आतंकी होने के आरोप में 14 साल जेल में रहा अज़ीज, अब निर्दोष कहकर अदालत ने भेजा कश्मीर
न्याय की यह स्थिति साबित करती है कि गरीबों के पास अदालतों और कानून पर भरोसा करने की उम्मीद बहुत कम बचती है? यहां सवाल सिर्फ पुलिस की कार्यशैली का नहीं है बल्कि अदालत की प्रक्रिया का भी है कि किसी को निर्दोष समझने में उसे 14 का लग जाते हैं...
मोहम्मद अज़ीज़ को बिना अपराध 14 साल जेल में रहने के बाद 'दोषमुक्त' कर इलाहाबाद के नैनी जेल से रिहा करके भेजा गया कश्मीर, प्रयागराज की स्पेशल कोर्ट ने 4 को अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई...
इलाहाबाद से जेपी सिंह की रिपोर्ट
कहावत है कि गेहूं के साथ घुन पिसता है। यह कहावत उत्तरप्रदेश के अयोध्या में 2005 में हुए आतंकी हमले में गिरफ्तार जम्मू-कश्मीर के पुंछ में पब्लिक इंजिनियरिंग डिविजन का कर्मचारी मोहम्मद अजीज पर चरितार्थ हुई है जो 14 साल से इस मामले में बिना सबूत जेल में रहा। मोहम्मद अजीज का कसूर सिर्फ इतना था कि हमले में आतंकियों की मदद करने वालों में से एक ने जो सिर्फ कार्ड खरीदा था, उसके एप्लिकेशन फॉर्म में सत्यापन वाले कॉलम में उसका नाम लिखा था। कस्टमर एप्लीकेशन फॉर्म की फोटोकॉपी में न ही अजीज के दस्तखत हैं, न ही टेलीकॉम कंपनी की मुहर है और न ही कोई आइडेंटिफिकेशन नंबर।
अयोध्या आतंकी हमले की सुनवाई कर रही विशेष अदालत ने 18 जून को सुनाये गए अपने फैसले में अजीज को दोषमुक्त कर दिया है। अदालत ने अजीज को नैनी सेंट्रल जेल से रिहाई का आदेश देते हुए यूपी पुलिस पर भी सवाल उठाए हैं। अज़ीज़ को नैनी जेल से रिहा करके कश्मीर भेज दिया गया है।
विशेष अदालत ने कहा है कि अजीज ने आतंकी हमले में किसी भी तरह से आतंकियों की मदद नहीं की थी। अजीज ने ना ही आतंकी हमले में किसी तरह की साजिश रची थी और ना ही आतंकियों की ओर से खरीदे गए सिम का उसने इस्तेमाल किया।अभियोजन पक्ष भी ये साबित नहीं कर पाया कि अजीज ने आतंकी हमले में किसी तरह की मदद की थी।
उत्तरप्रदेश की पुलिस ने दोषी ठहराए गए मोहम्मद नसीम के खरीदे गए सिम के आधार पर अजीज को कटघरे में खड़ा किया था। सिम के कस्टमर एप्लीकेशन फॉर्म में सत्यापन के तौर पर दो लोगों के नाम थे,मोहम्मद अजीज और मोहम्मद स्वालेह। इस सिम का इस्तेमाल मोहम्मद नसीम ने अयोध्या हमले में मारे गए आतंकियों से संपर्क करने के लिए किया था। अदालत में कस्टमर एप्लीकेशन फॉर्म की फोटोकॉपी को सबूत के तौर पर पेश किया गया था। लेकिन उस फॉर्म में न ही अजीज के सिग्नेचर है, न ही टेलीकॉम कंपनी की मुहर है और न ही कोई आइडेंटिफिकेशन नंबर।
विशेष अदालत ने पुलिस से पूछा कि आखिरी किस तर्क के आधार पर अजीज को आरोपी बनाया गया। अदालतने ये भी पूछा कि जिस तर्क के आधार पर अजीज को आरोपी बनाया, उस आधार पर एप्लीकेशन फॉर्म को सत्यापन करने वाले दूसरे शख्स को आरोपी क्यों नहीं बनाया गया।इसका संतोषजनक जवाब अभियोजन पक्ष नहीं दे सका। न ही अजीज का आतंकी साजिश में कोई किरदार था और न ही उसने नसीम द्वारा खरीदे गए सिम का इस्तेमाल किया था। अजीज मारे गए आतंकियों में से किसी के भी संपर्क में नहीं था और अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि उसने आतंकियों की मदद की थी।
वर्ष 2005 में अयोध्या आतंकी हमले के सभी आतंकियों को मार गिराया गया था। 2005 में हुए अयोध्या आतंकी हमले में प्रयागराज की स्पेशल कोर्ट ने 4 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जबकि एक अज़ीज़ को बरी कर दिया गया। अदालत ने अपने आदेश में आतंकियों की मदद करने वाले चार लोगों को दोषी ठहराया है जो हमला करने वाले आतंकियों से संपर्क में थे। उन्होंने जम्मू से अलीगढ़ और वहां से अयोध्या तक हथियार ट्रांसपोर्ट करने के लिए आतंकियों की मदद की थी। फैसले में कहा गया है कि मारे गए आतंकियों में से एक ने दोषी डॉक्टर मोहम्मद इरफान को बताया था कि वे बाबरी मस्जिद विध्वंस का बदला चाहते हैं। उसने बाबरी विध्वंस की तुलना मां की हत्या की थी।
गौरतलब है की अयोध्या आतंकी हमले में शामिल पांच आतंकवादी मौके पर ही मारे गए थे, जबकि साजिश में शामिल छह आतंकी बाद में अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गए थे।अयोध्या आतंकी हमले की घटना का पर्दाफाश एक मोबाइल फोन से हुआ। हमले में मारे गए एक आतंकी की जेब से मिले नोकिया मोबाइल सेट के आईईएमआई नंबर के सर्विलांस से आतंकियों और साजिशकर्ताओं के बीच हुई बातचीत की कड़ियों आपस में जुड़ती चली गई। आतंकियों के मोबाइल में जिस सिम का इस्तेमाल किया गया था उसी सिम का इस्तेमाल डा. इरफान के मोबाइल सेट से भी हुआ था। आतंकी के मोबाइल में इस्तेमाल किए गए नंबरों से यूपी पुलिस साजिशकर्ताओं को गिरफ्तार करने में सफल रही।