Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

अइसन दुरंगी नीति से समाजवाद न अतौ जयप्रकाश जी

Prema Negi
8 Aug 2018 7:50 AM GMT
अइसन दुरंगी नीति से समाजवाद न अतौ जयप्रकाश जी
x

नक्षत्र मालाकार की लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि 42 के आंदोलन में उन पर पचासों केस हुए, लेकिन एक भी केस में एक भी गवाह नहीं मिल सका। सरकार को उन्हें छोड़ देने को मजबूर होना पड़ा...

डॉक्टर राजू रंजन प्रसाद, धर्मशास्त्र और इतिहास के जानकार

कुछ लोग जीते जी किंवदंती बन जाते हैं। नक्षत्र मालाकार ऐसे ही महापुरुष हैं जो इतिहास की प्रचलित किताबों से ज्यादा मिथकों और किंवदंतियों में बसते हैं। कहा जाता है कि "मोमेंट के समय गोरा मलेटरी इसके नाम को सुनते ही पेसाब करने लगता था।

जितने सरकारी गवाह बने थे, सबों के नाक-कान काट लिए थे चलित्तर ने। बहादुर है। कभी पकड़ाया नहीं। कितने सीआईडी को जान से खतम किया। धरमपुर के बड़े-बड़े लोग इसके नाम से थर-थर कांपते थे। ज्यों ही चलित्तर का घोड़ा दरवाजे पर पहुंचा कि 'सीसी सटक'। दीजिए चंदा। पचास! नहीं, पाँच सौ से कम एक पैसा नहीं लेंगे। नहीं है? चाबी लाइए तिजोरी की। नहीं? ठाएँ! ठाएँ!" (फणीश्वरनाथ रेणु, मैला आँचल, राजकमल पेपरबैक्स, संस्करण : 1992, पुनर्मुद्रण : 1996, पृष्ठ 121)

नक्षत्र मालाकार गांव में चरवाही किया करते थे। 1930 में नमक बनाने हेतु कांग्रेस की ओर से सत्याग्रहियों की भर्ती का अभियान चलाया जा रहा था। पूर्णिया के प्रख्यात गांधीवादी नेता वैजनाथ चौधरी कांग्रेस की एक मीटिंग में सत्याग्रहियों का नाम लिख रहे थे। युवा नक्षत्र ने अपना नाम सत्याग्रहियों में दर्ज कराया। तब से वैजनाथ चौधरी के संपर्क में वे नमक सत्याग्रह, विदेशी वस्त्रों की बिक्री के विरुद्ध धरना तथा व्यक्तिगत सत्याग्रह आदि में नेतृत्व प्रदान किया।

किन्तु दो घटनाओं की वजह से कांग्रेस से उनका मन उचट गया। पहली घटना है कि किसी गांव में कांग्रेसी नेतागण अंग्रेजी शोषण और गुलामी से मुक्ति हेतु तैयार कर रहे थे। तभी एक जमींदार के खेत में एक गरीब की बकरी चली गयी। जमींदार ने बकरी वाले को बांधकर पीटा। नक्षत्र को लगा कि इसका प्रतिकार होना चाहिए।

कांग्रेसी नेताओं के कैम्प में जाकर उन्होंने यह बात रखी, परंतु सभी नेताओं ने एक स्वर में कहा कि 'ऐसे कामों में हस्तक्षेप करना कांग्रेस का काम नहीं है। कांग्रेस का काम रचनात्मक एवं सृजनात्मक काम करना है।' (अकेला रमाकांत, 'कौन थे नक्षत्र मालाकार?', कम्युनिस्ट संदेश, वर्ष 30, अंक 11/12, नवंबर-दिसम्बर 2001)

नक्षत्र ने 'नेतृत्व की भावना' के विरुद्ध जाकर इस घटना का न केवल प्रतिकार किया बल्कि जमींदार के यहाँ से उस गरीब को मुक्त भी कराया। (वही) दूसरी घटना यह घटी कि एक बार नक्षत्र मालाकार ने 'जनयुग' नामक अखबार खरीदा। अखबार लेकर जब कांग्रेस कार्यालय गये तो कांग्रेसी नेता पंडित रामनंदन मिश्र ने कहा कि 'जनयुग तो कम्युनिस्टों का अखबार है, इसे फाड़कर फेंको।' (वही) उनके कहने पर जनयुग तो फाड़कर फेंक दिया गया, किन्तु यह बात अंदर गांठ बन गयी।

नक्षत्र मालाकार अपने बचपन में नछत्तर माली थे। 1936 में सोनपुर में समाजवादियों का शिविर आयोजित हुआ था जिसमें जयप्रकाश नारायण ने प्रभावित होकर नाम बदल दिया था। उनका जन्म पुराना पूर्णिया जिले के कोढ़ा नामक स्थान में हुआ जो वर्तमान में कटिहार जिले में है। (अकेला रमाकांत, 'कौन थे नक्षत्र मालाकार?', कम्युनिस्ट संदेश, वर्ष 30, अंक 11-12, नवंबर-दिसंबर 2001)

नक्षत्र मालाकार 1936 में बिहार सोशलिस्ट पार्टी का सदस्य बने। (मालाकार की डायरी, न्यूजब्रेक, 31 अगस्त 2001) बिहार सोशलिस्ट पार्टी की पूर्णियां शाखा की एक बैठक समैली गांव में हुई। इसमें इक्यावन साथियों ने हिस्सा लिया। बैठक में मदन मोहन झा ने प्रस्ताव लाया कि जिला नेतृत्व का भार नक्षत्र मालाकार के हाथ में सौंप दिया जाये जिसका समर्थन महाराज मंडल ने किया। (वही)

सन 1936 में सोनपुर में समाजवादियों का शिविर आयोजित था। नक्षत्र मालाकार भी शामिल थे। जयप्रकाश नारायण उस शिविर के प्रिंसिपल थे। एक दिन उन्होंने (नक्षत्र मालाकार) देखा कि शिविर के अंतर्गत दो तरह की भोजन-व्यवस्था चल रही है। उन्हें यह सब अच्छा नहीं लगा। उन्होंने जयप्रकाश नारायण जी से इस दोहरी व्यवस्था का कारण पूछ दिया।

जयप्रकाश जी ने उत्तर दिया-‘यहाँ नेताओं के अलग और कार्यकर्ताओं के लिए अलग भोजन-व्यवस्था है।’ नक्षत्र मालाकार को इस उत्तर से घोर ‘रिएक्शन’ हुआ। उन्होंने कहा- ‘अइसन दुरंगी नीति से समाजवाद न अतौ जयप्रकाशजी।’ उन्होंने गाँधी टोपी माथे से उतारी और उनकी ओर फेंकते हुए हमेशा के लिए शिविर से बाहर चलते बने। तब से जीवनपर्यंत कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े रहे।

नक्षत्र मालाकार पूर्णिया में 1942 के हीरो हैं। उनकी लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि 42 के आंदोलन में उन पर पचासों केस हुए, लेकिन एक भी केस में एक भी गवाह नहीं मिल सका। सरकार को उन्हें छोड़ देने को मजबूर होना पड़ा। 1942 में नक्षत्र मालाकार जेल में बंद थे। जेल ही में उनकी कम्युनिस्ट पार्टी पूर्णिया जिला सचिव कामरेड अनिल दास गुप्ता तथा साथी चंद्रमा सिंह से भेंट हुई थी। पार्टी के प्रति उनका झुकाव वहीं हो गया था।

इन लोगों से प्रभावित होकर नक्षत्र मालाकार ने वचन दिया कि जेल से निकलते ही वे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हो जायेंगे। जेल से छूटते ही उन्होंने भागलपुर जिले के साथियों से संपर्क किया। (रामावतार शर्मा, भागलपुर जिले में कम्युनिस्ट पार्टी का विकास, कम्युनिस्ट संदेश, वर्ष : 3, अंक : 11/12, नवंबर-दिसंबर, 2001; अकेला रमाकांत, पूर्वोद्धृत)

1944 के आसपास जेल से रिहा होने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने अपील की कि हिंदुस्तान के अंदर जो साथी क्रांतिकारी इधर-उधर भटक रहे हैं, हाजिर हो जायें या कहीं छिपने की जगह नहीं हो तो वे सीधे इलाहाबाद आनन्द भवन में आ जायें। पंडित जवाहरलाल नेहरु के कहने का हिंदुस्तान के क्रांतिकारियों पर अच्छा असर पड़ा। कुछ तो हाजिर हो गए और कुछ इलाहाबाद आनन्द भवन पहुंच गए।

नक्षत्र मालाकार ने भी हथियार रख देने का मन बनाया। वे अपने कुछ साथियों (लालगंज का विट्ठल, चंदन का भीम सिंह तथा पुनावा का पुलिस यादव) के साथ वैद्यनाथ प्रसाद चौधरी से मिलने टीकापट्टी कालीस्थान पहुंचे। मालाकार ने जब चौधरी जी से उक्त संबंध में कहा तो उन्होंने कहा कि 'आपलोगों को एसडीओ के सामने हाजिर हो जाना चाहिए।'

मालाकार ने पूछा, 'लेकिन जब अंग्रेजी हुकूमत की ओर से पुलिस केस चार्ज करेगी तो आप वकील-मुख्तार के द्वारा या खुद पैरवी करेंगे?' वे बोले, 'मैं पैरवी नहीं करूंगा। हिंसक प्रवृत्ति वाले की मुझसे पैरवी नहीं हो सकेगी।' (मालाकार की डायरी, न्यूजब्रेक, 30 सितंबर 2001)

Next Story

विविध