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अपने कट्टर धार्मिक नेताओं को पीछे खदेड़ हाथ में तिरंगा लिये लोकतंत्र और संविधान बचाने निकलीं हैं मुस्लिम महिलाएं

Nirmal kant
18 Jan 2020 9:01 AM GMT
अपने कट्टर धार्मिक नेताओं को पीछे खदेड़ हाथ में तिरंगा लिये लोकतंत्र और संविधान बचाने निकलीं हैं मुस्लिम महिलाएं
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सीएए-एनआरसी-एनपीआर, भाजपा-आरएसएस पर खुलकर बोलीं शबनम हाशमी, उन्होंने कहा धर्म बचाने नहीं बल्कि लोकतंत्र को बचाने घरों से बाहर निकलीं हैं मुस्लिम महिलाएं ..

जनज्वार। मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्व अभिनेत्री शबनम हाशमी ने नागरिक संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के खिलाफ प्रदर्शन कर रही शाहीनबाग की महिलाओं का समर्थन किया है। शबनम ने जनज्वार से बातचीत में कहा कि शाहीनबाग की महिलाएं धर्म नहीं बल्कि संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए आगे निकली हैं।

बनम हाशमी ने जनज्वार से बातचीत में कहा कि भाजपा ने मुस्लमानों की पूरे हिंदुस्तान में एक देशद्रोही की इमेज बनाई है। मोदी जी ने ऐसी इमेज बनाई कि मुसलमान औरतों को बहुत दबा के रखा है, मैं मुस्लमान औरतों का मसीहा हूं और मैने तीन तलाक खत्म करवा दिया।

आगे कहती हैं, 'हमने ये देखा है कि आजादी के बाद मुसलमान जब बाहर निकला तो उन सवालों पर निकला जो प्रत्यक्ष तौर पर उसके धर्म से वास्ता रखते थे। चाहे वह शाहबानों का केस हो या तीन तलाक का हो या कभी शरियत बचाने का हो। यह पहली बार इस तरह से लाखों में मुसलमान निकल रहे हैं।

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बनम आगे कहती हैं मुस्लिम महिलाएं धर्म के लिए नहीं बल्कि संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए निकल रहे हैं। भाजपा और आरएसएस में मुसलमान की जो एक स्टीरियो टीपिकल इमेज है, उसमें यह फिट नहीं बैठता। इसलिए उनकी जो पॉलोराइजेशन की राजनीति है उसमें उनको तकलीफ होती है कि पॉलोराइज कैसे करें।'

ह आगे कहती हैं, 'अगर मुसलमान सड़क पर तिरंगा लेकर निकल रहा है, राष्ट्रगान गा रहा है, इंकलाब जिंदाबाद, संविधान को बचाना है, के नारे लगा रहा है तो उसके बाद भाजपा के लिए बहुत मुश्किल हो जाती है। ये खासतौर से मुसलमानों के लिए एक बिल्कुल नया रूप है। जितने भी बंधन, मुस्लिम धार्मिक नेता, मुस्लिम कट्टरवादी ताकतें हैं इस बार मुसलमान औरतें और मर्द उनके पीछे खदेड़कर बाहर निकले हैं। मैं इसे हिंदुस्तान के इतिहास में एक अहम मोड़ मानती हूं जहां मुस्लिम अपने धार्मिक नेताओं को नकार रहे हैं।

कार्यकर्ता शबनम आगे कहती हैं, 'इसमे भाजपा - आरएसएस अब ये कर सकती है कि जो मुसलमानों के अंदर संकीर्ण सोच वाले तबके या संस्थाएं हैं उनका इस्तेमाल किया जाए। उसका इस्तेमाल कर उनकी कोशिश होगी कि एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक लड़ाई की जगह इसे एक धार्मिक लड़ाई में तब्दील किया जाय। उनकी कोशिश होगी कि इस तरह के नारे वहां पर बुलंद करवाएं जायें जो कि धर्मनिरपेक्ष न हो और खास समुदाय की पहचान और धर्म के दायरे में आ जाये। मुझे लगता है कि अब मुसलमान औरतें बहुत सारे पितृसत्तात्मक और धार्मिक बंधनों को तोड़कर निकली हैं।

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सीएए-एनआरसी के खिलाफ आंदोलन को लेकर शबनम कहती हैं, 'सिर्फ शाहीनबाग में ही नहीं इलाहाबाद में भी हजारों औरतें धरने पर बैठी हुई हैं। वह कहती हैं कि अगर शाहीनबाग में महिलाएं बैठ सकती हैं तो हम क्यों नहीं बैठ सकते। इसी तरह बंगाल-हैदराबाद में भी औरतें बाहर निकलकर आ रही हैं। यह एक बहुत अच्छा संकेत हैं। यह हमारे देश की राजनीति के लिए बहुत अच्छा है कि इस बार मुसलमान और बाकी सब हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई संविधान और लोकतंत्र को बचाने निकले हैं।

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