एक ब्राम्हण कॉमरेड जिसकी जिंदगी जाति मुक्ति की मिसाल बन गयी
कॉमरेड देवेंद्र प्रसाद पाडेंय के पास 18 बीघा जमीन थी। उनके जूनियर वकील की सड़क दुर्घटना में मौत होने पर उसकी बहनों की शादी अपना खेत बेचकर कर दी
डोम बस्ती में रहा आजीवन कार्यालय, बेटियों की परवरिश ऐसी कि तीनों मिलकर आगे बढ़ा रही हैं प्रगतिशील विचार और आंदोलन
उन्हें याद कर रहे हैं उनके साथी रामकिशोर वर्मा
वर्ष 1945 में देवेंद्र प्रसाद पांडेय का जन्म देवरिया जिले के गोबराई गांव में हुआ था। देवरिया में मस्तिष्क पक्षाघात के कारण लंबी बीमारी के बाद 18 जनवरी 2018 को शाम 4.30 बजे निधन हो गया। उनकी तीन पुत्रियां और दो पुत्र हैं।
देवेंद्र प्रसाद पांडेय ने सेना की नौकरी प्रशिक्षण के दौरान ही छोड़ दी। रोजगार की तलाश में वे एक फैक्टरी में काम करने लगे। मजदूरी न मिलने कारण संघर्ष की तलाश में निकल पड़े और उनका लोकप्रिय सीपीएम नेता कामरेड शेर सिंह से संपर्क हुआ।
संघर्षों के दौरान मुकदमे की पैरवी के लिए वामपंथी अधिवक्ताओं द्वारा गरीबों से गैरजरूरी फीस वसूली से क्षुब्ध होकर कानून की पढ़ाई के लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय चले गए। वापस आकर देवरिया दीवानी न्यायालय में वकालत शुरू की। कुछ समय के बाद ही उनके पास गरीबों की न्याय के लिए लंबी कतार लग गई।
उनकी पुरानी केस डायरी का अवलोकन करने पर मैंने एक दिन पाया कि 70-80 के दशक तक के मुकदमे दर्ज हैं। उन्होंने गरीबों को न्याय दिलाने के लिए कभी भी पैसों को बाधा नहीं बनने दिया। जिसने जितना दिया, ले लिया। नहीं दिया तो भी कोई बात नहीं। यह इससे भी स्पष्ट होता है कि उनके जीवन में कभी भी बैंक खाता व बीमा पाॅलिसी नहीं रही।
मृत्यु के बाद अपनी संतानों के लिए कोई चल संपत्ति नहीं छोड़ी। न्याय दिलाने का जुनून उन पर इतना ज्यादा था कि एक बार एक जज साहब ने एक कर्मचारी को मारपीट दिया। उल्टे दारोगा ने कर्मचारी को उठाकर बंद कर दिया। इस कर्मचारी की पैरवी के लिए कोई अधिवक्ता तैयार नहीं था। उन्होंने कर्मचारी की जमानत करवाने की ठानी।
अधिवक्ताओं ने लामबंद होकर उन पर हमले की तैयारी कर दी थी, मगर वे बिल्कुल नहीं डरे। तमाम विरोध के बावजूद जमानत करवाई और उस कर्मचारी का मेडिकल करवाकर जज भरत पांडेय के खिलाफ केस दाखिल कर कर्मचारी को न्याय दिलवाया।
18 जनवरी 1995 को ग्राम बलिवन में एक अपराधी गिरोह से संघर्ष में तकरीबन पांच दर्जन लोग फायरिंग में घायल हो गए तथा दो लोगों की मृत्यु हो गई। भाकपा (माले) के 59 कार्यकर्ताओं पर धारा 395, 397 का मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया गया। वे भाकपा (माले) के कार्यकर्ताओं से परिचित तो नहीं थे, इसके बावजूद 59 कार्यकर्ताओं की नि:शुल्क जमानत करवाई और भाकपा (माले) के पक्ष में अपनी बेटी प्रेमलता पांडेय के साथ बोले।
उनका समाज सेवा में भी बड़ा योगदान रहा है। वे अपने परिवर में बराबर किसी न किसी असहाय-पीड़ित को शरण देते रहते थे। संपत्ति की उन्होंने कभी कोई परवाह नहीं की। उनके पास 18 बीघा जमीन थी। उनके जूनियर की सड़क दुर्घटना में मौत होने पर जूनियर वकील की बहनों की शादी अपना खेत बेचकर कर दी।
आज उनके पास मात्र एक बीघा जमीन बची है। वे काफी दिनों तक पूर्णकालिक वामपंथी कार्यकर्ता रहे और काॅमरेड शेर सिंह के साथ संघर्षों में हिस्सा लिया।
ब्राह्मणवाद के खिलाफ लड़ाई का जुनून इतना ज्यादा था कि अपने पैतृक गांव से महज एक मील की दूरी पर प्राणपुर गांव में पांच साल का समय बीता दिया और वे घर नहीं आए।
छात्र जीवन के दौरान नक्सलबाड़ी आंदोलन के समय पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा। इसकी जानकारी होने पर वे स्वयं थाने पहुंच गए और बोले, मैं देवेंद्र प्रसाद पांडेय हूं, क्या बात है? दारोगा भौंचक्क रह गया और वह उनकी गिरफ्तारी का साहस नहीं कर सका!
उनकी तीन बेटियां हैं। तीनों बेटियां सीपीआई (एमएल) की कार्यकर्ता हैं। उनकी बेटियों की पहचान समाज में सम्मानित और जुझारू छवि की महिलाओं के बतौर है। उन्होंने अपनी बेटियों पर कभी किसी भी किस्म की पाबंदी नहीं लगाई, बल्कि बढ़-चढ़कर उनको वामपंथी राजनीति कि लिए प्रेरित किया।
वे महिला मुक्ति के बेहद पक्षधर थे। महिलाओं को पुरुष सत्ता से मुक्त कराने के लिए उन्होंने अपनी बेटियों को मिसाल के रूप में पेश किया। मसलन वे कभी भी अपनी बेटियों की शादी के लिए वर खोजने नहीं गए। दूसरी बेटी की शादी उसकी इच्छा पर बिना किसी लेनदेन के कर दी।
बीमारी के दौरान भी अध्ययन से बराबर जुड़े रहे। उनकी बेटियां जब शाम को वापस घर आती थीं तो वे बिना किसी संकोच के दोस्ताना अंदाज में हाथ उठाकर उन्हें लाल सलाम कहते थे और फिर अपने पास बैठाकर दिनभर की राजनीतिक गतिविधियों की जानकारी लेना और आगे के लिए प्रेरित करने का काम करते थे।
उनकी बड़ी बेटी प्रेमलता पांडेय ने वकालत पेशे की अभी शुरूआत ही की थी कि कुछ अधिवक्ताओं के कहने पर जिला बार एसोसिएशन के सचिव पद पर चुनाव लड़ गईं। पिता ने समर्थन देकर उत्साहित किया, लेकिन कह दिया कि मैं तुम्हारे लिए वोट मांगने नहीं जाउंगा। अपनी क्षमता पर वोट मांगो और जीतो।
उनकी जिंदगी के अनगिनत प्रसंग हैं। वे आज हमारे बीच नहीं हैं। उनकी बड़ी बेटी आज भी अपने पिता के पद्चिन्हों पर चलकर असहाय व पीड़ित लोगों को मदद व शरण देना तथा निशुल्क न्याय के लिए पैरवी करना और सड़क पर भी उनके लिए संघर्ष करने का काम करती हैं। छोटी बेटी गीता पांडेय सीपीआई (एमएल) के विस्तार के लिए पूरा वक्त देती हैं।
इन लोगों ने महिलाओं की मुक्ति के लिए मजबूत जनाधार वाला ऐडवा और निर्माण मजदूरों का संगठन और हमेशा सामाजिक राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका अदा कर रही हैं। परिवार में क्रांतिकारी, वामपंथी, राजनीतिक उत्तराधिकारी पैदा करने के लिए कामरेड देवेंद्र प्रसाद पांडेय को लाल सलाम
(रामकिशोर वर्मा सीपीआई लिबरेशन के देवरिया जिला सचिव हैं।)