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राजनीति

28 साल पहले सुप्रीम कोर्ट बना चुका है ऐसा कानून कि मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ नहीं हो सकता कोई मुकदमा दर्ज

Prema Negi
3 May 2019 4:31 AM GMT
28 साल पहले सुप्रीम कोर्ट बना चुका है ऐसा कानून कि मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ नहीं हो सकता कोई मुकदमा दर्ज
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तीन सौ से भी अधिक वकील, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता नागरिक अधिकार समूहों से जुड़ी महिलाएं आयीं पीड़ित महिला के पक्ष में

यह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार है कि मुख्य न्यायाधीश यौन उत्पीड़न के आरोपों पर गठित इन हाउस जांच पैनल के समक्ष उपस्थित हुए और पैनल के समक्ष तमाम आरोपों का खंडन किया है

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों में न तो विधिवत शिकायत दर्ज हो सकती है और न कोई एजेंसी इसकी जाँच कर सकती है, क्योंकि वर्ष 1991 में वीरास्वामी मामले में उच्चतम न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ ने फैसला दिया है कि हाईकोर्ट या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायत तभी दर्ज हो सकती है, जब मुख्य न्यायाधीश की अनुमति मिल गई हो। इसे देखते हुये पीड़ित महिला को न्याय मिलना असम्भव नहीं तो अत्यंत मुश्किल है।

पीड़ित महिला ने आंतरिक जाँच समिति द्वारा तीन दिन सुनवाई के बाद अब आगे की सुनवाइयों में हाजिर होने से इनकार कर दिया है और कहा है कि उसे न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है। इस बीच तीन सौ से अधिक महिलाओं ने सीजेआई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने वाली शिकायतकर्ता के आरोपों की जांच के लिए बनी आंतरिक समिति के सामने पेश होने से मना करने का समर्थन किया है।

इन महिलाओं में वकील, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता और नागरिक अधिकार समूहों से जुड़ी महिलाएं शामिल हैं। महिलाओं ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि हमने शिकायतकर्ता के समिति छोड़ने के फैसले का समर्थन करते है।

गौरतलब है कि इसके पहले भी उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एके गांगुली और जस्टिस स्वतंत्र कुमार के खिलाफ भी लॉ इन्टर्नों ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये थे। उच्चतम न्यायालय की आंतरिक जाँच समिति ने जस्टिस गांगुली को दोषी भी पाया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की थी। बाद में जस्टिस गांगुली ने पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। जस्टिस स्वतंत्र कुमार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई थी और उन्होंने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण का कार्यकाल पूरा किया।

दरअसल पीड़िता के पास जस्टिस गोगोई के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज़ करने का विकल्प नहीं है, क्योंकि उसकी जाँच तब तक नहीं हो सकती जबतक मुख्य न्यायाधीश अनुमति न दें। ज़ाहिर है मुख्य न्यायाधीश अपने ही खिलाफ जाँच की क्यों अनुमति देंगे, जबकि वह पहले ही आरोपों को रद्द कर चुके हैं। पीड़िता दिल्ली हाईकोर्ट या उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करके मांग कर सकती है कि उच्चतम न्यायालय के रिटायर्ड जजों की विशेष समिति से जांच कराई जाए। फिर भी यह बहुत मुश्किल और थकाऊ पकाऊ विकल्प है। पीडित सेक्सुएल हैरेसमेंट ऑफ़ वीमेन ऐट वर्कप्लेस एक्ट 2013 के तहत उचित स्थानीय जांच समिति में शिकायत कर सकती है।

30 अप्रैल को शिकायतकर्ता ने जजों को एक पत्र दिया, जिसमें लिखा था कि वकील/सहायक व्यक्ति को मौजूद रहने की इजाजत न देने की हालत में उसके लिए कार्यवाही में शामिल होना मुमकिन नहीं होगा। शिकायतकर्ता ने मुख्य रूप से चार आपत्तियां जताते हुए यह निर्णय लिया था। सुनवाई के दौरान उन्हें उनकी वकील को रहने की अनुमति नहीं दी गई। समिति की कार्यवाही को वीडियो/ऑडियो रिकॉर्डिंग नहीं की गयी। समिति द्वारा उनके दिए गए बयानों की प्रति नही दी गयी तथा समिति द्वारा उन्हें कार्यवाही के लिए अपनाई जा रही प्रक्रिया के बारे में नहीं बताया गया।

शिकायतकर्ता ने यह भी कहा कि शुरुआत में मुझे लगता था कि जज निष्पक्ष जांच करेंगे, लेकिन तीन सुनवाइयों के बाद लगा कि तीन न्यायाधीशों जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की यह समिति मेरी शिकायत को संवेदनशीलता से नहीं, बल्कि शक की नजरों से अधिक देखते हैं। शिकायतकर्ता ने सुनवाई के माहौल को डराने वाला बताते हुए कहा था कि उन्हें नहीं लगता कि उन्हें न्याय मिलेगा। बोबडे समिति ने न सिर्फ ये निवेदन अस्वीकार कर दिया, बल्कि ये भी कहा कि अगर वो कार्यवाही में भाग नहीं लेती हैं, तो समिति एक्स पार्टी सुनवाई करेगी।

इस बीच 300 से अधिक महिला वकीलों और कार्यकर्ताओं ने कहा कि हम फिर दोहराते हैं कि तीन जजों की समिति का गठन पूरी तरह से ग़लत है, क्योंकि मुख्य न्यायाधीश शिकायत की सुनवाई करने वाले तीनों जजों से वरिष्ठ और संस्थान के प्रमुख हैं। इन महिला वकीलों और कार्यकर्ताओं ने कहा कि महिला के समिति छोड़ने के फैसले के बाद भी जांच जारी रखकर और सीजेआई गोगोई को समन करके समिति ने खुद को अविश्वसनीय बना लिया है। उन्होंने अदालत से इन सुनवाइयों पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि किसी बाहरी सदस्य के न होने कारण यह समिति स्वाभाविक रूप से दोषपूर्ण है।

मुख्य न्यायाधीश समिति के समक्ष पेश हुये मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई बुधवार 1 मई को यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच कर रहे जस्टिस बोबड़े की अध्यक्षता वाले 3 सदस्यीय जांच पैनल के सामने पेश हुए। मुख्य न्यायाधीश ने आरोपों का खंडन किया है। यह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार है कि मुख्य न्यायाधीश यौन उत्पीड़न के आरोपों पर गठित इन हाउस जांच पैनल के समक्ष उपस्थित हुए और पैनल के समक्ष तमाम आरोपों का खंडन किया है। अब ये पैनल फुल कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंप सकता है।

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