Begin typing your search above and press return to search.
आंदोलन

पाटीदार शहीद यात्रा पर सियासी हमला बना जानलेवा, अगुवा नेताओं को डराया बंदूक दिखाकर

Prema Negi
4 July 2018 8:31 PM IST
पाटीदार शहीद यात्रा पर सियासी हमला बना जानलेवा, अगुवा नेताओं को डराया बंदूक दिखाकर
x

पहले सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और संघ के आँखों की किरकिरी बना हुआ था पाटीदार आंदोलन, अब पाटीदार शहीद यात्रा से सबसे ज्यादा दिक्कत हार्दिक पटेल को, क्योंकि इस यात्रा को मिल रहे जन समर्थन से अन्य पाटीदार नेताओं के अस्तित्व के लिए है बड़ी चुनौती...

जनज्वार टीम, गुजरात। पिछले महीने 24 जून से मेहसाणा जिले के ऊंझा से पाटीदार समाज की कुल देवी उमिया माता के दरबार से पूरे गुजरात में 35 दिनों की 4000 किमी तक चलने वाली ‘पाटीदार शहीद यात्रा’ की शुरुआत हुई। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य आंदोलन में शहीद हुए पाटीदार भाइयों के सम्मान में एवं पाटीदार समाज के ऊपर गोलीबारी करने वाले पुलिसकर्मियों व करवाने वाले अधिकारियों को कानूनी रूप से दण्डित करना है और अब तक पाटीदार आन्दोलन में मारें गए 14 लोगों के परिवार के लोगों कानूनी रूप से न्याय दिलाना तथा समाज के लोगों को अपने संवैधानिक अधिकारों को पुनः जागृत करना है।

वैसे यह यात्रा बड़े जोर-शोर एवं उत्साहपूर्वक शुरू हुई और समाज के लोगों का पहले दिन से ही भरपूर सहयोग मिलना शुरू हो गया था, लेकिन जैसे एक एक दिन करके यात्रा आगे बढ़ने लगी वैसे-वैसे यात्रा को अपार जनसमूह उमड़ कर समर्थन आने लगा। जब यह यात्रा ऊंझा से मेहसाणा शहर फिर विसनगर होते हुए यात्रा अपने 7वें दिन सूरत शहर पहुंची।

उस दिन सूरत में ‘पाटीदार अमानत आन्दोलन’ के नेताओं पर खासतौर ‘शहीद यात्रा आयोजक समिति’ के कोर कमेटी के लोगों के ऊपर मुख्य रूप से जतिन पटेल, नीलेशभाई अरवाडीया और दिलीप सांबवा को सामने से जान से मारने की धमकी मिली। उससे पहले इन लोगों को फोन पर लगातार धमकी मिल रही थी, लेकिन उससे पहले इन धमकियों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी।

जब जनज्वार की गुजरात टीम ने इस पूरी घटना की तह जाने के लिए शहीद यात्रा समिति के लोगों से बात की, तो पता चला कि जब यह यात्रा मुख्य रूप से शहर के बीचोंबीच पहुंची तो वहाँ पर कई हज़ार भीड़ में यात्रा के स्वागत में लोग पहुंचे। उस समय जय सरदार और जय पाटीदार के नारों से मानों सारा सूरत शहर गूँज रहा था, तभी भारी भीड का फ़ायदा उठाकार कई दर्जन लोग ने भीड़ में आन्दोलन की टोपी लगाकर घुसे और आम से लोगों से मारपीट शुरू कर दी और जब तक लोग कुछ समझ पाते, तब तक उसमें से कुछ असामाजिक तत्व शहीद रथ तक पहुंच गए।

मोदी जी अपनों के मरने का दुख वही जान सकता है जिसके घर से 2-2 अर्थियां एक साथ उठी हों

सबसे पहले शहीद यात्रा समिति की अगुवाई कर रहे दिलीप सांबवा को पिस्टल सटाकर जान से मारने की धमकी देते हुए कहाँ तुम लोग समाज की ठेकेदारी लेना बंद कर दो और यात्रा तुरंत रोक दो अब यह यात्रा और आगे नहीं बढ़नी चाहिए, नहीं तो तुम लोग समझ लेना आगे और क्या हो सकता है।

शहीद यात्रा आयोजक समिति के कर्ता-धर्ता रहे नीलेश अरवाड़ीया के साथ धक्का-मुक्की करते कालर पकड़कर नीचे गिरा दिया और जतिन पटेल से यहाँ तक कहाँ आज रात को तुम लोग कहाँ रुके हो, हमें सब पता है अगर यात्रा नहीं रुकी तो कल सूरज नहीं देख पाओगे।

इस बिगड़ते हालात और शहीद यात्रा के सुरक्षा कारणों से अस्थाई रूप से दो दिनों के लिए स्थगित कर दी गयी। शहीद यात्रा आयोजक समिति के लोग पुलिस स्टेशन पहुँच कर पूरी घटना को लेकर अज्ञात असामाजिक तत्वों के खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज कराई और पुलिस विभाग यात्रा के दौरान से संवेदनशील एवं अधिक भीड़ वाली जगहों पर अधिक सुरक्षा बल की माँग की गयी और आयोजक समिति को लोगों के साथ पूरी यात्रा के दौरान विशेष सुरक्षा दस्तें की भी माँग की।

शहीद यात्रा पर गहराते संकट के बादल आज सुबह छंट गए, फिर दो दिनों तक रुकी हुई इस यात्रा की शुरुआत आज फिर से अपने 10वें दिन यानी 4 जुलाई से सूरत के उसी जगह शुरू हो चुकी है। लेकिन सवाल यह उठता है कि ये जानलेवा हमला कौन और क्यों करवाया है? इसके पीछे किन-किन लोगों का हाथ है? जब हमने इसकी तहकीकात करना शुरू किया तो पता चला की इस शहीद यात्रा को मिल रहा जन-समर्थन गुजरात की राजनीति में नया सियासी व्याकरण गढ़ना शुरू कर चुका था।

यह आन्दोलन शुरू से ही सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और संघ के आँखों की किरकिरी बना हुआ था, जिसके दमन के लिए पहले ही जनरल डायर की नीति अपनाते हुए पुलिस बल के द्वारा उग्र होते पाटीदार अमानत आन्दोलन पर गोलियाँ और लाठियाँ चलवाई थीं और नेतृत्व कर रही टीम पर राजद्रोह जैसे संगीन मुकदमे दर्ज किये।

लेकिन सियासी हलकों, सोशल मीडिया और कुछ गुजराती मीडिया की खबरों से छनकर आ रहीं रिपोर्टों की मानें, तो यह पाटीदार शहीद यात्रा न तो भाजपा के और न ही कांग्रेस के पाटीदार नेताओं को रास आ रही थी। और सबसे ज्यादा दिक्कत थी अब तक पाटीदार अमानत आन्दोलन के एकमात्र चेहरा रहे हार्दिक पटेल को, क्योंकि इस यात्रा को मिल रहे जन समर्थन से अन्य सभी पाटीदार नेताओं की सियासी जमीन दरकना शुरू हो गया था और भविष्य में उनका अपना अस्तित्व बचाना भी अब एक बड़ी चुनौती नजर आने लगा।

लेकिन आज भी सियासी अफवाहों के बाजार में हार्दिक पटेल का नाम सबसे तेजी से उछाला जा रहा है, जिसमें से माना जा रहा है कि जो शहीद यात्रा पर हमला करने वाले हार्दिक पटेल की टीम के लोग बताए जा रहे हैं, जिनमें से उनके कुछ खास लोग भी इस हमले में शामिल हैं।

समझना यह जरूरी हो जाता है कि आखिर हार्दिक पटेल को इस यात्रा से क्या दिक्कत हो सकती है, तो उसके लिए थोड़ा और तह में जाना जरूरी हो जाता है कि जब से हार्दिक को पूरे देश की मीडिया ने पाटीदार अमानत आन्दोलन का चेहरा घोषित किया तब से अमानत आन्दोलन के भीतर फूट पड़ गयी थी और एक-एक करके लोग हार्दिक से दूर होते गए और हार्दिक ने भी किसी भी तरह की असहमतियों को ख़ारिज करते हुए कोर कमेटी के लोगों को नजरअंदाज किया, जबकि पाटीदार समाज को न्याय दिलाने की बजाय सिर्फ अपना चेहरा चमकाने में बखूबी से लगे हुए थे. अमानत और शहीदों को न्याय दिलाना तो दूर, ये तो अब उनके पोलिटिकल सिलेबस से बाहर हो चुका था।

जब ‘पाटीदार शहीद यात्रा की शुरुआत हुई और इस ‘शहीद यात्रा समिति’ ने हार्दिक पटेल को नजरअंदाज कर दिया और जबकि हार्दिक अपनी टीम के साथ आभासी रूप से यात्रा में शामिल भी हुए तो उनकी नीयत इस शहीद यात्रा को हाईजैक करने की कोशिश की भरपूर कोशिश की जिसमें वे सफ़ल नहीं हुए।

अब यह जानना जरुरी है कि ये नजरअंदाज करने वाले लोग कोई और नहीं, बल्कि आज से तीन साल पहले पाटीदार अमानत आन्दोलन की रीढ़ थे, जिनको कभी हार्दिक ने असहमतियों के चलते नजरअंदाज कर दिया था।

जो न तो विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के तराजू में तौले गए और न ही कांग्रेस का दामन थामकर अपना गुजरात विधानसभा भवन में पहुँचने की ख्वाहिश पाली। ये वही लोग थे जिनके नाम पर ग्राउंड की परमिशन लेकर पाटीदार अमानत आन्दोलन की 25 अगस्त, 2015 की अहमदाबाद के GMDC मैदान की ऐतिहासिक रैली हुई थी और जिस रैली के माध्यम से देश की मीडिया ने एक व्यक्ति को पूरे समाज का नेता बता दिया गया।

आज भी उस समय अमानत आन्दोलन की कोर कमेटी से जुड़े कई लोगों का मानना है कि “व्यक्ति समाज से बड़ा नहीं हो सकता और आज पाटीदार समाज का दुर्भाग्य है कि एक व्यक्ति समाज से भी बड़ा हो गया था। आज भी पूरे देश का आवाम को झूठा भ्रम है कि पाटीदार अमानत आन्दोलन मतलब सिर्फ हार्दिक पटेल है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। अब पूरा समाज समझ चुका है कि पाटीदार समाज नेतृत्व उसे ही देगा जो उसके असल सवाल और मुद्दों को लेकर जमीन पर संघर्ष करेगा और उनके न्याय की न्याय और हक़ की लड़ाई को जारी रखेगा।

यही मुख्य वजह कि आज हार्दिक पटेल आज अपने ही समाज की तरफ से चल रही शहीद यात्रा से पूरी तरह से बेदखल हो चुके हैं और उनकी ‘पाटीदार अमानत’ के नाम पर चलने वाली सियासी जमीन लगातार खिसकती जा रही है।

तो दूसरी तरफ पाटीदार समाज को गुजरात की राजनीति में जतिन पटेल, नीलेश अरवाडीया और दिलीप सांबवा जैसे नयी लीडरशिप एक लोकतांत्रिक आन्दोलन के माध्यम से तेजी से उभर चुकी है, जो अब पाटीदार समाज की न्याय और हक़ की लड़ाई पुरजोर तरीके से लड़ती नजर आ रही है। आज पाटीदार समाज इन तेजी से उभरते चेहरों को फूल-मालाओं और तिलक से जगह-जगह स्वागत कर रहा है।

Next Story

विविध