लगता नहीं कि बहुत दिन मुख्यमंत्री बने रह पाएंगे त्रिवेंद्र रावत
उत्तराखण्ड भाजपा में जो राजनीतिक हालात हैं, उसके आधार पर राज्य में एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन की संभावना, जनज्वार ने साढ़े तीन माह पूर्व ही प्रदेश में उलटफेर की संभावना कर दी थी व्यक्त...
देहरादून से मनु मनस्वी
बंपर बहुमत लेकर सत्ता में आई भाजपा सरकार के मुखिया त्रिवेन्द्र सिंह रावत के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी कांटों का ताज साबित होने वाली है। एक-एक कर उनके खुद के ही विधायक उनके खिलाफ हो रहे हैं। त्रिवेन्द्र का अब तक का कार्यकाल वैसे तो असफल ही कहा जाएगा, लेकिन उनकी खुद की छवि शांत लेकिन गैरमिलनसार राजनेता की रही है।
उन्हें करीब से जानने वाले बताते हैं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेन्द्र में यह बदलाव आया है कि उनके हाथ, जो पहले कुर्ते की जेब से बाहर नहीं आते थे, अब कार्यकर्ताओं, विधायकों और जनता के सामने हर वक्त जुड़े रहते हैं।
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पार्टी के भीतर इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पहले सतपाल महाराज, फिर हरक सिंह, विजय बहुगुणा और अब हरिद्वार से विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन ने त्रिवेन्द्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। रही सही कसर निशंक के साथ चाय पार्टी में जुटे विधायकों ने पूरी कर दी।
चैंपियन तो बकायदा दिल्ली जाकर अमित शाह से त्रिवेन्द्र की शिकायत भी कर आए हैं, जिसमें चैंपियन ने महाभारत का हवाला देते हुए अमित शाह को कृष्ण की भूमिका निभाते हुए त्रिवेन्द्र को सलाह देने का आग्रह किया है। साथ ही यह भी कहा कि हरिद्वार में ‘राजनैतिक हस्तक्षेप’ बर्दाश्त नहीं होगा। अब ये कैसा ‘राजनैतिक हस्तक्षेप’ है, यह तो चैंपियन ही बेहतर बता सकते हैं, लेकिन चैंपियन की नाराजगी को आगामी पंचायत चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है।
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चैंपियन अपनी पत्नी देवयानी को हरिद्वार जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान देखना चाहते हैं। पिछली बार उनकी यह इच्छा अधूरी रह गई थी, सो इस बार वे किसी भी कीमत पर मौका चूकना नहीं चाहते, लेकिन हरिद्वार के कद्दावर मदन कौशिक से 36 का आंकड़ा होने के चलते उनकी राह में रोड़े आते प्रतीत हो रहे हैं। पूर्व बसपा विधायक मौ. शहजाद भी मदन कौशिक के साथ हैं, जिससे चैंपियन का सारा गणित बिगड़ रहा है।
वहीं काफी समय से खामोश बैठे निशंक भी अपने खुराफाती रंग में आ गए हैं। बीते दिनों हुई चाय पार्टी के बाद कई तरह की कयासबाजी होने लगी है। विजय बहुगुणा भी खुद को नेपथ्य में पाकर अपने पुत्र साकेत के जरिये अमित शाह की गुडबुक में आना चाहते हैं। जूनियर शाह और ‘इंडिया बुल्स’ मार्का साकेत बहुगुणा की बढ़ती नजदीकियां इस बात को बल प्रदान कर रही हैं।
साकेत उत्तराखंड राजनीति में बुरी तरह विफल होने के बाद अपनी राजनैतिक करियर तलाश रहे हैं। बीते दिनों विजय बहुगुणा अजय भट्ट से भी मिल चुके हैं, जिसे सामान्य भेंट कहकर असल बात घुमा दी गई। आश्चर्य की बात है कि अब तक धुर विरोधी रहे कोश्यारी और निशंक गुट दोनों के सुर समान हो गए हैं। कारण केन्द्रीय मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने की दूर-दूर तक कोई संभावना न होना, जिसके चलते मजबूरन निशंक और कोश्यारी आज साथ हो गए हैं।
उधर सतपाल अपने एकलगान में मस्त हैं। वे केवल अपने चेलों और समर्थकों के भरोसे हैं। वैसे यह तो अभी शुरुआत है। निकाय चुनाव की घोषणा होते ही मेयर पद के टिकट की आस लगाए उम्मीदवारों में से भी कई टिकट न मिलने पर विरोधियों के साथ मिलकर उलटफेर में भूमिका निभा सकते हैं। खासकर वे उम्मीदवार, जो काफी पहले से ही शहरभर में नववर्ष, गणतंत्र दिवस और होली की शुभकामनाओं भरे होर्डिंग्स में खुद को मेयर प्रत्याशी घोषित कर चुके हैं।
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कुल मिलाकर हाल फिलहाल जो राजनीतिक हालात हैं, उसके आधार पर राज्य में एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाएं दिख रही हैं। जनज्वार ने लगभग साढ़े तीन माह पूर्व ही प्रदेश में उलटफेर की संभावना व्यक्त कर दी थी। वैसे भी उत्तराखंड के नसीब में आधी—अधूरी सरकारें देखना ही रहा है।
राजनेताओं को यह समझना ही होगा कि बार-बार सरकार बदलने से विकास बाधित हाता है। लेकिन ऐसी सोच की उम्मीद ऐसे राजनेताओं से तो करना बेमानी ही है, जो राजनीति को जनसेवा नहीं, खालिस धंधा समझते हैं।
यहां बनी अब तक की सरकारों में मात्र एनडी तिवारी ही अपना कार्यकाल पूरा कर पाए थे। हालांकि उन्हें पूरे पांच साल विरोधों का सामना करना पड़ा था, लेकिन राजनीति के शातिर खिलाड़ी तिवारी ने सबको पूरे पांच साल तक शांत रखा। त्रिवेन्द्र में ऐसी काबिलियत दूर-दूर तक नजर नहीं आती।