जबकि मंदसौर में मुस्लिम युवक को बुरी तरह मारते हुए वीडियो वायलर हुआ था।
दादरी के अखलाक हत्याकांड में भी किसी को सजा मिलेगी इसकी कोई दूर—दूर तक उम्मीद नहीं है, क्योंकि जांच एजेंसियां इसी में उलझी हुई हैं कि बीफ था या नहीं।
पीपुल्स यूनियन डेमोक्रेटिक राइट्स के वरिष्ठ सदस्य परमजीत बताते हैं, 'सजा इसलिए नहीं होती कि सरकार चाहती नहीं।अगर चाहती तो कार्यवाही से कौन रोक सकता है। सरकार चाहे जिसकी रही हो लेकिन मैंने कभी नहीं सुना कि आजतक किसी अपराधी को कोई सजा मिली हो, जबकि गौ रक्षा के नाम पर हत्या या मारपीट के सरेआम वीडियो आरोपी खुद वायरल करते हैं।'
ईद का बाजार कर दिल्ली से लौट रहे और ट्रेन में मारे गए जुनैद के मामले में भी लीपापोती शुरू हो गयी है। रोज जातीय पंचायतें हो रही हैं और तरह—तरह के भ्रम फैलाने वाली जानकारियां माहौल में तैरने लगी हैं। यह जानकारियां अगले कुछ दिनों पब्लिक के बीच एक मत बनाएंगी जिसमें यह चर्चा आम हो जाएगी कि जुनैद की हत्या कोई गलत नहीं थी, तर्क भी हत्या को जायज ठहराने वाले मिल जाएंगे।
ऐसे में समाज के जिन तबकों को लग रहा है कि गौ गुंडों की गुंडागर्दी पर रोक लगे, उनको सरकारी बहानेबाजी के नए तरीके 'गिरफ्तारी और मुकदमा' से आगे सोचना होगा, क्योंकि जो आपकी निगाह में अपराधी हैं, वह सरकार और सत्ताधारी पार्टी की गिनाह में हिंदू राष्ट्र निर्माण में लगे सिपाही हैं। उनको लगता है कि वह कुर्बानी दे रहे हैं, अपराध नहीं कर रहे।