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संस्कृति

'जाति का विनाश' में पढ़िए आंबेडकर का वह भाषण जिसे कभी वो दे नहीं पाए

Prema Negi
24 July 2018 11:04 AM IST
जाति का विनाश में पढ़िए आंबेडकर का वह भाषण जिसे कभी वो दे नहीं पाए
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किताब में वर्ण-जाति और हिंदू धर्म के बारे में डॉ. आंबेडकर और गांधी के बीच की तीखी बहस से युक्त लेख भी समाहित हैं। इसके साथ ही वे पत्राचार भी समाहित हैं, जो जात-पात तोड़क मंडल और आंबेडकर के बीच हुआ था...

राजन कुमार

‘जाति का विनाश’ डॉ. आंबेडकर की किताब ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ का हिंदी अनुवाद है। यह अनुवाद जाने माने दिवंगत पत्रकार-लेखक राजकिशोर जी ने किया है। इस किताब में डॉ. आंबेडकर के प्रथम शोध-पत्र ‘कास्ट इन इंडिया : देयर मैकेनिज्म, जेनेसिस एंड डवलपमेंट’ का भी हिंदी अनुवाद ‘भारत में जातियां : उनका तंत्र, उत्पत्ति और विकास’ शीर्षक से समाहित कर लिया गया है।

इस किताब की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इसमें उन व्यक्तियों, संस्थाओं, स्थलों, विद्वानों, ऐतिहासिक घटनाओं, उद्धरणों और धर्मग्रंथों के बारें में संदर्भ और टिप्पणियां भी हैं, जिनका उल्लेख डॉ. आंबेडकर ने किया है। संदर्भ और टिप्पणियों को डॉ. सिद्धार्थ ने तैयार किया है।

इसमें वर्ण-जाति और हिंदू धर्म के बारे में डॉ. आंबेडकर और गांधी के बीच की तीखी बहस से युक्त लेख भी समाहित हैं। इसके साथ ही वे पत्राचार भी समाहित हैं, जो जात-पात तोड़क मंडल और आंबेडकर के बीच हुआ था।

‘जाति का विनाश’ किताब मूलत: डॉ. आंबेडकर द्वारा नहीं दिये जा सके भाषण का संपादित अंश है। यह भाषण उन्होंने जात-पात तोड़क मंडल के सम्मेलन में देने के लिए तैयार किया था, लेकिन उन्हें यह भाषण देने से रोक दिया गया। आयोजक भाषण की कुछ बातों से असहमत थे और वे चाहते थे कि आंबेडकर उन हि्स्सों को भाषण से निकाल दें, लेकिन आंबेडकर इसके लिए तैयार नहीं हुए और सम्मेलन रद्द कर दिया गया।

किताब का दूसरा भाग है– ‘भारत में जातियां : उनका तंत्र, उत्पत्ति और विकास’, जो डॉ. आंबेडकर का शोधपत्र है। इसे उन्होंने 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया था।

इस किताब की विशेषता इस किताब की मुख्य विशेषता इसका मुकम्मल अनुवाद और संदर्भ-टिप्पणियां हैं। डॉ. आंबेडकर के किताब ‘एनिहिलेश ऑफ कॉस्ट’ का भारत के लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। हिंदी में भी इसके कई अनुवाद छोटी पुस्तिका के रूप में हुए हैं, जो अधुरे हैं। लेकिन इस किताब में राजकिशोर जी ने इस कमी को दूर कर दिया है।

इसमें जाति पर डॉ. आंबेडकर का दूसरा शोध-पत्र ‘भारत में जातियां : उनका तंत्र, उत्पत्ति और विकास’ जुड़ जाने से यह और मुकम्मल बन जाती है। किताब की संदर्भ-टिप्पणियां इसके हर सूक्ष्म पहलू को सामने लाते हैं, जिनके बारे में अभी तक शायद ही कोई सोचा हो। इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह किताब जाति-व्यवस्था को खत्म करने की महत्वपूर्ण हथियार हो सकती है।

इसे क्यों पढ़ना चाहिए

इस किताब में डॉ. आंबेडकर ने वर्ण-जाति व्यवस्था क्या है, इसके लक्षण क्या हैं, इसकी उत्पत्ति कैसे हुई, क्या दुनिया के किसी अन्य देश में इस तरह की कोई व्यवस्था थी? जाति क्यों अतार्किक, विवेकहीन और अन्यायपूर्ण व्यवस्था है, जाति का हिंदू धर्म और धर्म ग्रंथों से क्या रिश्ता है, जाति के पक्ष में जो तर्क दिये जाते रहे हैं, क्यों वे तर्क तथ्यहीन और असंगत हैं? समता, स्वतंत्रता और बंधुता पर आधारित समाज के निर्माण के लिए वर्ण-जाति व्यवस्था का खात्मा क्यों जरूरी है? इन प्रश्नों का जवाब दिया है।

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