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संस्कृति

बनारस में विद्यार्थी परिषद की गुंडागर्दी, नहीं होने दिया किसानों पर कार्यक्रम 

Prema Negi
30 Sep 2018 7:52 AM GMT
बनारस में विद्यार्थी परिषद की गुंडागर्दी, नहीं होने दिया किसानों पर कार्यक्रम 
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'गांव के लोग' पत्रिका की ओर से था कार्यक्रम, जिसके खिलाफ गाजीपुर महाविद्यालय के शिक्षक मनोज कुमार सिंह मौर्य ने किया दुष्प्रचार, विश्व हिंदू परिषद और विद्यार्थी परिषद के लोगों को लिखी भड़काउ चिट्ठी, पत्रिका के संपादक को बताया देशद्रोही और माओवादी

सवाल यह कि कार्यक्रम में बाधा डाल रहे उपद्रवी क्या मनोज कुमार सिंह मौर्य के उकसावे पर किसान केंद्रित कार्यक्रम को बता रहे थे नक्सलियों-माओवादियों का या फिर था उनका कोई संघी एजेंडा

सुशील मानव की रिपोर्ट

जनज्वार। 28 सितंबर 2018 को 'गांव के लोग' पत्रिका एवं उदय प्रताप महाविद्यालय, वाराणसी के हिन्दी विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित और 'साम्राज्यवादी बाज़ारवाद के दौर में भारतीय किसान और अतीत के निशान' विषय पर केन्द्रित विचार-गोष्ठी के उद्घाटन सत्र में भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी के तथा कुछ अन्य अज्ञात गुण्डों द्वारा जमकर उपद्रव करके कार्यक्रम को नहीं होने दिया।

यह आयोजन प्रख्यात कथाकार और इतिहासकार सुभाष चन्द्र कुशवाहा की चर्चित पुस्तक "अवध का किसान विद्रोह" के सन्दर्भ में था और इसके लिये बाकायदा महाविद्यालय के प्राचार्य से पूर्व में अनुमति ली गयी थी और महाविद्यालय का हिन्दी विभाग स्वयं इसका सह-आयोजक भी था। आयोजन शुरु होते ही भगवा गमछा वाले कुछ छात्र आकर शोर -शराबा करने लगे और उन्होंने माइक दूर हटा दिया।

गांव के लोग पत्रिका के संपादक रामजी यादव ने जनज्वार को विस्तार से बताया कि असल में इस कार्यक्रम की रूपरेखा और जगह तय हो चुकी तो कार्यक्रम में भागीदार सुभाष चन्द्र कुशवाहा ने बनारस और आसपास के कुछ लोगों के फोन नंबर दिए। इनमें गाज़ीपुर डिग्री कॉलेज के अध्यापक मनोज कुमार सिंह का भी नम्बर था। उनसे फोन पर बात करने के बाद जब मैंने निमंत्रण पत्र व्हाट्सएप से भेजा तब उनका फोन आया और उन्होंने आयोजकों में शामिल गोकुल दलित के नाम पर ऐतराज जताया।

पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले शिक्षक मनोज कुमार मौर्य के ऐतराज को लेकर रामजी यादव बताते हैं, 'मैंने कहा मैं गोकुल को निजी रूप से जानता हूं और गोकुल 'गांव के लोग' पत्रिका के प्रबंध संपादक हैं। आपका कोई वैचारिक विरोध हो या गोकुल के खिलाफ कोई आरोप हो तो मुझे बताइए। तब उन्होंने कुछ नहीं बताया और कहने लगे कि गोकुल ट्रैवल एजेंट हैं और सुभाष सर बहुत ऊंचे स्तर के बुद्धिजीवी हैं। दोनों में कोई तालमेल नहीं है, इसलिए मैं कार्यक्रम में शामिल नहीं होऊंगा। मैंने कहा आप स्वतंत्र हैं। फिर भी मुझे लगता है आपके निजी झगड़े या खुन्नस से इस सामाजिक मुद्दों वाले कार्यक्रम का कोई लेना देना नहीं है। इस पर वे भड़क गए और कहा आप कार्यक्रम नहीं कर पाएंगे।'

कार्यक्रम में हुई गुंडागर्दी की सुई तब और मनोज कुमार सिंह की ओर गहरा गई जब उसी रात गोकुल दलित ने रामजी यादव को बताया कि बनारस के कुछ लोगों को फोन करके मनोज कुमार सिंह मौर्य ने कहा कि रामजी यादव ने मुझे जान से मारने की धमकी दी है।

बकौल रामजी यादव, 'मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। और मनोज खुलकर सामने से इसके विरोध में आए भी नहीं। लेकिन कार्यक्रम को असफल बनाने के लिए यूपी कॉलेज के अध्यापक हिंदी विभाग के डॉ गोरखनाथ को चिट्ठी लिखकर हमारे राष्ट्रद्रोही और माओवादी होने का प्रचार किया। बकौल गोरखनाथ चिट्ठियां सारे देश के संगठनों को भेजी गई थीं।'

रामजी यादव कहते हैं, 'सुभाष चन्द्र कुशवाहा ने बताया कि वे मनोज कुमार सिंह से कभी नहीं मिले, लेकिन उनकी रुकी हुई तनख्वाह दिलवाने में पैरवी की। सुभाष चन्द्र कुशवाहा ने मनोज कुमार सिंह को एक चरित्र प्रमाण पत्र भी दिया जो उनके फेसबुक वाल पर मिल सकता है।

मंच पर मौज़ूद मुख्य वक्ता और इतिहासकार प्रोफेसर कपिल कुमार ने उग्र छात्रों की भीड़ को यह समझाने की कोशिश भी की कि आयोजन की पहले अनुमति ली गयी थी, पर वे नहीं मान रहे थे। उन्होंने आयोजकों और आमंत्रित वक्ताओं को लक्ष्य कर जाति से सम्बंधित भद्दी टिप्पणियां कीं और कहा कि यहां कोई प्राचार्य नहीं है और वे किसी की परवाह नहीं करते।

हंगामे के बाद जब पुलिस आयी तो उसने भी उत्पातियों की धर पकड़ करके कार्यक्रम को सुचारू रूप से संपन्न करवाने के बजाय आयोजकों से ही कार्यक्रम बंद करने के लिये कहा। इससे पूरे मामले में पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध हो जाती है।

कार्यक्रम के अध्यक्ष, सुप्रसिद्ध इतिहासकार और उदय प्रताप कॉलेज इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ महेंद्र प्रताप ने कार्यक्रम पर हमले के खिलाफ प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'निश्चय ही यह दुर्भाग्यपूर्ण, निंदनीय और शर्मनाक घटना है। अभिव्यक्ति की आजादी सबको है। कार्यक्रम की अनुमति कॉलेज के प्राचार्य ने दी थी और हिंदी विभाग सह आयोजक था। अगर छात्रों को आपत्ति थी तो प्राचार्य से अनुमति न देने का अनुरोध करना चाहिए था। मेरी दृष्टि में आयोजन में दलित/पिछड़े बुद्धिजीवियों की उपस्थिति 'बाबू साहब' छात्र नेताओं को पसंद नहीं थी। कुल मिलाकर घटना निंदनीय और लज्जाजनक थी जिसने प्रतिष्ठित कॉलेज को शर्मसार कर दिया।'

यह कार्यक्रम जिनकी किताब पर आयोजित था, उसके लेखक सुभाष चंद्र कुशवाहा ने कहा, 'हम तो दंग रह गये एक बार में तो समझ में ही नहीं आया कि क्या हो रहा है ये सब। इतिहास की किताब पर क्यों हमला किया जा रहा है। हम तो साहित्यकार लोग हैं, पढ़ना लिखना हमारा काम है हम वहाँ पर तो सरकार के विरोध में कुछ कह सुन नहीं रहे थे। दरअसल कार्यक्रम ही गलत जगह रखा गया था। आयोजकों ने गलत जगह का चुनाव किया था कार्यक्रम के लिए। वहां कालेज में आपसे में पहले से भी गुटबाजी चल रही थी।'

कार्यक्रम के सहसंयोजक गोरखनाथ पांडेय का कहना है कि कॉलेज के परमिशन से कार्यक्रम रखा गया था, बावजूद इसके कार्यक्रम नहीं होने दिया गया ये दुर्भाग्यपूर्ण है। लोगों को बोलने से रोकना दुःखद है। ये सब जो कुछ भी हुआ वो कालेज और समाज के लिए दुःखद है।

एमपी सिंह कहते हैं, "मैंने कार्यक्रम पर हमले की उड़ती पड़ती खबर सुनी है, लेकिन मैं इसमें शामिल नहीं था अतः मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता।' वहीं अशोक आनंद का कहना है कि ये सारा बवाल कुछ विशेष लोगों के इशारे पर किया गया है। चुनावी राजनीति के चलते शिक्षकों में भी दो गुट था। ये सारा चुनावी रंजिश के चलते किया गया है। दूसरे गुट के शिक्षकों ने जानबूझकर छात्रों को उकसाकर इस शर्मनाक हरकत को अंजाम दिया है।

जबकि स्थानीय लेखक अमृत कुमार ने कार्यक्रम पर हमले के बाबत कहा 'पूरे देश में जो माहौल है वो तो सब देख ही रहे हैं। कपिल कुमार ने खुद आगे आकर कहा कि वो खुद भाजपा से जुड़े हुए हैं और उन्होंने छात्रों का समझाकर कार्यक्रम जारी रखने का प्रयास भी किया, पर वो लोग किसानों को लेकर उनकी जो सोच है तो जाहिर है वो बात नहीं होने देना चाहते थे। कार्यक्रम के विरोध के समय भी वो लगातार कह रहे थे कि ये कम्युनिस्टों और नक्सलियों का कार्यक्रम है।'

अमृत आगे कहते हैं, 'इस सब पर प्रशासन का रुख निराशाजनक और निंदनीय था। मैं तो मिठाई लेने गया था वहां लोगों ने मुझसे कहा कि आप कार्यक्रम में मत जाइये क्योंकि आपकी दाढ़ी भी बढ़ी हुई है पर मैं नहीं माना और गया। वहां कई छात्रों ने मुझे घेर लिया, तो मैं डर गया। भागने की सामर्थ्य नहीं थी तो वहीं बैठ गया। पिटना तय जानकर मैंने उनसे संवाद करने की कोशिश की। मैंने उनसे पूछा कि कपिल कुमार को जानते हो? वो भी भाजपा के हैं और वो कार्यक्रम में बतौर वक्ता शामिल हो रहे हैं, पर उन्होंने मेरी एक न सुनी सबने शराब पी रखी थी। उन्होंने कार्यक्रम स्थल में लगे होर्डिंग पोस्टर वगैरह सब फाड़ दिए। तभी कुछ लोगों ने आकर उन्हें इंगेज किया और मुझे बचाया। इस देश में अब किसानों की बात करना भी देशद्रोह हो गया है!

वहीं जब इस मसले पर मनोज कुमार सिंह का पक्ष जानने के लिए जनज्वार ने उनको फोन किया तो उन्होंने पहली बार फोन उठाया और हां—हू करके काट दिया और उसके बाद फोन उठाया ही नहीं।

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