एक्सक्लूसिव : 56 इंच के सीने में समाया सपा—बसपा का डर, मोदी ने चुने विकास के लिए 21 हजार दलित—आदिवासी गांव
56 इंच का सीना रखने वाला प्रधानमंत्री सपा-बसपा से इतना क्यों घबरा गया है, जिस सरकार ने 4 साल में दलित—आदिवासी की सोचकर 4 गांव नहीं चुने वह एकाएक 21 हजार के आंकड़े पर क्यों पहुंच गयी, इस रिपोर्ट में आज मोदी के दलित प्रेम और डर की एक-एक कड़ी को सिलसिरेवार ढंग से उधेड़ा जाएगा
पीएम मोदी के अंबेडकर जयंती पर दलितों को रिझाने के लिए बनाए गए प्लान की पहली विस्तृत रिपोर्ट सिर्फ जनज्वार में
स्वतंत्र कुमार की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
कोई प्रधानमंत्री खुद को 56 इंच का सीना रखने वाला बताता हो और वह इतना डरपोक निकले की तीन लोकसभा सीट हारने पर उसकी रातों की नींद गायब हो जाए। हम बात कर रहे हैं अपने वर्तमान प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी जी की। दिल्ली में प्रधानमंत्री की कुर्सी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है।
पिछले दिनों फुलपूर और गौरखपुर लोकसभा सीट पर बसपा और सपा के गठबंधन के बाद आये नतीजों ने प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी की नींद गायब कर दी है। प्रधानमंत्री और उनके हनुमान समझे जाने वाले भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह को यह समझ ही नहीं आ रहा है कि बसपा और सपा के गठजोड़ से कैसे निपटे।
हालांकि प्रधानमंत्री मोदी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं है इसलिए 14 नवंबर 2018 अंबेडकर जयंती पर प्रधानसेवक एक फॉर्मूला लेकर पेश हुए जिस पर मुख्यधारा के मीडिया का अधिक ध्यान नहीं गया। नरेंद्र मोदी दलितों और आदिवासियों को अपनी तरफ रिझाने के लिए अंबेडकर जयंती पर बाबा का नाम आगे लाकर एक ऐसी योजना लेकर आये हैं, जिससे उनके अंदर का डर साफा लक रहा है। अब हम उस योजना की एक-एक परत खोलेंगे।
प्रधानमंत्री की टीम ने दिन रात एक करके देश के करीब 21 हजार ऐसे गांवों का चयन किया है जिनमें दलितों व आदिवासियों की जनसंख्या अधिक हैं। पीएम मोदी ने इन 21 हजार गांवों में अपनी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए 7 योजनाओं का चयन किया है। जो इस प्रकार हैं —
1.सौभाग्य बिजली योजना 2. उज्जवला निशुल्क रसोई गैस योजना, 3.प्रधानमंत्री मुद्रा लोन योजना, 4 प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना एवं प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, 5.प्रधानमंत्री जनधन योजना,6. स्वच्छता अभियान के तहत गांवों में शौचालय बनवाना और सातवीं दीन दयाल उपाध्याय विद्युतीकरण योजना है।
इन योजनाओं का एक सूत्र में ग्राम स्वराज अभियान के नाम से एक सूत्र में पिरोकर पीएम मोदी ने अपने हर मंत्री, सांसद, एमएलए, एमएलसी, पार्षद सहित पार्टी कार्यकर्ताओं को 5 मई तक की डेडलाइन दी है कि वे न केवल इन गांवों में जाएं, बल्कि इन गांवों में जाकर इन सातों योजनाओं का लाभ हर दलित व आदिवासी परिवार तक पहुंचाएं। सैक़ड़ों सालों से दलितों व आदिवासियों के उत्थान के लिए पहले जन आंदोलन फिर बाद में योजनाएं चलाई गई। बावजूद उसके उनकी स्थिति में बहुत अधिक सुधार नहीं हुआ है।
लेकिन 2019 में लोकसभा चुनाव हार जाने का डर नरेंद्र मोदी के मन में इस तरह से समा गया है कि वे इस लक्ष्य को एक महीने से भी कम समय में पूरा करवा लेना चाहतें हैं। पीएम मोदी का डंडा इस कदर चल रहा है कि सांसदों व विधायकों ने अपने-अपने इलाकों में इन गांवों में जाकर काम करना शुरु कर दिया है।
भारत सरकार में काम कर रहे कई बड़े अधिकारियों ने अपना नाम न बताने की शर्त पर बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह भाजपा का डर है कि कहीं 2019 में जो अभी तक उन्हें अपनी जीत पक्की नजर आ रही थी वो अब बसपा और सपा के साथ आने से कुछ धुंधली—सी नजर आ रही है। इसलिए ग्राम स्वराज अभियान के तहत इन योजनाओं को 21 हजार गांवों के आदिवासियों और दलितों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।
भाजपा के नेता भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में बसपा के सपा के साथ आ जाने से न केवल उत्तर प्रदेश में भाजपा का गणित बिगड़ सकता है, बल्कि दूसरे राज्यों में भी मायावती बहुत चालाकी से क्षेत्रीय पार्टियों या फिर कांग्रेस से गठबंधन करके भाजपा की सांसें फुला सकती है।
बसपा ने इसका एक ताजा उदाहरण दो दिन पहले ही पेश किया है, जब उसने हरियाणा की क्षेत्रीय पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल के साथ 2019 का चुनाव गठबंधन में लड़ने की घोषणा कर दी। यहां इंडियन नेशनल लोकदल मुख्य विपक्षी पार्टी है और उसके अधिकतर प्रत्याशी जो हारे हैं वे उतने या उससे भी कम वोटों से हारे हैं जितने वोट बसपा के प्रत्याशी को मिलते हैं।
भाजपा की नींद हरियाणा में इसलिए भी उड़ी हुई है क्योंकि हरियाणा में लोकसभा की 10 में 7 सीटें भाजपा के पास हैं और राज्य में सरकार भी भाजपा की है। इसी तरह राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भी बसपा का अपना वोट बैंक है। भाजपा नेताओं को यह डर सता रहा है कि इन राज्यों में यदि बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया तो तीनों राज्यों में कांग्रेस को आने से कोई नहीं रोक सकता।
उधर, दिल्ली में प्रधानमंंत्री की कुर्सी पर 56 इंच का सीना लिए बैठे प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी का चेहरा लटका और कॉन्फिडेंस खत्म नजर होता आ रहा है। ऐसे में मोदी ने भले ही 21 हजार गांवों का चयन कर उनमें अपनी योजनाओं के तहत लोगों को विकास की चकाचौंध दिखाने की कोशिश कर रहे हों, इतना तो तय है कि 2019 का चुनाव कुछ अलग ही नतीजे लेकर आएगा।