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समाज

सांप्रदायिक होते देश में उम्मीदों से भरी 'अभिव्यक्ति'

Prema Negi
31 May 2019 4:08 PM IST
सांप्रदायिक होते देश में उम्मीदों से भरी अभिव्यक्ति
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गरीब और जरूरतमंदों की मदद के लिये 'अभिव्यक्ति' बांहें फैलाये चुपचाप लोगों की मदद में लगी हुई है। हर बार की तरह इस बार भी इस संस्था ने उतरौला के सैकड़ों ऐसे लोगों को जिन्हें दो वक्त की रोटी भी मय्यसर नहीं....

बलरामपुर से फरीद आरजू की रिपोर्ट

बलरामपुर। रमजान का मुबारक महीना रहमत और बरकत का माना जाता है। कहा जाता है कि रमजान में एक नेकी के बदले 70 गुना नेकी मिलती है। इस बात का जिक्र क़ुरआने पाक में भी आया है। अगर कोई किसी गरीब या जरूरतमंद की मदद करे तो उसके बदले खुदा उसको 70 गुना मदद करता है। इस बात को मुस्लिम कौम ही नहीं बल्कि तमाम दूसरी कौम के लोग भी मानते हैं और एक नेकी के बदले 70 गुना नेकी कमाने में लगे रहते हैं। यह हमारे देश की गंगा जमुनी विरासत का भी प्रतीक है।

इसी गंगा जमुनी विरासत को जिंदा रखने का नाम कर रही है अभिव्यक्ति। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के उतरौला में हिन्दू मुस्लिम मिलकर "अभिव्यक्ति" नाम की एक संस्था चलाते हैं। ये संस्था गरीब और जरूरतमंदों की मदद के लिये अपनी बांहें फैलाये चुपचाप लोगों की मदद में लगी हुई है। हर बार की तरह इस बार भी इस संस्था ने उतरौला के सैकड़ों ऐसे लोगों को जिन्हें दो वक्त की रोटी भी मय्यसर नहीं है, उन्हें रमजान किट मुहैया कराकर उनके मायूस चेहरों पर मुस्कान लाने की कोशिश की।

अभिव्यक्ति की इस रमजान किट में पूरे महीने का दाल चावल, आटा, तेल, कपड़ा सहित दूसरी अन्य जरूरी सामान शामिल हैं। संस्था के सदस्य ये नेक काम पिछले 4 वर्षों से बिना किसी की मदद लिये कर रहे हैं।

अभिव्यक्ति संस्था के अध्यपक्ष डॉ. शेहाब जफर कहते हैं, रमजान के पवित्र महीने में गरीबों की मदद के लिए उनकी संस्था पिछले चार सालों से काम करती आ रही है। इस बार संस्था ने अपने सीमित संसाधनों के जरिये 83 परिवारों को रमजान किट दी है। ये ऐसे परिवार हैं जिनके घरों मे गरीबी के चलते रोजा खोलने के समय इफ्तारी का इंतजाम तक नहीं हो पाता है।

संस्था के सदस्थ संतोष कुमार श्रवण कहते हैं, उन्हें इस बात की खुशी है कि वह रमजान के महीने में गरीबों की मदद कर एक के बदले 70 नेकियां कमा रहे हैं।

रिक्शे पर पत्ते लादकर गली गली रमजान के महीने में कोई तपती दोपहरी में चक्कर लगा रहा है तो कहीं वृद्ध महिलाएं दो वक्त की रोटी के लिये दरवाजे दरवाजे भटकती फिर रही हैं। गरीबी की मार से पस्त लोग इस तपती हुई गर्मी में अपने मासूम बच्चों को अपने कंघे पर लादकर इस उम्मीद के साथ निकल पड़े है कि कोई नेक इंसान उन्हें जरूर मिल जाएगा, जो इस रहमत के महीने में उनकी मदद कर देगा।

ऐसे ही जरूरतमन्दों के लिये अभिव्यक्ति और खिदमत जैसी संस्थाएं बीड़ा उठाकर मदद पहुंचाने में लगी है। इस पाक महीने में बलरामपुर में एक हिन्दू परिवार ऐसा भी है जो पिछले 22 वर्षों से हर साल सैकड़ों मुस्लिम रोज़ेदारों को एक साथ बैठकर रोजा इफ़्तार कराते हैं। इस रोज़ा इफ्तार में सिख, ईसाई, जैन सभी धर्म के लोग शामिल होकर देश की सदियों से चली आ रही गंगा जमनी तहजीब की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए एकता की मशाल को जलाये हुऐ हैं।

नगर के प्रसिद्ध दवा व्यवसाई रघुनाथ अग्रवाल पिछले 22 वर्षों से न सिर्फ सैकड़ों मुसलमानों को रोज़ा इफ्तार कराते हैं, बल्कि रमजान के महीने में किसी मरीज के पास दवा के कम पैसे होने पर उसे दवा भी मुफ्त दे देते हैं।

अपने निजी लाभ के लिए भले ही गंदी मानसिकता से ग्रस्त चंद लोग समाज मे वैमनस्य पैदा करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन आज भी उसी समाज मे ऐसे भी लोग हैं जो गरीबों—जरूरतमंदों की सेवा को सबसे बड़ी इबादत और उसी को अपना धर्म मानते हैं।तभी तो मशहूर शायर पदमश्री बेकल उत्साही ने कहा है-

धर्म मेरा इस्लाम है, भारत जन्म स्थान!

वँजू करू अजमेर मे काशी में स्नान!!

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