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हरियाणा विधानसभा की हार का दिल्ली पर न पड़े असर, इसलिए केजरीवाल नहीं जाएंगे हरियाणा प्रचार में ?
हरियाणा विधानसभा चुनाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल न तो प्रचार करने गए और न ही जारी की कोई अपील
प्रदेश के आप कार्यकर्ताओं ने लगाया आरोप कि पांच साल से हम कर रहे थे इस चुनाव के लिए जीतोड़ मेहनत, मगर हमारी कोई कदर नहीं है दिल्ली में बैठे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को
हरियाणा से स्वतंत्र कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार। 2019 के लोकसभा चुनाव को अभी चार महीने का समय भी नहीं हुआ है, जब आम आदमी पार्टी हरियाणा में केजरीवाल को लेकर 'हरियाणा का लाल केजरीवाल' नारे के साथ चुनाव प्रचार में उतरी थी। लोकसभा में पार्टी का हरियाणा ही नहीं देश में कैसा हश्र हुआ ये छुपी हुई बात नहीं है।
अब इसी महीने 21 अक्टूबर को हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग होनी है। पार्टी ने अपने अपने कैंडिडेट्स मैदान में उतार दिए हैं। प्रदेश में 90 सीटें हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी बामुश्किल 50 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
इस चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से अभी तक एक भी नेता हरियाणा विधानसभा चुनाव में नहीं उतरा है। खुद अरविंद केजरीवाल जो हरियाणा के भिवानी जिले से हैं, वो भी अभी तक एक भी बार चुनाव प्रचार या फिर अपने पार्टी कार्यकर्ताओं—नेताओं का मनोबल बढ़ाने वहां नहीं गये हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो केजरीवाल ने हरियाणा में चुनाव प्रचार करने से साफ इंकार कर दिया है।
इसके पीछे वजह बताई जा रही है कि कुछ समय बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और वे हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव की हार का ठीकरा केजरीवाल अपने ऊपर नहीं लेना चाहते हैं, क्योंकि हरियाणा में पार्टी की हालत बहुत बुरी बतायी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी की हालत लोकसभा से भी बुरी होने वाली है। इतना ही नही आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविन्द केजरीवाल ने एक अपील तक जारी नहीं की है कि हरियाणा में हो रहे विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को वोट दें।
अरविंद केजरीवाल तो छोड़िये उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और संजय सिंह भी हरियाणा में अभी तक चुनाव प्रचार में नहीं उतरे हैं।
वर्ष 2014 में भिवानी से आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके ललित अग्रवाल का कहना है कि जब पार्टी कमजोर होती है तो कार्यकर्ताओं को चुनाव में झोंक देती है और जब मजबूत स्थिति में होती है टिकटों का सौदा किया जाता है। आप पार्टी के प्रदेश स्तरीय संगठन में नेता रहे एक नेता ने कहा यहां चुनाव लड़कर पार्टी दिल्ली में होने वाले चुनाव के लिए मजदूर तैयार कर रही है, ताकि दिल्ली में विधानसभा चुनाव के दौरान उनको चुनाव प्रचार में झोंका जा सके।
आप पार्टी के एक अन्य नेता रहे वेदपाल ने बताया कि आम आदमी पार्टी हरियाणा के चुनाव को लेकर कितनी गंभीर है इससे पता चल जाता है कि पार्टी का एक नेता अनूप सिंह चानौत जो हिसार लोकसभा का अध्यक्ष हैं और हिसार में बरवाला विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे, उनका पर्चा इसलिए रदद हो गया क्योंकि पर्चा भरते हुए उन्होंने केवल 3 प्रस्तावक बनाये, जबकि एक क्षेत्रीय पार्टी के कैंडिडेट के 10 प्रस्तावक बनाये जाने होते हैं। जो पार्टी कानूनी दांवपेंच की बारीकियां समझती हो, दिल्ली में जिसकी सरकार हो और जिसके पास वकीलों की बड़ी फ़ौज हो, उस पार्टी के कैंडिडेट का पर्चा जरूरी कागजात पूरे न होने की वजह से रद्द होने से बड़ी विडम्बना आखिर क्या हो सकती है।
हरियाणा में राजनीति की समझ रखने वाले जानकार कहते हैं कि आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव के समय हरियाणा में अपना बेस बताकर कांग्रेस से दिल्ली में गठबंधन के बदले हरियाणा में 2 सीट मांग रही थी, जब रिजल्ट आया तो हकीकत सबके सामने आ गयी। वर्तमान में पार्टी का मुकाबला कभी आम आदमी पार्टी के थिंक टैंक रहे योगेंद्र यादव की पार्टी स्वराज के साथ है।
खैर, दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार दोबारा आएगी की नहीं, यह कुछ महीनों में होने वाले दिल्ली के विधानसभा के चुनाव के बाद पता चल जाएगा, मगर फिलहाल के हालातों में हरियाणा की जमीन भी आम आदमी पार्टी से पूरी तरह खिसकती नजर आ रही है।